रोज मौसम बहार मिलते हैं,
फिर भी गुल बेक़रार मिलते हैं।
फुल,खुशबू भुला नहीं सकते,
यूँ तो कांटे हजार मिलते हैं।
मुफ्खोरों से संभलकर रहना,
हर तरफ बार-बार मिलते हैं।
ज़िन्दगी हारकर मिला क्या है,
ख्वाब भी शोगवार मिलते हैं।
नींद आँखों में अब नहीं आती,
जागते इंतजार मिलते हैं।
धीरे धीरे पिघल रहे आंसू ,
मन -ह्रदय जार-जार मिलते हैं।
कोई बस्ती तलाशिये ऐसी ,
जिस जगह खुशगवार मिलते हैं,
आज तन्हा सफ़र में रहता हूँ,
यूँ तो सब दोस्त यार मिलते हैं।
कोई 'अनुराग' तरफदार नहीं,
हर कहीं तलबगार मिलता है।