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मेरे द्वार

18 अक्टूबर 2016

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डगर डगर,

गुलशन चली !
बहकी हुई बयार !


डाल डाल,

तितलियों के,

मदहोशी उदगार !


फूल फूल,

मुसकान है,

भृमर करें सतकार !


कली कली,

करती मलय !

मान मेरी मनुहार !


खिल खिल,

तुझे रिझाऊंगी,

कल है अपनी बार !


ठहर ठहर जा,

पवन बस !

इक दिन मेर द्वार ! !

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हिंदी दिवस

16 सितम्बर 2015
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जब तक 'दिवस' मनायेगी,हिंदी 'विवश' कहायेगी ।शेष दिवस विसमृत करने से,'मृत काया' अमृत भरने से,प्राण न ये पा पाएगी !जन गण मन स्वीकारे तब ,हर दिन इसे पुकारे तब ,वरना ये कुम्हलायेगी !काम अनेकों ,नाम अनेकों ,लड़े मुक्ति संग्राम अनेकों ,ध्वजा अगर रुक जायेगी !जिसका हक़ सिंघासन हो ,हश्र अधोतल आसन हो ,कब रान

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मेरे द्वार

18 अक्टूबर 2016
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डगर डगर,गुलशन चली !बहकी हुई बयार !डाल डाल,तितलियों के,मदहोशी उदगार !फूल फूल,मुसकान है,भृमर करें सतकार !कली कली,करती मलय !मान मेरी मनुहार !खिल खिल,तुझे रिझाऊंगी,कल है अपनी बार !ठहर ठहर जा,पवन बस !इक दिन मेर द्वार ! !

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19 अक्टूबर 2016
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18 सितम्बर 2017
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दौर-ए-जुमला लेके आया इक अजब राही ,उसके जलवों को लिखेगी वक्त की स्याही । लोगों ने सर पे बिठाया मान फरिश्ता लूट ली सम्मोहनी से उसने वाहवाही । भाषणों, उद्बोधनों, संम्बोधनों के साथ ,दूर की बेरोजगारी और मँहगाई । कोसते रहते थे जिसको चंद दिन पहले, हर कदम महिमा उसी '

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गली में उसी घर धमाका हुआ ,कई रोज से जिसमें फाँका हुआ । जमाने को आतिश का धोखा हुआ ,हकीकत सुनी तो सनाका हुआ । वो मासूमों के पेट की आग थी ,उसी की तपिश का तमाशा हुआ । नसीबन' की रोटी दबी गिद्ध पांव ,छुडाई तो इज्जत का टांका हुआ । वो खुद्दारी की आग में जल

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