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मर्यादा पुरुषोत्तम.

28 अक्टूबर 2016

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मर्यादा पुरुषोत्तम.

(पाठकों से अनुरोध है कि अपने विचार बेबेक रखें और चर्चा करें. ताकि कुछ सीखा भी जा सके.)

रावण ने सीता को हरकर,

जो किया, किया.

लेकिन तुम थे - सियाराम,

सीता के राम,

तुम सीता को प्राणों से प्यारे थे,

सीता भी तुमको प्राणों से प्यारी थी.

सीता को वापस पाने को तुमने,

कितने कष्ट उठाए,

वन - वन भटके और शबरी के

झूठे बेर भी खाए.


सुग्रीव संग पाने को

धोखे से मारा बाली को .

इन सबसे परिलक्षित होता है,

सीता से प्यार तुम्हारा.

सीता को वापस लाने में,

जल गई स्वर्ण की लंका,

नहीं उसे पा पाओगे,

यह कभी नहीं थी शंका.

फिर सर्व - सँहार के बाद हुआ,

क्यों तिरस्कार सीता का ?

अग्नि परीक्षा बाद उसे स्वीकारा,

क्या ऐसा है धर्म तुम्हारा?.

किसने रोका था तुमको,

सीता को अपनाने से?

किसने टोका था तुमको

सीता को अयोध्या लाने में?

फिर राज सभा में,

एक रजक के कहने से,

राज धर्म की खातिर

परित्याग सीता का ?

क्या इतना ही विश्वास तुम्हारा सीता पर?

क्या इतना ही विश्वास अग्नि परीक्षा पर?

जग कहता तुमको मर्यादा पुरुषोत्तम,

पुरुषों में उत्तमता की मर्यादा या

पुरुषों की मर्यादा में उत्तम ?

तुमको मानवता से

राजकाज प्यारा था.

इसीलिये रत राजकाज में,

सीता को अस्वीकारा था.

कहाँ गया वह मानव धर्म ?

जिसका परित्याग किया था,

राजधर्म के खातिर,

क्यों त्याग किया ना राज ?

सीता संग फिर से चल पड़ते वनवास.

तब साख तुम्हारी बनती,

तब तुम बोलो,

मैं भी ऐसा क्यों कहता,

मैं भी गीत तुम्हारे गाता,

तेरे पुरुषोत्तम होने का ही दम भरता.

रंगराज अयंगर.


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मेरी दूसरी पुस्तक मन दर्पण 25 मई 2017 को प्रकाशित हो चुकी है. पाठकगण गूगल पर - ISBN 978-81-933482-3-9खोज कर ई बुक या पेपरबैक आर्डर कर सकते हैं.ईबुक की कीमत रु.100 तथा पेपरबैक की कीमत रु.175 रखी गई है.पेपरबैक पर रु 60 प्रति पुस्तक का अतिरिक्त डाक खर्च लगेगा जो

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