अगला लेख: भिखारी - एस. कमलवंशी
सच मच बहुत ही मन को छूने वाली कृति है | अच्छी रचना के लिए बहुत बहुत शुभ कामनाएं
बहुत सशक्त रचना है | हर दृष्टि कौण से | पूरी तरह निखरी , मजी हुई | मन के बहुत भीतर तक उत र जाने वाली | सहेज कर रखिये |
अद्भुत रचना, आज की हकीक़त को उजागर कराती और मानवीय संवेदना को उकेरती!!! बधाई और आभार!!!
जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना गुरुवार २५ अप्रैल २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
दिलों को बेध देने वाली रचना। कमलवंशी जी आपकी विचारों को नमन।
धन्यवाद ऋषभ जी।
सबको बूढा होना है ये सबका ही रोना है।
आधुनिकता के इस प्रसार में आगे बस ये ही होना है।
हमें चेतना होगा आज , बदलना होगा ये समाज।
संस्कारों के मोतियों को फिर से बाल मनों में पिरोना है।
सबको बूढ़ा होना है।
अत्यंत सुंदर पंक्तियाँ। धन्यवाद।
प्रतीक अवस्थी"समीर"
11 अगस्त 2019लाजवाब