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मैं वापिस आऊंगा - सूरज बड़त्या

19 अक्टूबर 2016

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मैं वापिस आऊंगा

- सूरज बड़त्या


जब समूची कायनात
और पूरी सयानात की फ़ौज
खाकी निक्कर बदल पेंट पहन
आपकी खिलाफत को उठ-बैठ करती-फिरती हो
अफगानी-फ़रमानी फिजाओं के जंगल में
भेडिये मनु-माफिक दहाड़ी-हुंकार भरे....
आदमखोर आत्माएं, इंसानी शक्लों में
सरे-राह, क़त्ल-गाह खोद रहे हों
सुनहले सपनों की केसरिया-दरिया
बाजू खोल बुला-सुला रही हो
हवाओं का रुख, फिजां का मुख
बदरंग रास्तों और कातिलों की शकल ले रहा हो
ऐसे में,
खुबसूरत इंसानी वजूद
सपने
आस- उम्मीद से भरा तुम्हारा प्यार
और ,दुस्साहस उमंगो का दरिया
इकलोती जगह बचती है मेरे लिए
जहां मैं ,
फिर-फिर वापिस लौटता हूँ उर्जा स्रोत में डूबकने........
ठहर जाओ,... सत्यानाशी-भगवावासी
करमजले कंगारुओं,
मैं लौटूंगा,फिरफिर लौटूंगा, इसे तुम तय मानना
अपनी हवा, अपनी फिजां ,
अपने देश और अपने बच्चों की मुस्कराहट को
तुमसे, तुम्हारे भाड़े के वैचारिक टट्टुओं से ,
वापिस पाने के लिए
मुझसे देशभक्ति प्रमाण न मांगो पाखण्डी देशभक्तों
और न ही हमारी काबिलियत का इम्तहान लो
ये हमारा देश है ,
हमारे दादा, पडदादा , सडदादा, खडदादा
और शुरूआती फक्कड़ दादा भी
इसी खेत-खलिहान की मिटटी मैं दफ़न हैं..
इसे हंसी में मत उडाओ.. मरदुदो
अपने आकाओं-फाकाओं से पूछो..
जो गुलामी के जद में जकडे, आजादी नहीं ...
हिन्दू-मुस्लिम गा रहे थे...
हम, हमारे पिता, पडोसी कल्लन चचा,
और भीखू कसाई, रामा बंजारा, पीलू तेली
हलिया खटीक, गब्दू भंगी, मलखू चमार
आज़ादी के मतवाले बने थे सीना ताने सब के सब
ये हम मतवालों का ही देश है नाशुक्रों
मैं तुमसे फिरफिर से कहता हूँ
और इसबार एलानिया ढंग से कहता हूँ
इसे तय मान लिख लेना कहीं पे भी
मैं आउंगा ...
जरुर आऊंगा . अपने मुल्क, अपने देश
अपने पुरखों की इस धरती को आज़ाद कराने को
मैं आउंगा दोस्त, मेरे हमदम, मैं आउंगा.... !!!!

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अगर दोबारा कहीं मिले चौराहे परमुबारक मुँह मत मोड़ना, आरक्षण से है, रहेगे, आगे भी बढ़ेगे, हमें मिटाने से हम नहीं मिटेगेजहाँ भी दफ़न होगे, आपके रास्ते पे वटवृक्ष बन ऊग आयेगे ....-हरेश परमार

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हरा पेड़ कोयला बन जायेगा....

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तुं ही है अभी मंजर में आ देख बहुजनो के बंजर मेंअभी तो सोया हुआ है,कुम्भकर्ण सी नींद में, तुझे जो करना है कर ले अभी हीजागेगा जब बंजर सारा, तेरा मंजर बदल देगा....वक्त की नजाकत का फायदा लिया है तूनेअपने लोगो को सत्ता में देखलाडला बनवाया है तुझेमोहरा जब उतरेगा,वह कफ़न किसी और का पुकारेगा,वह हाल बस होगा,

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फटी हुई चादर

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ठण्ड रात थीउनकी चादर फटी हुई थी,चादर कंप कंपा रही थी,कभी इधर-कभी उधर लुढ़क रहीथी.बस सिर्फ चादर फटी हुईथी,गहरी अँधेरी रात थी,ठण्ड उससे भी ज्यादा ढीठथी....रात जितनी लंबी थी, उससेभी ज्यादा लंबी हो रही थीचादर फटी हुई थी...नींद आँखों में होते हुएभी ठंडे तारों को देख रहीथी...

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ओरांग उटांग !!!! - सूरज बडत्या

27 अक्टूबर 2016
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ओरांग उटांग !!!!परम आदरणीय आंबेडकर विरोधियों !!!आपकी महिमा अपरम्पार हो !!! जय जय कार हो !!आपकी सारी बहस को मैंने बेहद बारीकी के साथ सतर्क निगाह से पढ़ा , और मैं अब इस नतीजे पर पहुंचा हूँ की आपके विचारों को मैं पूरी तरह से खारिज कर सकूँ !!! इसे अपने पूर्वज से असहमति दर्ज करना और उनकी सीमाएं दीखाना नही

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14 नवम्बर 2016
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जब एक फैसला हुआउस दिन एक बुजुर्ग की नजर में चमक दिखी थीदुसरे दिन बेंको में अपने नोट जो कुछ ही दिन पहले निकले थेबदलने गएउनका बीपी बस बढ़ने लगा था...वह तो देश को अपने सीने में बसा के आया थापर जब अपने आस-पास देखा बूढ़े-गरीब अपना काम छोड़कर अपने लिए खड़े थेदेश के नाम परमैं सोचते हुए आगे बढा ही थाबैंक में पै

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15 नवम्बर 2016
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आंसूआपने रोहित वेमुला की माँ की आँखों में आंसू देखे थे ?आपने नजीब की माँ की आँखों में भी आंसू देखे थे ?पर आपको वह नजर नहीं आये ...वह नेता नहीं थेवह नेताओं के पुत्र-पौत्र नहीं थे...आपने उस उना काण्ड में मार खाने वालों के भी आंसू देखे थेआपको उस वक्त क्या लगा था ?आपने जब वह फैसला आया जब देश में आप जो र

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28 फरवरी 2017
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मेढक को जब मैंने कहाप्यार की भाषा बोलोउसने कहा ‘ड्राऊ....’मैंने उसे फिर कहा नफरत की भाषा बोल के दिखाओ उसने कहा ‘ड्राऊ....’मैंने उसे फिर कहा चलो कोई नही, देशभक्ति गीत ही सुना दो‘ड्राऊ....’‘ड्राऊ....’‘ड्राऊ....’

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मशाल बुझी हुई है ....

1 मार्च 2017
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मशाल बुझी हुई है .... कोई फूल मुरझाये आपको क्या ?कोई पत्थर पर चढ़ जाए आपको क्या ?क्या कोई इंसान भी जिन्दा है यहाँचाँद पर जाने से जैसे चाँद भी पत्थर हो गया ...चांदनी हो गई उजाला ...माफ़ करना मेरे दोस्त !यहाँ पर कोई तुम्हारी उम्मीद सुनने नहीं आये हैसपने तो ‘पाश’ के समय में भी मरते थेआज सपनों के साथ इन्स

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