गंगा जमुना संस्कृति का समन्वय करने वाला ये देश जिसके गौरव का लोहा समूचा विश्व प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से मानता चला आ रहा है| ये देश सूफियों और हिन्दू धर्म गुरुओं की कर्म भूमि रहा है ये देश उन महा पुरुषों की धरोहर है,जिन्होंने इसे अपनी साधना से सींचा है | ये वो सोभाग्यशाली भूमि है जिसे एक और हजरत निजामुद्दीन ओलिया, अमीर खुशरो, मोईनुद्दीन चिश्ती जैसे महान सूफी तो दूसरी ओर जगत गुरु शंकराचार्य, स्वामी विवेकानंद और महर्षि रमन जैसे मनीषी मिले| ये वो मनीषी है जिन्हें सीमाएं कभी बाँध ना सकी और इन्होने शांति और मानवता का सन्देश न केवल इसी राष्ट्र में अपितु भारत की सीमाओं से परे दुसरे देशों तक पहुंचाया आज वो देश स्वयं अमानवीय कृत्यों, हिंसा एवं अशांति का शिकार है| इन महापुरुषों ने कभी एसा सोचा भी नही होगा की इनके द्वारा स्थापित किये गये आदर्शों को हम लोग इस तरह से तार –तार कर देंगे| ये मानव जाति के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण प्रश्न है और कारण है की भारत वर्ष की दो महान शक्तियां अपना समय और धन एक गलत दिशा की और प्रवाहित कर रही है | ये दो शक्तियां है भारतवर्ष की दो आँखें हिन्दू और मुसलमान | ये वो दो महान शक्तियां है जिन्होंने देश को आज़ाद कराने में अपने प्राणों का बलिदान दिया है, ये वो शक्तियां है जो आज भी यदि एक हो जाएँ तो समूचे विश्व को अपनी इच्छा के आधीन कर सकती है| परन्तु ये समय इन दोनों ही शक्तियों के दुर्भाग्य का समय है | जिसमें ये दोनों शक्तियां अपनी नासमझी के कारन एक दुसरे के विरोध में खड़ी है और कारण है “धर्मं” प्राचीन समय में महापुरुष धर्म की परिभाषा बताते थे की “धर्म वो है जो मानव के श्रेष्ठ गुणों को विकसित करें मानव में एक दुसरे के प्रति प्रेम,दया और करुना का भाव जागृत करे ” और केवल हिन्दू धर्म ही नही बल्कि देश में जितने भी धर्म है उन सब धर्मो का सार भी यही है फर्क है तो केवल शब्दों का लेकिन कुछ तथाकथित लोगों ने धर्म के मायने ही बदल दिए है उन्होंने धर्म को कट्टरता के साथ जोड़ दिया हैं| जबकि धर्म तो मानव के हृदय तल के कोमल भावों का नाम हैं | लेकिन दुर्भाग्य ये की आज हम धर्म की वास्तविकता से परे धर्म के नाम पर ही एक दुसरे को मारने को आमादा है | आज पुरे विश्व की दृष्टी भारत देश पर बनी हुई है| जहां एक व्यक्ति अलग-अलग राष्ट्रों में घूम-घूम कर अपने देश की गरिमा को बढ़ाने का प्रयत्न कर रहा है एवं देश में युवाओं के लिए नया रोजगार लाने महंगाई कम करने में लगा हुआ है | वहीं कुछ पॉकेट छाप नेता पुरे देश में बचकाने मुद्दे उठाकर देश की छवि बिगाड़ रहे है बखि ये आरक्षण पर राजनीति करते है कभी दलितों पर तो कभी धर्म पर वहीं कुछ तथाकथित धर्मगुरु धर्म के नाम पर लोगो को बरगला रहे है और ये केवल किसी धर्म विशेष की समस्या नही है बल्कि सभी धर्मो में रुग्ण मानसिकता वाले लोग है | शक्तियां धर्म के नाम पर मंदिर और मज्जिद के लिए आपस में लड़ रही है | कुरआन शरीफ में ऐसा कहीं कोई ज़िक्र नही है की मज्जिद का निर्माण यदि नही हुआ तो अल्लाह नाराज़ हो जाएगा निदा फसली का एक शेर मुझे याद आता है की “घर बहुत दूर है मेरा मस्जिद से तो ,क्यूँ ना आज रोते हुए बच्चे को हंसाया जाए ” और ना ही राम ायण में ऐसा कहीं है फिर क्यों आज इस बात को हम समझ ने को तैयार नही है की ये भावनाएं हमे बाँट रही है जिसका लाभ कुछ मानसिक विकृति वाले लोग उठा रहे है, और अपना ऊल्लू सीधा करने के लिए समय-समय पर इस मसले का उपयोग कर देश के सांप्रदायिक सोहार्द को हानि पहुंचते है|| आज समाज को सेतुबंध की आवश्यकता है वो सेतुबंध जो समाज को जोड़े वो धर्म; धर्म हो ही नही सकता जो एक धर्म को दुसरे धर्म से लडाये | आज हम बाबरी मस्जिद और राम मंदिर का गीत अलाप रहे है क्या इन दोनों मे से किसी एक का निर्माण ही इस समस्या का हल है | राम मंदिर और बाबरी मस्जिद निर्माण की समस्या का केवल एक समाधान हो सकता है और वो ये है की जितने भी हिन्दू जो अपने आप को रामभक्त मानते है और वो सारे मुसलमान जो अपने आप को सच्चा मुसलमान मानते है जिनकी धर्म की रक्षा में पूरी निष्ठां है वो सभी अपने –अपने ट्रस्ट में जो भी पैसा इकट्ठा हुआ है, उसका उपयोग उस विवादित स्थल पर एक विश्व स्तर का अस्पताल खोलने में करें जहां सभी धर्मो के लोगो का बिना किसी भेदभाव के निशुल्क ईलाज हो या एक ऐसा विश्वस्तरीय विद्यालय खोले जहाँ के एक ही आँगन में बच्चो को कुरआन की आयतें और गीता के श्लोक पढाये जायें तभी सच्चे अर्थों में हम धार्मिक या ईमान वाले कहलायेंगे और आने वाली अपनी नस्लों को कुछ अच्छा देकर जायेंगे | ये सेतुबंध ही इस समाया का समाधान हो सकता है |आज के समय की आवश्यकता मंदिर या मस्जिद बनाना नही है बल्कि लोगों के ह्रदय में मानवता रुपी देवता की स्थापना करना तथा मानव को ही चलता फिरता मंदिर बना देने की आवश्यकता है |