रिपोर्ट में तो 'एचआईवी पॉजीटिव' के लक्षण दिख रहे हैं, लिफाफे से लैब के कागज़ों को निकालकर देखते हुए उस डॉक्टर ने कहा!
अवधेश को काटो तो खून नहीं. हज़ारों युवकों की तरह, वह बिहार के एक गाँव से नोएडा आया था.
मन उसका भी काम में नहीं लगता था, लेकिन उसके बाबूजी ने उसे जबरदस्ती शहर भेज दिया. गाँव पर उसका घर बहुत बड़ा था, लेकिन यहाँ एक कमरे में दो पार्टनर रहते थे. बाहर के खाने और उसकी अनियमितता ने उसके गोरे रंग को धुंधला कर दिया था.
अवधेश डॉक्टर की बात सुनकर कई मिनट तक कुछ बोल न सका.
बड़े हॉस्पिटल के डॉक्टर ने फिर मनोवैज्ञानिक सवाल पूछा- तुम बाहर का खाना खाते हो?
जी हाँ!
छोले भठूरे, गोलगप्पे भी...?
जी!
इसीलिए तो तुम्हारा लिवर भी डैमेज हो गया है. अब तो तुम कुछ ही महीनों के मेहमान हो. ऐसा करो कि जल्दी से एडमिट हो जाओ. काउंटर पर 10 हजार जमा करा देना.
यह सुनकर अवधेश रोने लगा.
रोते- रोते बोला, डॉक्टर साहब! 10 हजार घर से मंगाने पड़ेंगे, मेरे पास तो नहीं हैं.
घरवालों को फोन करके अवधेश ने जब बताया तो वहां भी रोना धोना मच गया. जल्दी से पैसों का इंतजाम करके अवधेश की बहन के बैंक अकाउंट में भेज दिया गया. उसकी बहन शादी के बाद दिल्ली में शिफ्ट हो गयी थी.
जब उसके मोबाइल में पैसे डिपॉजिट होने का अलर्ट आया तो उसने अपने मायके फोन किया.
उसको सारी बातें तब पता चलीं. उसने अवधेश को अपने पास बुलाकर अपने फेमिली डॉक्टर को दिखाया.
अवधेश को 'जोन्डिश' हो गया था. जब उसके फेमिली डॉक्टर को सारी कहानी पता चली तो वह हंसने लगे.
अवधेश को 'एड्स' नहीं हुआ था!
दो हफ्ते में वह पूरी तरह ठीक हो गया. लेकिन उसके मन में एक प्रश्न चलता रहा कि-
डॉक्टर तो भगवान होते ... .... ... ... ... ... ... ... ... ... थे !!!!
उसने यह ठान लिया था कि बड़े हॉस्पिटलों में ही नहीं, बल्कि आगे से वह छोटे डॉक्टरों से भी सलाह लेगा!
- मिथिलेश 'अनभिज्ञ'
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