दिल्ली की गालिब एकेडमी में प्रोग्राम था. वजह, पाकिस्तान जा बसे मशहूर शायर हफीज जलंधरी आए थे. इन्हीं बरखुरदार ने केएल सहगल का गाया उस जमाने का यूथ एंथम, ‘अभी तो मैं जवान हूं’ लिखा था. पार्टिशन के बाद हफीज अपने पुराने मुल्क पहली मर्तबा आए थे. हर तरफ जोश था. देश में जनता पार्टी की सरकार थी. अटल बिहारी वाजपेयी विदेश मंत्री थे. उन्हें इस प्रोग्राम में बुलाया गया. चीफ गेस्ट के तौर पर.
वाजपेयी ने सुस्त माहौल में शोख रंग घोला और बोले,
‘मैं यहां इसलिए नहीं बुलाया गया क्योंकि नेता हूं. इसलिए हाजिर हूं क्योंकि कवि हूं. फिर वह हफीज की तरफ मुड़े और बोले, कभी हम लोग एक थे. हमारा मुल्क एक था. लेकिन सियासत ने हमारी बीच एक मोटी दीवार खड़ी कर दी है. मैं नहीं कहता कि दीवार गिरा दी जा सकती है, पर क्यों न एक दो ईंटें खिसका दी जाएं. तांक झांक तो हो.’
पाकिस्तान का राष्ट्रगान ‘पाक सरजमीन ए शादबाद. किश्वर ए हसीन शादबाद’ लिखने वाले हफीज जलंधरी ये सुनकर रोने लगे.
अटल की पाकिस्तान से जुड़ी एक और स्पीच का बहुत जिक्र होता है. फरवरी 1999 में लाहौर के गवर्नर रेसिडेंस के बरामदे में दी गई स्पीच. ये वो वक्त था जब वाजपेयी दोस्ती का पैगाम बस सदा-ए-सरहद पर सवार हो लिए थे. इरादा वाघा बॉर्डर से लौटने का था. मगर पाकिस्तानी पीएम नवाज शरीफ ने इसरार किया. यूं न जाने देंगे. एक रात की मेहमाननवाजी तो बनती है. अगले रोज लाहौर में प्रोग्राम हुआ. वाजपेयी के वेलकम के लिए. नेता, अभिनेता, रईस, फौजी सब आए.
इस मौके पर वाजपेयी ने पीएमओ की लिखी स्पीच पढ़ने से इनकार कर दिया. मन से बोले. तरंग से बोले. क्या बोले, (आगे पढ़ें...)