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Guftugu: Niyat

29 अगस्त 2016

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नियत

खामोश जबानों की भी खुद की भाषा होती है

कभी अहदे - बफा के लिए ,

कभी माहोल को काबिल बनाने के लिए

मु.ज्तारिब क्या करु

नियत नहीं . .

दुसरे पर कीचड़ उछाल कर

ख़ुद को कैसे साफ़ रखू।

कभी खुद के घोसले ,

कभी दुसरो के तिनके

की पाकीज़गी बनाए रखने की नियत ,

मुख्तलिफ़ होकर भी

ख़ामोशी अपनी मशरुफ़ियत नहीं

ज़रा सी..

चंद खुशियों को महफूज़ रखने की

नियत्त . .

- ©पम्मी . .


खामोश जबानों की भी खुद की भाषा होती है

कभी अहदे - बफा के लिए ,

कभी माहोल को काबिल बनाने के लिए

मु.ज्तारिब क्या करु

नियत नहीं . .

दुसरे पर कीचड़ उछाल कर

ख़ुद को कैसे साफ़ रखू।
कभी खुद के घोसले ,
कभी दुसरो के तिनके
की पाकीज़गी बनाए रखने की नियत ,
मुख्तलिफ़ होकर भी
ख़ामोशी अपनी मशरुफ़ियत नहीं
ज़रा सी..
चंद खुशियों को महफूज़ रखने की

नियत्त . .

- ©पम्मी . .
( अहदे -वफ़ा - वफा दार ,मुजतारिब -शिकायते ,मुख्तलिफ़ -भिन्न,)
Guftugu: Niyat

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Guftugu: Niyat

29 अगस्त 2016
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नियतखामोश जबानों की भी खुद की भाषा होती है कभी अहदे - बफा के लिए ,कभी माहोल को काबिल बनाने के लिए मु.ज्तारिब क्या करु नियत नहीं . . दुसरे पर कीचड़ उछाल कर ख़ुद को कैसे साफ़ रखू। कभी खुद के घोसले ,कभी दुसरो के तिनके की पाकीज़गी बनाए रखने की नियत ,मुख्तलिफ़ होकर भी ख़ामोशी अपनी मश

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जिनमें आसीर है ..

26 दिसम्बर 2016
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यूँ तो कुछ नहीं बताने को..चंद खामोशियाँ बचा रखे हैंजिनमें असीर है कई बातें जो नक़्श से उभरते हैंखामोशियों की क्या ? कोई कहानी नहीं...ये सुब्ह से शाम तलक आज़माए जाते हैंक्यूँकि हर तकरीरें से तस्वीरें बदलती नहीं न हि हर खामोशियों की तकसीम लफ़्जों में होतीरफ़ाकते हैंं इनसे

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आनेवाली मुस्कराहटों ..

6 जनवरी 2017
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लो गई..उतार चढ़ाव से भरीये साल भी गई...गुजरता पल,कुछ बची हुई उम्मीदेआनेवाली मुस्कराहटों का सबब होगा,इस पिंदार के साथ हम बढ़ चले।जरा ठहरो..देखोइन दरीचों से आती शुआएं...जिनमें असिर ..इन गुजरते लम्हों की कसक, कुछ ठहराव और अलविदा कहने का...,पयाम...नव उम्मीद के झलककुसुम के महक का,जी शाकिर हूँ ..कुछ चापों

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