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सूबा, सरकार और दरकार.....

8 नवम्बर 2016

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आसनसोल (जहाँगीर नेमतपुरी) :- कहा जाता है, जो दिखता है वही आकडा होता है. हुक्मरान तो कुछ भी कह देते है और उसे आज़ादी भी है. मगर सच्चाई की लकीर सिर्फ कह देना ही नहीं होता है. क्योकि आकडे, स्थिति, तस्वीर और वर्तमान भी बोलती रहती है. जी हाँ कुछ ऐसी ही स्थिति तस्वीर और आकड़ो से हमारा देश गुजर रहा है. मगर अफ़सोस सत्ताधारी को सत्ता से, हुक्मरान को हुक्म से ही लेना देना है. लोकतंत्र, प्रजातंत्र देशहीत का दायरा सिमटता जा रहा है. इसकी वजह क्या है, सारे लोग अच्छी तरह से जानते है. भारत का हर राज्य राजधानी समेत कमोबेश किसी न किसी मर्ज से मुब्तिला दिखाई दे रहा है. समाधान और सावधान पर कोई विधान अब कार्य ही नहीं करना चाहती है. बात घाटी की तो कश्मीर करीब 109 दिनों से कैद में है, सबकुछ ठप. सेना का मसला, आतंक का खौफनाक छाया से निबटने और उबरने को लेकर कोई कहने और पूछने को भी तैयार नहीं है, स्कुल, कॉलेज, दुकान सारे के सारे बंद मानो जीवन एक बंद बक्शे में पड़ गया हो. राजनितिक दांव-पेंच, खींचातानी, बहानेबाजी का असर कश्मीरियों की जिंदगी पर बुरा असर डालने में जरा भी संकोच नहीं कर रही है. कहने और बताने की जरुरत भी नहीं है. मसला और मसाईल का हल मुमकिन नहीं है. इस तरह की बात कहने वालो की भी कमी नहीं है.अगर और मगर का डगर आसान भी कहाँ होता है. उत्तर प्रदेश राज्य जहाँ सत्ता बलुआ मिट्टी की घर से बनी हो और अचानक किसी बड़ी अंधी ने उसे बिखेर कर रख दिया हो हंसी भी आती है पर देश के हालत को देखकर गमगीन होना पड़ता है. हँसना मानो ज्यादती सा लगता है. कुर्सी तो बस एक ही है, मगर हर कोई उसी पर आसीन क्यों होना चाहता है? सवाल और फिर उसके बाद सावालिया निशान. गद्दी सत्ता और धन, रिश्ते और मानवता को कत्ल करने वाले सबसे सफल हथियार साबित हो रहे है. मगर नुकसान में हमेशा जनता ही रही है. हद तो तब हो जाती है जब सारा धीगरा उसके ही सर पर फोड़ दिया जाता है. सीधे शब्दों में कहा जाय तो राजनीति खींचातानी का बुरा और व्यापक प्रभाव प्रजा को ही झेलनी पड़ती है. बात अब महारष्ट्र की, देश की आर्थिक व्यवस्था तय करने वाला शहर मुम्बई और देश का अहम राज्य महारष्ट्र के अगर राजीनीति में कठोरपन आ जाये, ठहराव और अनुशासनहीनता पैदा हो जाये तो सरकार भी घेरे में आ जाती है. महाराष्ट्र में शिक्षा रोजगार के लिए आरक्षण आन्दोलन और देशभक्ति का बंधक मामले से हर कोई बाखबर है. ऐसी स्थिति में हमें समझना होगा, समझाना होगा क्योकि जब बात देशहित की हो तो सबको एक कतार में खड़ा होना होगा. सरकार और जनता की गलती ढूँढना लोकतंत्र में सबके बस की बात भी नहीं है. रुख बिहार की तो यह राज्य हत्या, अपहरण, कालेधंधे में मुब्तिला दिखाई देता है. सत्ताधारी जाति की दबंगई खुले आम कानून को चुनौती देने में जरा भी चुक नहीं रही है. दावे करना और दावे में सफल होना दोनों में असमान-जमीन का फर्क होता है. कब बदलेगे कैसे बदलगे और कौन बदलेगा एक ऐसी किताब जो आज भी सादे पन्ने की है. बात अब अपने देश की राजधानी दिल्ली की करे तो यहाँ जनता दरकिनार है और पीएम, सीएम और उपराज्यपाल ही त्रिकोणीय फंदे में फंसे नजर आ रहे है कौन किसपे काबू पाना चाहता है किससे किसको क्या शिकायत है. इन्हें खुद पता नहीं है. मानो जनता दर्शक बनी हो और क्रिकेट का त्रिकोणीय सीरिज हो रहा हो. कोई झुकने और मानने को तैयार ही नहीं. इधर राजधानी में डेंगू, चिकनगुनिया, बर्डफ्लू जैसे बीमारीयों ने कोहराम मचाना शुरू कर दिया है. मगर के बाद लिखने के बजाय सवालिया निशान लगा रहा हूँ ??? बात फिर से दोहरा रहा हूँ की आकडे ही बोलती है. आकड़ो के किताब में हमारा केंद्र सरकार और हमारे माननीय प्रधानमन्त्री. ढाई बरस में प्रधानमन्त्री मोदी ने पचास से अधिक देशो का दौरा किया. उन्होंने विदेशी निविसको से कहा कि हमारे देश में कारोबार बढाईये हम आपको हर सहूलत प्रदान करेगे. मगर विश्व बैंक ने बिजनस में सहुलत देने वाले देश की सूचि तैयार की है. जिसमे भारत बीते साल में सिर्फ एक पायदान ही आगे बढा है यानी भारत 131 वें से 130 वें पायदान पर आया है. जबकि पाकिस्तान 148 से 144 वें और चीन 80 से 78 वें पायदान पर. तो क्या भारत महज बाजार बनकर ही दुनिया के पटल पे उभरेगा या हमारी भी कोई पहचान बनेगा. बिजली क्षेत्र को छोड़कर अन्य किसी भी आर्थिक क्षेत्रो में भारत ओसतन 130 वीं पायदान के पार ही रही है. अब सवाल यही उठता है की क्या मोदी सरकार विदेशी निविशको का भरोसा जितने में नाकाम रही. सबकुछ काफी आगे से बढ़ रहा है हमें भी बढ़ना होगा. मगर कौन से ऐसे कारक है जो बाधा डाल रही है. इन कारको पर सरकार भी कही काबू तो कही बेकाबू नजर आती है. बात बिलकुल साफ़ है. स्वच्छता, सुन्दरता, सराहनीय की कल्पना करना कोई गलत बात नहीं है मगर स्थिति अवस्था पर भी पैनी नजर बनाना जरुरी है. कही इनकी नकारात्मक लपटों में सब कुछ समाप्त न हो जाये. तीन तलाक, बीफ, लव जिहाद, घर वापसी, अल्पसंख्यक, हरियाणा में जाट, महाराष्ट्र में मराठो को सडक पर उतरना, घाटी में लगातार घटना ऐसे कई सारे मुद्दे है जिसको देश झेल रही है. जागो फिर जागो और जगाना ही होगा क्योकि चुनौतियां अब थोक में बढ़ने लगी है. हमारे पास वक्त है ताकत है संसाधनों का जखीरा भी मगर छोटी-छोटी बातो पर ही बेवजह हम चुक जाते है. अवस्थाये, स्थिति, मुसीबते, टकराव आती रहेंगी. मगर हमें विचलित नहीं होना है, अपने समझदारी, अक्लमंदी का बेजोड़ नमूना पेश करना होगा. क्योकि बात देश हित की है और देश से बड़ा कुछ नहीं होता.. देश है तो हम है इसके बिना हमारा वजूद कहाँ.

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शहर बदल

5 अक्टूबर 2016
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जहाँगीर आलम:-शहर का अपना मिजाज होता है, यहाँ के लोगो की जीवन शैली भी अलग होती है. हर बात में दिखावा झलकता है, हर किसी को एक दुसरे से आगे निकलने की होड़ मची रहती है. ऐसा ही हो रहा है अपने शहर आसनसोल में. इसके फिजा, हवा में बदलाव आने लगे है. शहर आसनसोल शादियों पुराना शहर, विश्वभर के लोग जानते है इस शहर

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सियासत, समाजवाद और सत्ता

26 नवम्बर 2016
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राजनीति, भ्रष्टाचार का पालनहार

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पचास दिनों के बाद भी स्थिति में कोई सुधार नहीं

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आसनसोल ( जहाँगीर आलम) ) :- दुकाने सजी है और उनमे जरुरत के सामान भी उपलब्ध है, पर्यटकों की संख्या में भी कोई खासा कमी नहीं है. लेकिन इन सबो के बावजूद ग्राहक नहीं दिख रहे. ये हालात है, झारखण्ड-बंगाल की सीमा पर स्थित एक मात्र पर्यटक स्थल मैथन डैम की. जहाँ लोगो की भीड़ तो है

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तीन तालाक का फायदा अब तो महिलाये भी उठाने लगी

16 जनवरी 2017
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21 जनवरी 2017
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विदया की मंडी में तब्दील होता विदया का मंदिर

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देश की भविष्य के साथ खिलवाड़, पड़ेगा मंहगा

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आसनसोल (जहाँगीर आलम) :- ये बच्चे ही हमारे देश की भविष्य हैं और इन्ही पर भविष्य में देश की उन्नति निर्भर है. लेकिन आज देश के इन भविष्यो के साथ खिलवाड़ कर हम अपने देश को ही कमजोर करने की भरपूर चेष्टा में लगे है. जिसका परिणाम भी हमें ही भुगतना होगा. इन्हें सम्पूर्ण रूप से शिक्षित बनाना सिर्फ अभिभावकों क

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स्कुल-कॉलेज के विधार्थी है इनके सॉफ्ट टार्गेट

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जिला अस्पताल के समुचित लाभ में सड़क जाम बना रोड़ा

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आसनसोल (जहांगीर आलम ) :- वर्ष 2011 में 34 वर्षो की वाम सरकार को पछाड़ते हुए तृणमूल कांग्रेस ने राज्य की सत्ता में अपना कब्ज़ा ज़माया. जिसके बाद जनता के अनुरूप ही तृणमूल ने राज्य समेत आसनसोल में कई विकासमूलक कार्य किये और अबतक जारी है. तृणमूल की ममता सरकार ने सर्वाधिक

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सिर्फ एक दिन, एक दिवस, नहीं बल्कि हर पल, हर समय महिलाओ को दे सम्मान

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सिर्फ एक दिन, एक दिवस नहीं बल्कि हर पल, हर समय महिलाओं को दे सम्मान आसनसोल (जहांगीर आलम) :- आज विश्व भर में महिलाओ को सम्मान देने के मकसद से महिला दिवस का पालन किया जा रहा है. इसी क्रम में आसनसोल शहर के विभिन्न स्थानों व संस्थानों में भी महिला दिवस मनाया गया. लेकिन क्या

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होली के रंग में रची-बसी भारतीय राजनीति

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एक दूसरे पर लगाते रहेंगे आरोप-प्रत्यारोप

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जहाँगीर आलम (आसनसोल) :- गोवा में 2017 के विधानसभा चुनाव के बाद रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर को दुबारा मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी संभालने का मौका मिला है. जबकि चुनाव में सबसे अधिक सीटें जीतने वाली कांग्रेस पार्टी को यहां विपक्ष में बैठना पड़ रहा है. वही पूर्वोत्तर के राज्य मण

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जल समस्या से निजात, आवंटित हुए 225 करोड़ रूपए . 20 मार्च 2017 सोमवार का दिन कुल्टी वासियों के लिए खुशियों भरा शौगात लेकर आया. दशको से पीने की पानी का दंश झेल रहे इस इलाके के लाखो लोगो को अब पानी मयस्सर हो पायेगी. इसकी घोषणा कुल्टी बोरो कार्य

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डीवीसी-नागरानी या राजकुमार

23 मार्च 2017
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जहाँगीर आलम (आसनसोल) :- पश्चिम बंगाल के कल्यानेश्वरी मंदिर के निकट मार्किट कॉम्प्लेक्स डीवीसी की जमीन पर आसनसोल नगर निगम द्वरा अवैध कब्जा कर शोचालय निर्माण का मामला शांत भी नहीं हुवा था कि उक्त जमींन पर एक और दावेदार सामने आकर सबको अचंभित कर दिया. ऐसे में आसनसोल नगर निग

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अस्तित्व में आया राज्य का 23 वां जिला "पश्चिम बर्दवान"

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आसनसोल :- दशको से शहरवासियो की मनोकामना व मांग शुक्रवार को पूर्ण हो गई. आसनसोल के पुलिस लाइन मैदान से शुक्रवार की दोपहर राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने आसनसोल एवं दुर्गापुर को मिलाकर व बर्धमान जिला के दो भाग करके पश्चिम बर्दवान नाम से नए जिले की घोषणा की. जिससे राज्य

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क्या पहचान हो हमारी

9 अप्रैल 2017
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“मेरा खजूर-बताशा तुम्हारा पहचान बन गया || चाँद मेरा और सूरज तुम्हारा पहचान बन गया || चले थे कहकर सबका साथ-सबका विकास करेंगे, मगर हरा और गेडुआ हमारा पहचान बन गया” || --------------------------------------- “एक दुसरे को जलील करना हमारा शान बन गया || जानवर के वास्ते इं

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सुंदर स्त्री की पारदर्शिता ही समाज की आदर्शता

4 मई 2017
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सुंदर स्त्री की पारदर्शिता ही समाज की आदर्शता हैजहाँगीर आलम :- स्वच्छ-सुन्दर और उत्तम समाज की कल्पना की चाह बगैर स्त्री के मुमकिन नहीं, स्त्रियों की बलिदान-योगदान को परिभाषित करना संभव भी नहीं है.सुंदर स्त्री हर माईने में समाज के लिए आदर्श स्वरूप है, जिसे आसानी के साथ देख

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तीसरी कड़ी का वर्चस्व वर्तमान समय में अख़बार भी लोगो की रोजमर्रा की दिनचर्या में शामिल है, अधिकांश लोग सुबह-सुबह अख़बार पढ़ना पसंद करते है. कई लोग पूरी दिलचस्पी के साथ हर खबर को गंभीरता से पढ़ते है, तो कुछ लोग हेड लाईन पढ़कर ही संतुष्ट रहते है. चूँकि अखबारों में देश-विदेश से ले

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कौन होगा अगला पीएम

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इन चार वर्षो के दौरान कई राज्यों में विभिन्न चुनाव हो गये. कही भाजपा ने बहुमत पाई तो कही बिना बहुमत के ही जोड़तोड़ कर सरकार बनाई. लेकिन सबसे अहम् वर्ष 2019 का लोकसभा चुनाव होगा और सभी की निगाहे अबकी बनने वाली सरकार और प्रधानमंत्री पर टिकी है. शायद इसबार भाजपा की सरकार और मो

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