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विधि मंत्री की विकलाँग विधा

26 अगस्त 2016

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(यह लेख हमने कुछ वर्ष पूर्व लिखा था और कई स्थानों पर प्रकाशित हुआ था, परंतु भारत देश में घोटाले, घोटालेबाज व घोटालागाथाएँ, धर्म की भांति सनातन हैं, अतः यह लेख आज भी सामयिक है, सुधी पाठकों की सेवा में इस वेबसाईट पर भी समर्पित)


कुछ समय पूर्व, हमने " गायतोंडे जी का गाय गौरव संवर्धन" प्रकाशित किया था. तब से अब तक, गायतोंडे जी का गाय के प्रति प्रेमभाव उन्हें बहुत ऊँचा ले जा चुका है. आलाकमान ने उनमें एक दुधारू गाय की छवि देखी है और अपनी इसी उज्जवल छवि के कारण वे केन्द्रीय विधि मंत्री बनकर विविध विधियों से राजकोष को दुह रहे हैं. ज्ञान ीजन जानते हैं कि राजकोष जनता को दुहकर बनाया जाता है. यह दोहन परंपरा कहाँ से शुरू होकर कहाँ तक जाती है, या तो भगवान जानता है या आलाकमान.


गायतोँडे जी का गायों के प्रति समर्पण भाव इतना गहरा है कि अब उनकी धर्म पत्नी भी गाय सदृश्य दिखने लगी है. हमें तो कई बार जानकारी मिली है कि विश्व बैंक के पशुखाद्य अनुदान कार्यक्रम की आडिट टीम श्रीमती गायतोँडे के स्वास्थ्य से ही संतुष्ट होकर लौटी है. वैसे, श्रीमती गायतोँडे भी अपने पति के संग कदम से कदम मिलाकर दोहन कार्यक्रम में सतत योगदान दे रहीं हैं. फिलहाल उन्होंने विकलाँग पशुओं के लिये कुछ केन्द्रीय अनुदान दोहन किया है, जिसके तहत एक कार्यक्रम आयोजित किया गया.


कार्यक्रम की सफलता और उपयोग पर बहुत चिल्लपों मची. गायतोँडे जी पर बहुत आरोप लगे, पर अब तक गायतोँडे जी भी राजनीति के चरागाह में साँड की सी हैसियत रखने लगे हैं अतः हर आरोप की नाथनी को बराबर झटक रहे हैं. पर, हमारे पास इस पूरे कार्यक्रम की सच्ची खबर है. तो जनहित में एक और सनसनीखेज खुलासा...


गायतोँडे जी के गऊ सदृश्य पितामह के नाम पर बनाये एनजीओ की कर्ताधर्ता होलस्टीन कायाधारी श्रीमती गायतोँडे हैं. वे स्वभावतः बड़ी दयालु हैं. विकलाँग पशुओं के लिये उन्होंने कई उपकरण बाँटने की योजना बनाई. चूंकि वे बहुत उदारमना हैं और उनका अनुमान थोड़ा गलत हो गया, इसलिये विकलाँग पशु कम व उपकरण अधिक हो गये.


पर, पशुसेवा के उनके निश्चय के आगे ये छोटी मोटी बाधाएँ भला कहाँ टिकनी थीं. क्या किसी नेता का संकल्प, मात्र विकलाँग पशुओं की कमी के कारण पूरा ना हो सकेगा? व्यापक देशहित में ये छोटी मोटी कुर्बानियाँ देना, पशुओं व पशुवत समाज का कर्तव्य है. संकल्प पूर्ति के लिये कई पशुओं को पकड़कर विकलाँग बनाया गया, कई पशुओं के गुहार करने पर उनका नाम बतौर विकलाँग लिख लिया गया व उन्हें स्वस्थ ही छोड़ दिया गया, यह गायतोँडे परिवार की दयाभावना का एक स्पष्ट नमूना है, गटर के कीड़ों!


विकलाँग पशु संख्याबल के सुनिश्चित होने पर कार्यक्रम आयोजित हुआ. गैँडे-भैंसे से शरीर वाले मुख्य अतिथि, गिद्ध-चील सी दृष्टि वाले पत्रकार व अनुदान में मिलने वाले कमीशन पर बगुले सा ध्यान जमाये बाबूगण बुलाये गये. पशुओं व पशुवत आचरण करने वालों का यह सम्मेलन बेहद दर्शनीय था.


कार्यक्रम के संयोजक अमुक जी ने गायतोँडे दम्पत्ति के पशु प्रेम का जिक्र किया. उन्होंने बताया कि कैसे गायतोंडे जी देश में पशुओं की संख्या वृद्धि के लिये अब इंसानों को भी पशुवत समझते हैं. आवारा पशुओं को सड़क पर घूमते देखा नहीं जाता तो उन्हें मुक्ति दिलवाने अपने कत्लखाने पँहुचा देते हैं. गौमाता की सेवा के नाम पर गौशालाओं के लिये अनुदान प्राप्त करते हैं और वहाँ से प्राप्त दूध रूपी आशीर्वाद अपनी डेयरी के माध्यम से घर घर सशुल्क पंहुचाते हैं. आशीर्वाद अधिक से अधिक लोगों तक पंहुचे, मात्र इसी उद्देश्य से उसमें शुद्ध जल मिलाने की सुचारू व्यवस्था है.


वे तो यहाँ तक कह गये कि इस कार्यक्रम के बाद हर स्वस्थ पशु के जीवन का उद्देश्य होगा, विकलाँग होकर गायतोँडे दम्पत्ति के ट्रस्ट से जुड़ना व गायतोँडे बलिस्थल पर शरीर त्याग कर निर्वाण प्राप्त करना. स्वेच्छा से शरीर त्यागने वाले स्वस्थ पशु मंच के पीछे अभी भी संपर्क कर सकते हैं.


गायतोंडे जी ने अपने भाड़े के लेखक की विद्वता का परिचय देकर बहुत तालियाँ बटोरीं. उनका कहना था भारत को विश्व में अग्रणी रखने के लिये जरूरी है कि हमारे पशु बलिदान दें. देश का गौरव अब क्षुद्र, गटर के कीड़ों नुमा, सड़क चलते इंसानों से नहीं सँभल सकता. इसके लिये तन मन धन के समर्पण की आवश्यकता है. यानि, पशुओं को अपना तन, गायतोँडे परिवार को मन व सरकार को धन समर्पित करना चाहिये ताकि विश्व के अधिकाधिक देशों का पेट भरने के लिये गायतोँडे परिवार अपने कत्लखाने का सदुपयोग कर सके. भरपूर तालियाँ व स्मृतिस्वरूप फोटो खिँचवाकर, उन्होंने सभी विकलाँग तथा छद्म विकलाँग पशुओं को उपकरण बाँटे.


साँपों को जूते, गधों को सींग, कुत्तों को दुम सीधी करने की नलियाँ, बत्तखों को लाइफ जैकेट, गायों को दूध दुहने के दस्ताने, बैलों को ट्रैक्टर, ऊँटों को स्पॉण्डोलाइसिस से बचाव के पट्टे, मुर्गों को अलार्म घड़ियाँ, भेड़ों को स्वेटर कोट, भैंस को पाँच सितारा तरणताल की वार्षिक सदस्यता आदि अनेकानेक “कृपा” बरसाई गयी. कई विकलाँग पशु पीछे रह गये, कई पशु भगदड़ में विकलाँग हो गये व कई पशु भीड़ में दब कर, नश्वर जीवन का मोह त्याग, अंततोगत्वा कत्लखाने को प्राप्त हो गये.


कुल मिलाकर आयोजन भरपूर सफल रहा. पशुओं की विकलाँगता में बहुत वृद्धि हुई, जिससे आगामी वर्षों में अनुदान की रकम कई गुना बढ़ने की आशा है. हमारे विधि मंत्री का सपना है कि पशुओं के बाद यदि विधि व्यवस्था भी विकलाँग की जा सके, तो उनके ट्रस्ट को मिलने वाला अनुदान "टू जी", "कोयला" आदि शास्त्रीय घोटालों के समकक्ष पँहुच सकेगा. भगवान करे उनकी इच्छा शीघ्र पूरी हो.


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