shabd-logo

कविता

17 अक्टूबर 2016

118 बार देखा गया 118

बदल रहा है रूप प्रकृति का बदल रहा पैगाम.

खून के प्यासे घूम रहे शठ धरती के आवाम.

-----------टुकड़ों में बँट जगह-जगह पर लोग लगाते नारा.

-----------अगुवा उसी को चुनते सब जो होता ठग हत्यारा.

किसी को कुछ भी कहते निर्भय मुँह में नहीं लगाम.

बदल रहा है रूप प्रकृति का बदल रहा पैगाम.

----------फूलों की कोमलता बदली उगे कंट के झाड़.

----------घर में लगा कराने चोरी रक्षक बना किवाड़.

कर्मवीर सत्यपथ पर चलने वाला है नाकाम.

बदल रहा है रूप प्रकृति का बदल रहा पैगाम.

-----------शुष्क हो गये जलद गगन के लगे उगलने आग.

------------इसीलिये सब खेल रहे आपस में खूनी फाग..

सुहृद सलोना सगा हो कितना पल में करते खाम.

बदल रहा है रूप प्रकृति का बदल रहा पैगाम.

-------------आग्नेयास्त्र का सफल प्रदर्शन करके बाहुबली.

------------मचा रहा आतंक सब जगह फै ली है खलबली.

चाह रहे सब स्वाहा होना कर भीषण संग्राम.

बदल रहा है रूप प्रकृति का बदल रहा पैगाम.

------------स्वांसों पर संयम ही नहीं चाह रहे ब्रह्माण्ड.

------------जाति धर्म सम्प्रदाय में बँट कर सब करते है काण्ड.

''निर्झर'' लड़ते प्रभु को कहकर ईश्वर अल्ला राम.

बदल रहा है रूप प्रकृति का बदल रहा पैगाम.

उदय नारायण सिंह''निर्झर आजमगढ़ी'' की अन्य किताबें

1

कविता

13 जुलाई 2016
0
1
0

 मेरी इच्छा है कि मैं उसे जहर दे दूँ.जो शांति अमन भंग करे उसे कहर दे दूँ.भोर जिंदगी ही छीनता जो निर्दयी बन कर--उसको तपती हुई जेठ की दोपहर दे दूँ.हद करके दरिंदगी की जो घूमे शान से--उसको सूनामी की चक्रवाती लहर दे दूँ..कहता है शहर नेरा जलाता है बनकर चिराग--कैसे मै उसको ''निर्झर'' अपना शहर दे दूँ.-----न

2

कविता

17 अक्टूबर 2016
0
1
0

बदल रहा है रूप प्रकृति का बदल रहा पैगाम. खून के प्यासे घूम रहे शठ धरती के आवाम. -----------टुकड़ों में बँट जगह-जगह पर लोग लगाते नारा. -----------अगुवा उसी को चुनते सब जो होता ठग हत्यारा. किसी को कुछ भी कहते निर्भय मुँह में नहीं लगाम. बदल रहा है रूप प्रकृति का बदल रहा

3

मुक्तक----

19 अक्टूबर 2016
0
0
0

जमाने के थपेड़ों को कभी जो सह नहीं सकता.समय सागर की धारा में निरंतर बह नहीं सकता.नहीं जज्बा हो जिसमें मुश्किलों को मात देने की--करे वह लाख कोशिश फिर भी सुख से रह नहीं सकता.-----अदय आतंक भ्रष्टाचार का सन्हार करना है.लिखे सच लेख नी निर्भीक पैनी धार करना है.भले बरसे अंगा

4

कविता

25 अक्टूबर 2016
0
0
0

दर्पण टूटा, टुकड़ा बिखरा-- सबने देखा. पर हृद का टुकड़ा-- कौन देखता.साक्षी देकर सौगंध लिया- जीवन भर साथ निभाने का. हर व्यथा झेल आँसू पीकर-- संग जीने का मर जाने का. पतझड़ में झरा, हरित उपवन- सबने देखा. उजड़ा हिय-उपवन- कौन देखता. तड़पन की पीड़ा सस्म

5

कविता

25 अक्टूबर 2016
0
1
0

बदल रहा है रूप प्रकृति का बदल रहा पैगाम. खून के प्यासे घूम रहे शठ धरती के आवाम. -----------टुकड़ों में बँट जगह-जगह पर लोग लगाते नारा. -----------अगुवा उसी को चुनते सब जो होता ठग हत्यारा. किसी को कुछ भी कहते निर्भय मुँह में नहीं लगाम. बदल रहा है रूप प्रकृति का बदल रहा प

6

कविता

31 अक्टूबर 2016
0
0
0

प्रज्ज्वलित अखण्ड दीप , अपने को बनाना होगा. घर में घिरे अँधेरे को, फिर चलके मिटाना होगा. -----कलुषित मन का विचार-, ----छाया है अँधेरा बन कर. ----क्रोधित ईर्ष्या द्वेष--- -----सामने खड़ा हुआ तनकर. उर से मिटा कर इसको, स्नेह दीपक जलाना होगा. घर में घिरे अँधेरे को, फिर चलके मि

7

कविता

9 नवम्बर 2016
0
0
0

होगा जब तक बंद नहीं गद्दारों का महिमा मण्डन. तब तक इसी तरह से भारत माता करती रहेगी क्रंदन. ------जो नीति आततायियों ने, ------------------अपनायी थी इस देश में. ------सत्ता लोलुप कर रहे कृत्य वह, ---------------------- देश भक्त के भेष में. सत्यपथी की निंदा जब तक अपराधी का होगा वंदन. तब तक इसी त

8

कविता

9 नवम्बर 2016
0
3
0

जले दीपक हो उजेला. वेदना का घोर तम, पथ खोजता- चल रहा राही अकेला. छद्मवेशी नियति की प्रवन्चना. उर-उदधि उर्मि पर लिख रही संवेदना. मौन होकर समय-ग्रन्थ पढ रहा जीवन-- कर रही श्वॉसें निरन्तर विवेचना.सज रही नेपथ्य में नव नाटिका-- खेल खेलेगी अ खेला. श्वेत-श्याम परिखन शाश्वत

9

कविता

19 दिसम्बर 2016
0
0
0

हृदय पर चित्र आपका उतार लिया है.----- बे हिसाब इस तरह से प्यार किया है. भले तुम्हारे ख्वाब में आता हो कोई और-- -----हर श्वाँस तेरी याद की लेकर के जिया है. बे हिसाब इस तरह से प्यार किया है.फूलों सा सँजोकर उसे रखा है हृदय में--------- प्

10

कविता

19 दिसम्बर 2016
0
0
1

भारत की धरती वीरों से आज नहीं है खाली. अंगारे पर राजनीति की राख पुती है काली. ----------संविधान के छद्म रूप से देश आज है आहत. --------कर्मवीर सच्चे लोगों को कदम-कदम पर डाहत. लूट रहा है खुलेआम वह बना देश का माली. अंगारे पर राजनीति की राख पुती है काली. -----------क्लीव हो र

11

कविता

23 जनवरी 2017
0
0
0

विष भरे स्वर्ण के घत सा जो, पहने सुंदर परिधान.--------------------------बचाना उनसे हे भगवान.छल कपट कुटिल का भाव मृदुल, -------------वाणी में घोले कहता.बनकर रखवाला शुभ चिंतक,----------फिर खेत अभय हो चरता.

12

मुक्तक

10 फरवरी 2017
0
0
0

यह चुनाव बन गया प्रतिष्ठा कृष्ण कंस के वंसज का.दानव देव विचारों वाले शठ झूठ प्रपंची उखमज का.सत्य निष्ट अरु देश भक्त जो जनता की सेवा में लीन--देख रहे हैं चुप होकर कृत भ्र्ष्ट माफिया दिग्गज का.----निर्झर आजमगढ़ी

13

छंद---

15 फरवरी 2017
0
0
0

मित्रता का हाथ जो बढ़ाना जानते हैं दुष्ट, जानते हैं अरियों का हाथ भी वे काटना. प्रशस्त पथ पर पड़े पहाड़ और खाइयों को, जानते हैं वीर उसे खोदना व पाटना. भीख भी तू माँग लेगा कर में कटोरा लेकर, तेरा तो स्वभाव ही है तलुओं को चाटना. बाट ना मिलेगा यदि बाट में हमारे आया, अच्छी तर

14

कविता

20 फरवरी 2017
0
0
0

होकर पीत पाँवड़े झरते. -----रग-रग में कटु पीड़ा भरते ------. तीर चुभा करके तुषार तन--- देकर दंश प्रताणित करते. खड़े विपिन एकाकीपन का होता है आभास. जब पतझड़ का करके अवसान.--आयेगा जीवन मधुमास . कली कोपलें की हरियाली -----तरु पिहकेगी कोयल काली .-

15

मुक्तक

20 फरवरी 2017
0
2
0

चक्र समय का चल रहा शाश्वत अरु निर्वाध। बैठा जीव हिडोले पर पूरी करता है साध। पल पर है विश्वास नहीं ले लक्ष्य जी रहा भारी----अलभ सुलभ होने पर भी न मिटती भूख अगाध। जो पास में है उसको अभिमान मानिये.अभिमान है जिसे उसे शैतान मानिये.आभास करा देता

16

कविता

21 फरवरी 2017
0
1
1

पहने खद्दर मुख में पान.सस्मित कर अपना गुणगान. जेब में रख सारा विभाग--- रख हर बाधा का समाधान. हर अधिकारी से मिलने को-- ----------------अपनाते हो हर हथकंडा. -----------------धन्य हो हे चौराहे के पंडा. चौकी थाना विकास खंड. या कहीं से कोई मिला

17

कुंडलिया

26 फरवरी 2017
0
1
0

छाया वसंत चुनाव का मची हुई किलकारी. रंग बिरंगे लांछन की सब चला रहे पिचकारी. चला रहे पिचकारी आरोपों का रंग गुलाल. खेदि-खेदि अरु पकड़-पकड़ पोते दूजे के गाल.निर्झर चोला बदले नेता दिखा रहे निज माया .चिंतित जनता के

18

कुंडलिया

26 फरवरी 2017
0
2
2

कान ले गया कौवा सुनकर न देखते कान. कौवा के पीछे भागें भारत के दिव्य महान.भारत के

19

मुक्तक

26 फरवरी 2017
0
3
3

गंतव्य मार्ग से हट कर चल रही चुनाव की रेल. लक्ष्य और सिद्धांत त्याग कर नेता करें कुलेल . आक्षेप और आरोप का चुन करके तीखे कंकण-- एक दूसरे पर ''निर्झर' सब चला रहे हैं गुलेल.------निर

20

कविता

17 जुलाई 2017
0
0
0

भारत की धरती वीरों से आज नहीं है खाली. अंगारे पर राजनीति की राख पुती है काली.----------संविधान के छद्म रूप से देश आज है आहत.--------कर्मवीर सच्चे लोगों को कदम-कदम पर डाहत. लूट रहा है खुलेआम वह बना देश का माली. अंगारे पर राजनीति की राख पुत

21

विचार

8 अगस्त 2017
0
1
2

इस समय संक्रमण काल चल रहा है. 1000 वर्ष तक अपनी आपसी फूट और सत्तालोलुपता के कारणा भारत मुगलो और अंग्रेजों का गुलाम रहा. आजादी प्राप्त करने हेतु जिन असंख्य लोगों ने अपना खून बहाया उसको धोकर गद्दार फिर सत्ता में आकर भारत को लूटते रहे और आज भी लूट रहे हैं. वर्तमान में रा

22

काविता

15 अगस्त 2017
0
0
1

स्वतंत्रता की सहनाई में गूँज रहा वलिदान. अश्रु भरी आँखों से चुप हो सुनता हिंदुस्तान. ------------शोणित से कण-कण सींचा जो, आज उपेक्षित है. ------------इतिहास के पन्नों में खोजो, कोने में अंकित है. आतताइयों के दलाल अब करते हैं गुणगान. अश्रु भ

23

कविता

15 अगस्त 2017
0
1
2

मित्रों आज भगवान श्री कृष्ण की जन्माष्टमी है. इस उत्सव मेरी एक रचना-- ------------------------------------------- पुन; महाभारत होने का दीख रहा आसार. बनने को सारथी कृष्ण जी जल्दी लो अवतार. ------------------सेवक रक्षक बनकर सारे नेता लूट रहे

24

गजल

13 अक्टूबर 2017
0
1
0

एक-एक कर घट रहा, जीवन का भण्डार.बढ़ना उसको समझ हम,मना रहे त्यौहार.-------------------------------------------------मन से मन मिलता नहीं, तन से करें प्रयास.मन से मन मिल जाय यदि घूमें बन कर दास.-------------------------------------------------- अच्छा बुरा बता करते निंदा

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए