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कमज़ोर नहीं है हिन्दी

14 सितम्बर 2016

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हर बार की तरह इस बार भी १४ सितम्बर हिन्दी की याद दिला गया । हिन्दी का विकास हो रहा है, प्रचार - प्रसार में बड़ी -बड़ी बातें कहते हुए नीति नियन्ता, सब कितना अच्छा लगता है । मन को भी यह जानकर सांत्वना मिल जाती है कि वर्ष में एक दिन तो ऐसा आता है जिस दिन हिन्दी हर दिल अजीज हो जाती है । हिंदी दिवस के मौके पर राजनैतिक गलियारों में और स्वयं सेवी संगठनों के परिसरों में बेवजह का हल्ला किया जाता है, कहते हैं कि हिन्दी को प्रोत्साहन नहीं मिल रहा । भारत में सारे विभागीय काम विदेशी भाषा में होते है । ऐसे ही न जाने कितने कथित हिंदी प्रेमी आरोप - प्रत्यारोप करते हुए हिन्दी की संवैधनिक स्थिति को ही कटघरे में खड़ा कर देते हैं । कलुषित राजनीति को चमकाने के लिए दोषारोपण करते हुए हिन्दी को क्षेत्रीय परिसीमाओं में खदेड़ने की बाते भी आम होती है । लेकिन भाषा के नाम पर राजनीति करने वाले यह भूल जाते है कि हिन्दी किसी परिचय की मोहताज नहीं है । हिन्दी ने तो मुगलों और अंग्रेजों के राज में भी हार नहीं मानी, उत्तरोत्तर प्रगति करती गयी । कवि तुलसीदास , सूरदास , कबीर , रहीम , बिहारी और घनानंद जैसे सरस्वती साधकों ने हिन्दी को काफी मजबूती से विभिन्न रूपों में स्थापित किया है । चाहे हिन्दी , 'अवधी' और 'बृज' भाषा के रूप में रही हो या पालि , प्राकृत और अपभ्रन्श के रूप में, चाहें मगही , भोजपुरी और मैथिली के रूप में हर तरह से हिन्दी परिष्कृत हो कर आई है । पृथ्वीराजरासो , खुमाणरासो , परमालरासो , पद्मावत , अखरावट और आखरीकलाम जैसी रचनाओं ने हिन्दी को समृद्ध किया है । अंग्रेजों की प्रताड़ना के बीच मुंशी प्रेम चन्द्र जैसे व्यक्तित्व ने हिन्दी के गौरव शाली इतिहास की नींव रख उसे पुष्पित और पल्लवित किया । जिसे भारतेन्दु हरिश्चन्द्र , जयशंकरप्रसाद , मैथिलीशरण गुप्त , महावीरप्रसाद द्विवेदी , महादेवी वर्मा , निर्मल वर्मा आदि साहित्यकारों व इनके समकालीनों ने हिन्दी को नई बुलंदी पर पहुँचाया । भारत के आजाद होने के पश्चात १९५२ में हिन्दी भाषी संख्या के आधार पर विश्व में ५ वें स्थान पर थे । ८० के दशक में हिन्दी , चीनी और अंग्रेजी के बाद भाषियों की संख्या के आधार पर तीसरे पायदान पर थी । समय के साथ धीरे - धीरे २१ वीं सदी के पहले दशक में ही हिन्दी बोलने वालों की संख्या के आधार पर चीनी के बाद दूसरे क्रम पर आ गयी है । समालोचक इस जगह एक बात कहते हैं कि 'ज्यादा लोगों द्वारा बोलने वाली भाषा' हिन्दी इसलिए बन गयी है क्योंकि भारत की आबादी अधिक है । ठीक है मान लिया उनका कहना सही है लेकिन भाषा का प्रसार तो मात्रभूमि से होता है । आज जब हम वैश्वीकरण के युग में हैं तो एक दूसरे की संस्कृति और भाषा से परिचित हो रहे है । भारत को यह मौका काफी देर से मिला । जब सारे देश वि ज्ञान और विकास की कहानी गढ़ रहे थे, भारत गुलामी की जंजीरों में ज़कड़ा हुआ था । किन्तु आजादी के बाद विशाल आबादी को सँभालते हुए विकास करना प्रायः दुष्कर कार्य था , वो भी तब जब लोकतान्त्रिक व्यवस्था हो । लेकिन भारत बड़ी सूझ - बूझ से काम लेते हुए यहाँ तक आ पहुंचा है, जहाँ उसे विश्व की बड़ी और प्रभावी अर्थ व्यवस्था कहा जा रहा है । इस सफलता के पीछे भारत को एक सूत्र में पिरोने वाली भाषा हिन्दी का अहम योगदान रहा है ।

जो लोग कहते है कि भारत में आधिकारिक रूप से हिन्दी की जगह अंग्रेजी का वर्चस्व है वह कभी यह ध्यान नहीं देते कि उनके बच्चे भी हिन्दी छोड़ कुछ और ही पढ़ रहे हैं । कहते हैं बड़े दफ्तरों से लेकर न्यायालय तक अंग्रेजी का ही बोलबाला है , ऐसे में इसके पीछे का मनो विज्ञान जान लेना जरुरी है । अंग्रेजी सर्वमान्य वैश्विक भाषा है । वैश्विक विकास और वैश्विक संबंधों को अंग्रेजी ही आगे बढ़ा सकती है । ऐसे में अंग्रेजी को दोष देना उचित नहीं है । हाँ भारतीयों का अँग्रेज़ बनना ज़रूर हिन्दी को प्रभावित कर रहा है । उच्च आर्थिक स्तर का व्यक्ति हिन्दी बोलने में हीनता का अनुभव करता है तो आधुनिक युग का मध्यम वर्ग भी उसकी नकल का प्रयास करता है । फिर भी हिन्दी कहीं से कमजोर नहीं हुई है वरन् कई सोपान आगे बढ़ी है । शासन - प्रशासन को दोष देना आसान है लेकिन अपने गिरेबान में झांकने की हिम्मत नहीं है । हम बच्चों को अंग्रेजी शिक्षा ही दिलाना चाहते है । हिन्दी को अगर हम घर में ही दुत्कारेंगे तो स्वाभाविक ही उसका ह्रास ही होगा । यहाँ तक कि नयी पीढ़ी खाना , पीना , उठना , बैठना और तो और दैनिक कार्य भी अंग्रेजी में करने लगी है । ऐसे में हिन्दी को ज़रूर ठेस लगती है । हिन्दी राष्ट्रभाषा नहीं राजभाषा है , इससे भी कोई फर्क नही पड़ता । उसे फ़र्क तब पड़ता है, जब कोई क्षेत्रीय भाषा कहकर इसे अपमानित करता है । जब सवा सौ करोड़ लोगों में हिन्दी बोलने वालों की संख्या महज़ ४० फीसदी हो । जब हिन्दी की रोटी अंग्रेज़ी की आग पर पकती है, तब हिन्दी को कष्ट होता है । अरे हिन्दी ने तो अपने बेटों से यहाँ तक कह दिया कि उर्दू और अंग्रेज़ी तुम्हारी मौसियाँ हैं । सारी भाषाएँ तुम्हारी पूज्य हैं । लेकिन आधुनिक भारतीयों के समझ में अब रिश्तों की अहमियत कम हो गयी है ।

आज विश्व भर में ५० करोड़ से ज्यादा लोग हिन्दी बोलते हैं, १०० करोड़ से ज्यादा हिन्दी समझते हैं । यूरोप में लगभग २५ हिन्दी पत्र - पत्रिकाओं का प्रकाशन होता है । अमेरिका के लोग बड़ी संख्या में हिन्दी सीख रहें हैं । ऐसे में हमें खुशी होनी चाहिए कि भारतीय भाषा वैश्विक हो रही है । लेकिन हम हिन्दी को लेकर गंभीर नहीं हैं ।

आरोपों और प्रत्यारोपों की जगह सभी मिलकर हिन्दी को थोड़ी भी गम्भीरता से लें तो हिंदी विश्व की सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा के साथ ही सुदृढ़ वैश्विक भाषा भी बन सकती है । वैज्ञानिकों के अनुसार हिन्दी एक वैज्ञानिक भाषा है । हिन्दी भावों की भाषा है । ऐसे में हिन्दी की स्वीकार्यता में तनिक भी संदेह नहीं है । बस आवश्यकता है हिन्दी को गर्व से अपनी पहचान के रूप में स्थापित करने की । यह हो पाएगा कि नहीं इसमें क्षेत्रीय परिदृश्य को देखते हुए समस्याएँ नज़र आती हैं ।


शोभा भारद्वाज

शोभा भारद्वाज

हिंदी भावों की भाषा है अति सुंदर

24 सितम्बर 2016

राघवेन्द्र कुमार

राघवेन्द्र कुमार

स्नेहा जी हम आपके तर्कों से सहमत भी हैं और आपकी चिन्ता से वाकिफ़ भी... हिन्दी भाषा की उन्नति के क्षेत्र में वाकई किसी भी संस्था या सरकार ने कोई सराहनीय कार्य नहीं किया है... पाठ्यक्रम भी कमोबेश अर्थहीन ही है... लेकिन हिन्दी भारत के जन-जन के मन में बसी है... भावों की भाषा है... इसलिए अन्य भाषाओं के मुकाबले दृढ़ भी है... केवल प्रयास की आवश्यकता है...

21 सितम्बर 2016

स्नेहा

स्नेहा

यदि आप मुझे कुछ यूरोप में, जैसा आपने लिखा या फिर अपने देश में ही कुछ ढंग की मैगज़ीन और संस्थाओ की जानकारी दे सके तो शायद में भी किसी तरह से सहयोग दे पायूँ . धन्यवाद

15 सितम्बर 2016

स्नेहा

स्नेहा

काफी अच्छा लिखा है आपने हिंदी भाषा के बारे में, फिर भी न जाने क्यूँ मुझे निबंध सा प्रतीत हुआ. मैं स्वयं हिंदी को उसके उचित स्थान और सम्मानित रूप में देखना चाहती हूँ. परंतु अभी तक कोई भी प्रभावशाली मंच नहीं दिखा जहाँ हिंदी की बढ़ोतरी के लिए कोई कार्य हो रहा हो. मैंने भरपूर कोशिश की कि अपने बच्चो को हिंदी में सक्षम करूँ और दसवीं तक उन्हें खुद पढ़ाया. परंतु देखा जाए तो अभी तक दो सौ साल पुराने कवि, दोहे, और प्राचीन साहित्य. आखिर कब तक बच्चे को पढ़ने में चाव रहेगा? कोर्स की किताबो में ज़बरदस्त बदलाव की ज़रुरत है.

15 सितम्बर 2016

प्रियंका शर्मा

प्रियंका शर्मा

हमें अपनी हिंदी भाषा पे गर्व है ...

14 सितम्बर 2016

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रचनाएँ
राघव का रचना संसार : कुछ कविताएँ और कुछ लेख
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इस पुस्तक में कविता व लेख दोनों सम्मिलित हैं। यह भविष्य हेतु दिग्दर्शिका की भाँति है।
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परिवर्तन

7 सितम्बर 2015
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वक्त बदला हालात बदले, या इंसान बदला है ।रात अब भी स्याह है, दिन भी अब तक उजला है । कल भी मां बाप, बच्चों को पालते थे ।आज तक माँ बाप, कर्तव्य पथ पर अडिग हैं ।सन्तान की खुशी उन्हें, कल भी अनमोल थी । सन्तानों का ही सुख, आज भी उनकी पूँजी है ।कल तक माँ-बाप की खुशी, बच्चों की आन होती थी ।माँ-बाप पर क़ुर्

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गन्दी बस्ती

15 सितम्बर 2015
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अन्त:विचारों में उलझा न जाने कब मैं एक अजीब सी बस्ती में आ गया । बस्ती बड़ी ही खुशनुमा और रंगीन थी । किन्तु वहां की हवा में,  अनजान सी उदासी थी । खुशबुएं वहां की मदहोश कर रहीं थीं । पर एहसास होता था घोर बेचारगी का, टूटती सांसे जैसेफ़साने बना रही थीं । गजरे और पान की दूकानें एक ही साथ थीं । मधुशालाएं

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गुरु वन्दना

17 अक्टूबर 2015
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स्वीकार करो गुरु मम् प्रणाम, मैं शरण आपकी आपकी आया हूँ ।मैं तर जाऊँ भव सागर से, वह युक्ति जानने आया हूँ ।बिन गुरु ज्ञान नहीं जग में, यह वेद पुराण सभी कहते ।गुरु की महिमा के सन्मुख, ईश्वर भी स्वयं झुके रहते ।ज्ञान मिले किस विधि से प्रभु, वह युक्ति जानने आया हूँ । स्वीकार करो गुरु मम् प्रण

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प्रियतम की याद

30 अक्टूबर 2015
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प्रियतमकी यादपीर तुम्हारे हृदय की प्रियतमनयन नीर बन फूट रही है ।दुःख का सागर धैर्य खो रहाव्यथा की सरिता उमड़ रही है ।पीर तुम्हारे हृदय की प्रियतमनयन नीर बन फूट रही है ।अक्स तुम्हारा मुझ में बसताऔर हमारी साँसें तुझ में ।आह तुम्हारी मेरे प्रियतमबन शूल हृदय को छेद रही है ।पीर तुम्हारे हृदय की प्रियतमनय

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प्रियतम की याद

30 अक्टूबर 2015
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प्रियतमकी यादपीर तुम्हारे हृदय की प्रियतमनयन नीर बन फूट रही है ।दुःख का सागर धैर्य खो रहाव्यथा की सरिता उमड़ रही है ।पीर तुम्हारे हृदय की प्रियतमनयन नीर बन फूट रही है ।अक्स तुम्हारा मुझ में बसताऔर हमारी साँसें तुझ में ।आह तुम्हारी मेरे प्रियतमबन शूल हृदय को छेद रही है ।पीर तुम्हारे हृदय की प्रियतमनय

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प्रियतम की याद

30 अक्टूबर 2015
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प्रियतमकी यादपीर तुम्हारे हृदय की प्रियतमनयन नीर बन फूट रही है ।दुःख का सागर धैर्य खो रहाव्यथा की सरिता उमड़ रही है ।पीर तुम्हारे हृदय की प्रियतमनयन नीर बन फूट रही है ।अक्स तुम्हारा मुझ में बसताऔर हमारी साँसें तुझ में ।आह तुम्हारी मेरे प्रियतमबन शूल हृदय को छेद रही है ।पीर तुम्हारे हृदय की प्रियतमनय

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विकृतियाँ समाज की...

28 अप्रैल 2016
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 विकृतियाँ समाज कीमेरे मन कीबेचैनी को,क्या शब्द बनालिख सकते हो ?तक़लीफ़ेंअन्तर्मन की,क्या शब्दों मेबुन सकते हो ?लिखो हमारे मनके भीतर, उमड़ रहेतूफ़ानों को ।लिखो हमारेजिस्मानी,पिघल रहेअरमानों को ।प्यास प्यार कीलिख डालो,लिख डालो जख़्मीरूहें ।लिखो ख़्वाहिशोंजो कच्ची हैं,द

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राजनीत के दाँव पर खाकी

25 जून 2016
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राजनीत के दाँवपर खाकी       विगत कुछ वर्षों से हमारे देश में सहिष्णुता और असहिष्णुतापर बड़े जोर – शोर से बहस चल रही है । आबादी के हिसाब से देश के सबसे बड़े प्रदेशउत्तर प्रदेश में साम्प्रदायिक सौहार्द आज बड़ी ही बदतर स्थिति में है ।मुज़फ़्फ़रनगर के दंगों के बाद बिसाहड़ा काण्ड ने इस बहस को और उग्र कर

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शोध आधारित रिपोर्ट के कुछ अंश........... उत्तर प्रदेश में नकल का काला साम्राज्य

3 जुलाई 2016
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      उत्तर प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था पूरी तरह अव्यवस्था और नकल माफ़ियाओं की गिरफ़्त में है । प्राथमिक स्तर पर लचर व्यवस्था और अयोग्य शिक्षकों की फ़ौज भारत के स्वर्णिम भविष्य को दीमक की तरह चाट – चाट कर ख़त्म करने पर आमादा है । प्रतिवर्ष उत्तर प्रदेश में प्राथमिक / उच्च प्राथमिक स्तर पर सरकारी शिक्ष

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कश्मीर के नौहट्टा में शहीद हुए सीआरपीएफ कमांडेंट प्रमोद कुमार को देश ने दी अन्तिम विदाई

18 अगस्त 2016
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सोमवार को अपनी टुकड़ी से इंडिपेंडेंस – डे परेड की सलामी लेने वाले केन्द्रीय रिजर्व पुलिस फोर्स (CRPF) के कमांडेंट प्रमोद कुमार सलामी के एक घंटे बाद शुरू हुई आतंकी मुठभेड़ में देश की रक्षा करते हुए श्रीनगर

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कृपया इसे भी देखें

26 अगस्त 2016
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http://www.indianvoice24.comकृपया इसे देखें और मार्गदर्शन भी करें । आपके विचारों भी स्वागत है...आशीष सागर- कलम तोड़ने वाले अक्सर किरदार यहाँ बिक जाते है , खबर के अगले दिन ही रद्दी में अख़बार यहाँ बिक जाते हैं । ब्यूरोक्रेसी की क्या बात करे अब तमाशबीन है जनता भी, […] News Channel of Indians

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कमज़ोर नहीं है हिन्दी

14 सितम्बर 2016
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हर बार की तरह इस बार भी १४ सितम्बर हिन्दी की याद दिला गया । हिन्दी का विकास हो रहा है, प्रचार - प्रसार में बड़ी -बड़ी बातें कहते हुए नीति नियन्ता, सब कितना अच्छा लगता है । मन को भी यह जानकर सांत्वना मिल जाती है कि वर्ष में एक दिन तो ऐसा आता है जिस दिन हिन्दी हर दिल अजीज हो जाती है । हिंदी दिवस के मौक

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दीपक

21 अक्टूबर 2016
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मृत्तिका निर्मित दिए सेहै अमावस काँपती ।जलते हुए नन्हें दिए से डरकर निशा है भागती ।दीपक देह की अभि व्यंजना सेरात जगमग हो रही ।दीपकों के धर्म से राज भी अब जागती ।मृत्तिका निर्मित दिए सेहै अमावस काँपती । देह मानव की है माटीदीप जिससे है रचा ।स्नेह है उसमें भरा घृतजीवात्म

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आप के आशीर्वाद का आकांक्षी... http://www.unvanprkashan.com/details.php?book=28

22 अक्टूबर 2016
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देश बेंच के खा डाला है नेता और दलालों ने

9 दिसम्बर 2016
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देश बेंच के खा डाला है नेता और दलालों ने ।जनता के घर डाका डाला मिलकर नमक हरामों ने ।खादी टोपी बर्बादी की बनी आज परिचायक है ।चोर उचक्के आज बन गए जनता के जन नायक हैं ।गाली – गोली किस्मत अपनी जीवन फँसा सवालों में ।देश बेंच के खा डाला है नेता और दलालों ने ।सरकारी जोंकें चिपकी हैं लोकतन्त्र के सीने में ।

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हे कृषक-पुत्र! हे लौह-पुरुष!

1 नवम्बर 2021
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<p><strong>——-राघवेन्द्र कुमार त्रिपाठी ‘राघव’</strong></p> <p>जीवट जिनका लाखों जन को<br> सम्बल देता

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