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रावण के महिमांडन का खंडन

11 अक्टूबर 2016

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रावण के महिमामंडन का खंडन

आजकल सोशल मिडिया पर एक चलन बहुत तेजी से चल पड़ा है , रावण के बखान..!! वो एक प्रकांड पंडित था जी....उसने माता सीता को कभी छुआ नहीं जी....अपनी बहन के अपमान के लिये पूरा कुल दाव पर लगा दिया जी.....!!! मेरे कुछ मित्र ब्राह्मण होने के कारण रावण के महिमांडन में लगे हुए हैं अधोलिखित लेख में उनके तर्कों का क्रमवार खंडन करने का प्रयास किया है .


१ रावण स्त्रियों को भोग की वास्तु नहीं समझता था , यदि ऐसा होता तो उसने माता सीता का अनिष्ट कर दिया होता !


मैं इस तर्क का खंडन करता हूँ क्योंकि अनेको अवसर पर रावण ने स्त्रियों को उनकी इच्छा के विरुद्ध सम्भोग के लिए विवश किया और अनेकों अवसर पर वह शापित भी हुआ जिनमे से एक देवी वेदमती , उसकी पुत्रवधु रंभा और नलकुबेर द्वारा दिए गए शाप प्रमुख हैं , नलकुबेर का शाप मुख्य कारण था जिसके भय से रावण ने माता सीता के अनिष्ट का प्रयत्न नहीं किया किया क्योकि ऐसा करने से उसके प्राण संकट में पड़ सकते थे


२ रावण में राजनीति क शिष्टाचार का अभाव नहीं था , अंगद का अपमान उसने इस कारण से किया क्योकि अंगद अपने पिता के शत्रु की सहायत कर रहे थे


मैं इस तर्क का खण्डन करता हूँ क्योकि अंगद केवल अपने पिता महाराज बलि की अंतिम अ ज्ञान का पालन कर रहे थे जिसके अनुसार उन्हें सुग्रीव और श्री राम की सेवा करनी थी


३ रावण दुःसाहसी नहीं वरन असुरो के उथान का सहस कर रहा था , उन लोगों को संरक्षण दे रहा था जो समाज में पिछड़े हुए थे


इस तर्क का खण्डन तो करने की भी आवश्यकता नहीं क्योकि हम सभी जानतें हैं की रावण किसी के उत्थान के लिए नहीं वर्ण ऊनी महत्वाकांक्षा के लिए सतत संघर्षरत था जब रावण अंतिम युद्ध के लिए जा रहा था तब उस से महारानी मंदोदरी ने पुछा था की हे नाथ इस युद्ध में अब आप यदि विजयी हुए तो उस से आपको क्या मिलेगा .. उसका उत्तर था यश ,जिस पर मंदोदरी ने पुछा वो यह यश अब किसके लिए कमा रहा है तो उसने कहा अपने लिए यह था "स्वार्थ प्रेरित दुह साहस !


४ रावण एक आदर्श राजा था , सोने की लंका , वैभव शाली साम्राज्य / रावण एक आदर्श पति भी था उसने आजीवन महारानी मंदोदरी का सम्मान किया / वो एक आदर्श पिता था जिससे उसके पुत्र असीम स्नेह करते थे और जिसके कारण वो उसके लिए प्राण त्यागने में भी संकोच नहीं करते थे /


राजा वह है जो प्रजा के हित की दूरदर्शिता रखे और ऐसे कर्म करे जिस से उसकी प्रजा का कल्याण हो यदि ऐसा होता तो अपनी कामुक महत्वकांशा के चलते वह सीता हरण करके अपनी प्रजा को महाविनाश के युद्ध की ओर न धकेलता .

पति वह है जो अपनी पत्नियों , को सम्मान दे , उनके विचारों को सुने और उन पर चिंतन करे ..महारानी मंदोदरी के विचार पर तो उसने कान ही नहीं धरे कभी .. और ऊपर से एक प्रसंग में तो उसने माता सीता से यह तक कहा की यदि वह लंका की पटरानी बनना स्वीकार करेंगी तो मंदोदर i आदि सभी रानियों को तुम्हारी दासी बना दूंगा .. पत्नी कोई मुद्रा नहीं जिससे कोई सौदा किया जाये

पिता वह है जो संतान को उचित मार्ग दिखाए .. रावण के ब्राह्मण कुल में कितने संत , महात्मा और सज्जन श्रेणी के पुरुष थे .. सभी के सभी भोगी ,अत्याचारी , कामुक और निष्ठुर थे .. और वह भी उचित पिता नहीं जो अपनी अंधी कामुकता की अग्नि में अपने समृद्ध वंश को झोंक दे

माता के द्वारा भी सीता को वापस कर आने की आज्ञा का उल्लंघन भी पुत्र धर्म पर प्रश्न उठता है यदि वह माता की तामसिक आज्ञा का पालन कर सकता था तो सात्विक आज्ञा का तिरष्कार क्यों?


लंका का इतिहास भी कुछ और ही है .. कथाओं के अनुसार देव शिल्पी विश्वकर्मा ने सिंघल द्वीप के त्रिकूट पर्वत के सुन्दर नामक शिखर पर स्वर्णमयी लंका पूरी की रचना के थी जिसका निर्माण भगवान् शिव ने माता पार्वती के लिए करवाया था .. उसके वास्तु पूजन की विधि रावण के पिता ऋषि विश्रवा ने करवाई थी और शिव की प्रसनता पर वर मांगे जाने के लिए कहने पर अपनी पत्नी कैकसी की प्रेरणा से दक्षिण के रूप में लंका पूरी को ही मांग लिया था इस क्रुद्ध माता पार्वती ने ऋषि विश्रवा को लंका में ही उनके समस्त कुल के नष्ट हो जाने का महाभंयकर श्राप दिया था , बहुत विनय करने पर उन्होंने सिर्फ विभीषण को जीवनदान दिया था


५ उस काल में महिलाओं को राजनीती में उच्च स्थान प्राप्त नहीं थे इसलिए रावण मन्दोदरी आदि की सलाह पर ध्यान नहीं देता था


नारी को राजनीति में उचित और सम्मानित स्थान प्राप्त था .. महारानी कैकेयी के युद्ध अभियान , महरानी तारा का कूटनीतिक और राजनीतिक ज्ञान और महाराज बाली द्वारा अंतिम समय में सुग्रीव को तारा की मंत्रणा का परामर्श नारी के राजनीतिक महत्व का प्रमाण है .. हाँ रावण रुपी अंहकारी पुरुष नारी को वस्तु से अधिक कुछ नहीं समझ पाए


६ “ हनुमान रावण के इष्ट रूद्र रूप में नहीं वरन एक चोर की भांति लंका में गए थे इसीलिए उसने उनका अपमान किया और उनको दण्डित किया था


श्री हनुमान को चोर कहने का में तीव्र खंडन करता हूँ , युद्ध नीति अनुसार शत्रु देश के बलाबल को जाने के लिए और सीता माता की खोज के लिए भी रावण की लंका में प्रवेश चोरी नहीं कहा जा सकता उसे कूटनीति की भाषा में गुप्तचर कहते हैं .. . इसलिए हनुमान के एक गुप्तचर अभियान को चोरी कह कर राष्ट्र हित में कार्यरत गुप्तचरों का अपमान नहीं किया जा सकता और वह भक्त ही क्या जो अपने द्वार पर आये इष्ट को पहचान न सके .. शिव का तथाकथित परमभक्त .. जब इस परिचय को पा चूका था की सामने बंधा हुआ वानर हनुमान है .. तो भी वह वही करता रहा क्या आप कहते हैं हनुमान हो एक पहचान पत्र रखना चाइये था जिसमे लिखा हो की में ग्यारहवां रूद्र हूँ


शिव भक्ति ,ब्राह्मण जाती और ज्ञान की प्राप्ति .. आपको पूजनीय नहीं बना सकती यदि आप के कर्म अशुभ हों ..


मै रावण को सिर्फ इसलिये अपना ईष्ट नहीं मान सकता कि वो एक ब्राह्मण था..मेरे इष्ट कर्म प्रधान है..ना कि मेरी जाती प्रधान..!!! अपने आराध्यों मे जाती ढूंढना छोड़िये.. जिस राम को स्वयं भगवान् शिव पूजते हो उसके ऐश्वर्या को सिद्ध करने के लिए किसी विभीषण की कोई जरूरत इतिहास को न कभी थी और न ही कभी पड़ेगी .. अतः रावण के महिमा मंडान में श्री राम का निरादर न करें एक आदर्श पुत्र , एक आदर्श शिष्य , एक आदर्श भाई , एक आदर्श राजा , एक आदर्श पति जिसके गुण वशिष्ठ और वाल्मीकि जैसे ऋषियों और तुलसी जैसे त्यागी ने गाये हैं उन्हें रावण की कीमत पर कृपया धूमिल करने की भूल न करें


आप सभी को विजयादशमी की शुभकामनाएं

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