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स्कैच ---`तीन मित्र तीन बात` के (तीसरे मित्र का विवरण )

28 सितम्बर 2016

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स्कैच ---`तीन मित्र तीन बात` के (तीसरे मित्र का विवरण ) -

मेरे एक और मित्र हैं -- उन्मुक्त पाण्डेय | जिन्होंने प्रेम विवाह किया है | लेकिन मेरे ये मित्र भी अपनी पत्नी ` रचना सेखड़ी ` से अब संतुष्ट प्रतीत नहीं होते हैं | उन्हें अपनी पत्नी से ढेर सारी शिकायतें हैं | जो वह सीधे पूछने पर तो नहीं बताते , पर कभी कभी बांतों बातों में उनका संकेत अवश्य दे जाते हैं | उनका कहना है कि अब रचना उन्हें पहले जैसा प्यार नहीं करती | शुरू शुरू में तो शादी के बाद वह घंटों घंटों घर पर उनकी प्रतीक्षा करती थी | जरा सी देर हो जाने पर जोर दार डांट तक लगा देती थी | पर अब तो उसके मन में दो पल भी बात करने की उत्सुकता नहीं रह गई है | अगर शिकायत करो तो कहती है कि अब मैं कालिज में पढने वाली रचना नहीं हूँ | जो सुबह ही कपड़े पहन कर तैयार हो जाऊं , माँ के हाथ का बनां जल्दी जल्दी नाश्ता करूं और पंन चक्की वाले मोड़ पर पहुँच जाऊं | अब मुझे घर के दस काम करने हैं | अपने छोटे से बच्चे को देखना है | उसके लिए सर्दियों के सूती ऊनी कपड़े तैयार करने हैं | स्वेटर बुनने हैं | ऊँन घर में रखी है , पर सलाई में फंदे तक नहीं डाल पाई हूँ | पर तुम तो मुझे सहारा देने के बजाय अपने काम बता कर मेरी व्यस्तता और बढा देते हो | क्या दो मिनट बैठ कर अपनी कमीज में बटन भी नहीं लगा सकते |

रचना अपने विद्यार्थी जीवन से ही एक अत्यंत मेधावी व् लोक प्रिय छात्रा रही है | वह बी .ए से ले कर एम .ए तक जितने समय कालिज में रही , हर वर्ष सर्व सुन्दरी व् सर्वाधिक नियमित छात्रा का पुरूस्कार उसी ने अर्जित किया | उन्मुक्त व् रचना बी .ए से ही साथ साथ एक कक्षा में पढ़ते थे | बस वहीं से इनकी जान पहचान हुई और फिर वह धीरे धीरे शादी के पवित्र बंधन में परिवर्तित हो गई | रचना एक पंजाबी परिवार से होने के कारण उन्मुक्त का समस्त परिवार इस शादी के पक्ष में नहीं था | किन्तु फिर भी जब उन्मुक्त नहीं माना तो शादी में घर के कुछ लोग बारात में तो गये पर चढत होने के बाद कोई भी बुजुर्ग व् घर का व्यक्ति फेरों पर जाने के लिए नहीं रुका | जिससे फिर मुझे ही मण्डप में केवल बड़े भाई की भूमिका ही नहीं , सप्त पदी के बाद वर वधु को पुष्प वर्षा कर आशीर्वाद देने की रस्म भी पूरी करनी पड़ी |

इन दोनों की विवाह के बाद वैसे तो में आठ दस दिन में अवश्य ही एक दो बार इनके घर अवश्य हो आया करता था | पर इस बार कुछ पारिवारिक समस्याओं के कारण मैं एक माह तक उधर नहीं जा सका | इसके बाद जब एक दिन में अचानक वहाँ पहुँचा तो द्वार में प्रवेश करते ही सामने उपस्थित द्रश्य को देख कर चकित रह गया | ठीक बीच आंगन में रचना की अटेची रखी थी और वह वरांडे में अपने एक वर्षीय बेटे के कपड़े बदल रही थी | उन्मुक्त उसके पास खड़ा कभी कान पकड़ कर , कभी हाथ जोड़ कर उससे बार बार माफी मांग रहा था |`` प्लीज रचना इस तरह घर छोड़ कर मत जाओ | ऐसी गलती अब फिर कभी नहीं होगी | यह मेरा तुमसे पक्का वादा है |``

पर रचना उसकी किसी बात का कोई उत्तर नहीं दे रही थी | जब वह बच्चे को कपड़े पहना कर अपनी अटेची उठाने के लिए आगे बढी तो मुझे सामने पाकर एक साथ मुझसे जोर से चिपट गई और कंधे पर सर रख कर फफकते हुए बोली -- `` बड़े भैया ! अब मैं बहुत थक गई हूँ | अब मुझसे और नहीं सहा जाता | ऐसा लगता है जैसे सारी जिन्दगी ही हाथ से फिसल गई है | सारे सपने टुकड़े टुकड़े हो गये हैं | आपने तो मुझे बहुत मन से सदा प्रसन्न रहने का आशीर्वाद शादी पर दिया था | पर शायद वह भी मेरे कुण्ठित भाग्य के सामने बौना पड़ गया |``

`` रचना `` मैंने उसकी पीठ थपथपाते हुए कहा --`` नहीं , आशीर्वाद कभी व्यर्थ नहीं जाते | वह तो प्रति पल हर बुरी दृष्टि से रक्षा करने के लिए एक सशक्त कवच का काम करते हैं | हाँ ! कभी कभी कोई प्रदूषित हवा का झोंका अवश्य हमारी जिन्दगी को कुछ क्षण के लिए झकझोरने में सफल हो जाता है | पर हमें उससे विचलित नहीं होना चाहिए | वह क्षण तो हमारे मानसिक संतुलन की परीक्षा के क्षण होते हैं | अगर हम उन क्षणों में जरा सा भी बहक गये तो यह समझो कि हमने प्यार ,सम्मान , सहानुभूति के रूप में संचित की हुई अपनी समस्त पूंजी को हमेशा हमेशा के लिए खो दिया |``

मेरी बात सुनकर रचना कुछ नहीं बोली | हम फिर अतिथि कक्ष में जाकर बैठ गये | रचना बड़े सोफे पर मेरे बराबर ही बैठी | उन्मुक्त भी हमारे पीछे पीछे आकर चुप चाप पास वाले एकल सोफे पर बैठ गया | उसके मुरझाये चेहरे पर चिंता व् ग्लानि की गहरी रेखाएं स्पष्ट दिखाई दे रहीं थी | कुछ देर मौन रहने के बाद मैंने बड़े प्यार से उन्मुक्त से पूछा --`` क्या हुआ था तुम दोनों के बीच ?``

उन्मुक्त बोला --``भैया ! कल ` चन्दन ` के विवाह की वर्ष गाँठ थी | उसने हम सबको ही उसमें बुलाया था | रचना जब चलने के लिए शाम को तैयार होने लगी तो मुझसे बोली --`` देखो , मैं पार्टी में चल तो रहीं हूँ , पर तुम जितना हो सके मेरे आस पास ही रहना | मेरी कमर का नचका अभी ज्यादा ठीक नहीं है | मैं न अभी ठीक से झुक पा रही हूँ , न शीघ्रता से मुड़ पा रही हूँ | इसलिए मैं न तो दक्ष को अधिक देर गोदी में ले पाऊँगी और न बिचलने पर उसे संभाल पाऊंगी |`` तो मैंने कहा--`` अगर तुम्हारी तबियत ज्यादा ठीक नहीं है तो तुम पार्टी में मत जाओ | क्योंकि वहाँ तो मेरे नये पुराने सब दोस्त आयेंगे | अगर मैं उनसे बातें करने में घिर गया तो तुम्हें बहुत परेशानी हो जायेगी | बस भैया मेरा इतना कहना था कि रचना ने तुरन्त अपने पार्टी वाले सारे कपड़े उतार कर , घर के कपड़े पहन लिए और बोली --`` अब तुम आराम से जाओ और अपने दोस्तों के साथ पार्टी एन्ज्वाय करो |``

इतना कह कर जब उन्मुक्त कुछ चुप सा हुआ तो मैंने धीरे से पूछा --`` बस इतनी ही बात हुई थी |`` फिर रचना बोली -- `` उन्मुक्त डरो मत | सब कुछ भैया को सच सच बतादो | मैं यहाँ बैठी हूँ | तुम्हारी सत्य निष्ट पतिव्रता पत्नी | अगर उन्हें असह गुस्सा भी आया तो अपने पति देव के साथ अपने सामने कुछ अनिष्ट नहीं होने दूंगी | यह मेरा तुमसे वादा है |``

रचना की बातें सुन कर उन्मुक्त जैसे पूरी तरह टूट गया | वह एक साथ अपने सोफे से उठा और मेरे पास बैठी रचना की गोद में सर रख कर फूट फूट कर रोते हुए टूटे बिखरे शब्दों में बोला --`` प्लीज रचना | रचना प्लीज |``

वातावरण बहुत गम्भीर हो गया था | कुछ देर शांत रहने के बाद मैंने रचना से धीरे से पूछा --`` क्या बात हुई थी ?`` रचना भी इस समय पूरी तरह सामान्य नहीं थी | वह अपनी गोदी में रखे उन्मुक्त के सर पर उँगलियाँ फिराते हुए बोली--`` ये जब पार्टी से देर रात बाद घर लौटे तो बुरी तरह पैर डगमगा रहे थे | आँखें मशाल की तरह जल रहीं थीं | मुँह से इतनी शराब की गंध आ रही थी कि आपको क्या बताऊँ | मैंने तब तो इनसे कुछ नहीं कहा | पर मुझे अपने भाग्य पर सोच सोच कर रात भर नींद नहीं आई | बस सुबह तक हर पल अपनी ज़िन्दगी के पुराने पृष्ट उलटती रही | उन्मुक्त कैसे मेरे जीवन में आया था | हम दोनों ने अपने बी .ए . के पूरे दो वर्ष बस एक दूसरे को कक्षाओं में चोरी से देखने में बिता दिये थे | एम.ए. पूर्वार्द्ध में पहली बार बड़े संकोच के साथ डरते डरते इसने एक दिन मुझसे कालिज नोट्स की एक कापी माँगी थी | फिर यह धीरे धीरे घर आने लगा था | पर जब तक माँ जोर दे कर अंदर आने को न कहें , यह कभी घर में कदम नहीं रखता था |

एक दिन तो भैया इसने ऐसा काम किया कि कोई सोच नहीं सकता | उस दिन जब यह घर आया तो मैं अपनी चप्पलों की उधडी सिलाई ठीक करानें मोची के पास जा रही थी | मैंने बस जैसे यह बात इसे बताई तो ये तुरन्त मुझसे बोला --`` अरे ! आप ये टूटी चप्पलें पहन कर इतनी दूर कैसे जायेंगी | अगर गिर गईं तो क्या चोट नहीं लगेगी | लाइए , इन्हें मुझे दीजिये | मैं अभी साइकिल से दो मिनट में इन्हें ठीक करा कर लाता हूँ | जब मैंने चप्पलें देनें में आनाकानी की तो इसने तुरन्त नीचे बैठ कर मेरे पैरों से दोनों चप्पलें उतार ली और ऐसे ही उन्हें हाथ में लेकर तेजी से उन्हें बनवानें चला गया | सच कितना सज्जन व् सीधा था तब ये | इसकी हर बात में कितनी मिठास और भोलापन भरा होता था | मेरे हर सुख दुःख का कितना ध्यान रखता था |

एक बार की बात मैं आपको और बताऊँ | यह मेरी उपेक्षा को देख कर बहत परेशान था | दरअसल उन दिनों मेरी तबियत अधिक ठीक नहीं चल रही थी | तो मैं बस मरे मन से ही काँलिज जा रही थी | इसलिए एक दिन मैंने न तो कक्षाओं में एक भी बार इसकी तरफ देखा , न छुट्टी के बाद घर लौटते समय इस बात पर ध्यान दिया कि यह लगातार मेरे पीछे पीछे चल रहा है | बस मेरी इस बात से यह बुरी तरह परेशान हो गया | इसे लगा कि मैं इससे किसी बात को लेकर बहुत नाराज हूँ और इससे बात नहीं करना चाह रही हूँ | तो ये हमारे घर के बराबर लगे नीम के पेड़ के नीचे आकर बैठ गया और बेचैनी से मेरे बालकनी में आने की प्रतीक्षा करने लगा | जब काफी देर बाद मैं बालकनी में सूखे कपड़े डोरी से उतरने आई तो पहले तो इसने अपने दोनों कान पकड़ कर मुझसे माफी सी माँगी फिर अपना पत्र एक छोटे से पत्थर में लिपेट कर मेरे पास बालकनी में फ़ेंक दिया |
पर दुर्भाग्य से उस समय नीम पर एक कौवा बैठा था | उसने उन्मुक्त के पत्र वाले कागज में कुछ खाने की चीज समझी और वह उसे मेरे उठाने से पहले ही झपट्टा मार कर चोंच में दबा कर पेड़ पर ले गया | अब तो इन महाशय के होश उड़ गये | कहीं यह पत्र कौवा हमारे घर में न गिरा दे | कहीं यह मेरे पापा के हाथ में पड़ गया तो क्या होगा | ये रात के बारह बजे तक पेड़ के नीचे घूम घूम कर बस यह प्रतीक्षा करते रहे कि कब पत्र कौवे के पंजे से छूट कर नीचे गिरे और ये उसे उठा कर अपने घर जाएँ | पर रात को उसने पत्र नीचे नहीं डाला | फिर ये घर तो चले गये | पर रात भर नींद नहीं आई और अगले दिन सुबह पांच बजे ही उठ कर पेड़ के नीचे पत्र खोजने आ गये | पर इस बार सौभाग्य से इन्हें अपना पत्र सुरक्षित एक कोने में पड़ा मिल गया |``

इसके बाद रचना काफी देर के लिए चुप हो गई | पर उसने उन्मुक्त के सिर पर उँगलियाँ फिराना बंद नहीं किया | शायद अब उसका गुस्सा काफी कम हो गया था | जब बहुत देर तक किसी ने कोई बात नहीं की तो वह ही उन्मुक्त का गोदी में रखा सर चूमते हुए उससे बोली --`` उठो ! मैं बड़े भैया के लिए चाय बना कर लाती हूँ |`` पर उसने उसे और अधिक बांहों में जकडते हुए कहा --`` नहीं , मैं नहीं उठूंगा | पहले मुझसे वादा करो कि तुम घर छोड़ कर कहीं नहीं जाओगी |``

अब रचना उसकी कमर सहलाते हुए बोली--`` मैं तुम्हें छोड़ के भला कहाँ जाऊंगी | तुम्हारे सिवा अब इस दुनियाँ में मेरा है कौन | मम्मी नराज हैं | सासू माँ नाराज हैं | बस रह गई भैया की मम्मी | तो उन्हें भी कितना परेशान करूं |``

रचना की बात सुन कर जब उन्मुक्त ने अपना सिर उसकी गोदी से उठाया तो वह अपना कुर्ता बुरी तरह उसके आंसुओं से भीगा देख कर चकित रह गई | उसने तुरन्त मेरी चिता किये बिना उसे अपने वक्ष से लगा लिया और उसे प्यार करते हुए बोली--`` अरे , तुम तब से लगातार रो रहे हो | जब तुम मुझे इतना प्यार करते हो तो कभी कभी मेरा मन इतना क्यों दुखा देते हो | क्या मेरा रोना तुम्हें बहुत अच्छा लगता है | उन्मुक्त मैं सच कह रही हूँ , अब तुम्हारा भी मेरे सिवा दुनियां में कोई नहीं है | अगर तुमने मुझे संभाल कर नहीं रखा और मैं किसी दिन मर गई तो जीवन भर बस ऐसे ही याद कर कर रोते रहोगे |``

उन्मुक्त बोला --`` अब कल से देखना तुम्हें घर के हर द्वार पर अपना पुराना वाला उन्मुक्त खड़ा दिखाई देगा | वही भोला भाला , तुम्हारी हर सेवा के लिए तैयार रहने वाला | मुझे तुम्हारी हर आदत का पता चल गया है | तुम न तो मुझे अपनी कोई समस्या बताना चाहती हो , न कोई छोटी बड़ी इच्छा | तुम्हें मेरा पार्टी में न जाने वाला सुझाव अगर अच्छा नहीं लगा था तो क्या तुम मुझसे यह बात जोर दे कर नहीं कह सकती थी | तुमने तो मुझे कई बार खूब डांट तक लगाई है |``

``यह बात शादी से पहले की है |``

`` तो अब क्या हो गया | रचना ! तुम मेरी पत्नी तो बहुत बाद में हो | सबसे पहले तुम मेरी बहुत अच्छी दोस्त और हर पल सही मार्ग दर्शन करने वाली मेरी गाइड हो और यह मेरा तुम्हारा रिश्ता सच कह रहा हूँ , जब जीवित हूँ तब तक रहेगा | सच , अगर कल तुम साथ होतीं तो कोई मुझे जबरदस्ती शराब नहीं पिला पाता | पर मैं यह सब कह कर अपनी गलती की कोई सफाई नहीं दे रहा हूँ | गलती तो मुझसे एक नहीं दो हुई हैं | एक तुम्हें अकेला छोड़ कर जाने की , दूसरे शराब पीने की | पता नहीं यह सब कैसे और किस मानसिकता में हो गया | पर मैं भैया के सामने तुमसे वादा कर रहा हूँ कि आगे ऐसा फिर कभी नहीं होगा | मैनें तुम्हें चार साल कड़ी तपस्या कर के पाया है , मैं तुम्हें ऐसे नहीं खो सकता | तुम तो मेरा सबसे सुन्दर सपना हो | अब कल से तुम दक्ष की देख रेख के अतिरिक्त घर का और कोई काम नहीं करोगी | मैं अभी सडक पार वाली बाई से जाकर बात करता हूँ | और हाँ , तुम सुबह से बहुत तनाव में हो | तुम्हें आराम की सख्त जरूरत है | तुम भैया के पास बैठ कर बात करो , बढिया सी तुलसी अदरक वाली चाय मैं बनाकर लाता हूँ |``

जब उन्मुक्त चाय बनाने रसोई में चला गया तो मैंने रचना की ओर देखते हुए हंस कर कहा --`` अब मेरे आशीर्वाद के विषय में तुम्हारा क्या विचार है ?``

`` भैया `` वह सोफे पर बैठते हुए बोली --`` आप बिलकुल सच कह रहे थे कि बड़ों के आशीर्वाद आपत्तियों में एक अभेद कवच का काम करते हैं | आज तो यह बात मेरे लिए पूरी तरह सच हो गई | आप विश्वास नहीं करेंगे कि आपके आने से पहले मैं कितनी अधिक निराश थी | मुझे कुछ पता नहीं था कि मैं कहाँ जा रही हूँ , क्या करने वाली हूँ | अगर आप समय पर न आते तो पता नहीं क्या होता |``

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समाप्त

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