सब पूछते हैं-आपका शुभ नाम?
शिक्षा? क्या लिखती हैं?
हमने सोचा - आप स्नातक की छात्रा हैं
मैं उत्तर देती तो हूँ,
परन्तु ज्ञात नहीं,
वे मस्तिष्क के किस कोने से उभरते हैं!
मैं?
मैं वह तो हूँ ही नहीं।
मैं तो बहुत पहले
अपने तथाकथित पति द्वारा मार दी गई
फिर भी,
मेरी भटकती रूह ने तीन जीवन स्थापित किये!
फिर अपने ही हाथों अपना अग्नि संस्कार किया
मुंह में डाले गंगा जल और राम के नाम का
चमत्कार हुआ
............अपनी ही माँ के गर्भ से पुनः जन्म लेकर
मैं दौड़ने लगी-
अपने द्वारा लगाये पौधों को वृक्ष बनाने के लिए
......मैं तो मात्र एक वर्ष की हूँ,
अपने सुकोमल पौधो से भी छोटी!
शुभनाम तो मेरा वही है
परन्तु शिक्षा?
-मेरी शिक्षा अद्भुत है,
नरक के जघन्य द्वार से निकलकर
बाहर आये
स्वर्ग की तरह अनुपम,
अपूर्व,प्रोज्जवल!!