वर्तमान परिपेक्ष में देशभक्ति का सही परिभाषा बदलने की कोशिश की जा रही है. परिभाषा से छेड़छाड़ कही देश में उन्माद न पैदा कर दे...
आसनसोल (जहाँगीर नेमतपुरी) :- किसी ने कहा है कि हर मर्ज की दवा होती है, मगर इस बात से सहमत नहीं हुआ जा सकता है. हमारा मुल्क कुछ ऐसी ही बिमारियों में मुब्तिला है, इसका निदान दूर-दूर तक नजर नहीं आ रहा है. तय करना मुश्किल हो गया है. की इस मुल्क का कौन चौकीदार, कौन गद्दार और कौन वफादार है. माहौल बिलकुल बदल चूका है. कभी भी कुछ भी होने का आसार नजर आता है.मगर अभी भी कुछ लोगो का दावा है जो पहले कभी नहीं हुआ अब वो तब्दीलियाँ होने लगी है. मुल्क तरक्की पे है, देशभक्ति की जड़े मजबूत हो रही है.काला धन, व्यापर, शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ पर काम हुआ है या नहीं. इसपर किसी का कोई ध्यान ही नहीं है. कहते है इसपर तो कभी भी काबू पा सकते है मगर उनका मानना है की कुछ ऐसी पहलू है की जिनमे बदलाव कर देश की विकास और देशभक्ति को पैदा की जा सकती है. ऐसे ही उलझाऊ मोड़ से हमारा देश गुजर रहा है...कहा जाता है हमेशा हेडलाईन बनकर रहो. चाहे इसके लिए कुछ भी करना पड़े. सरकार इसे करने में कही चुक भी नहीं रही है. मगर आईने की हकीकत को झुटला देना सबके बस की बात भी कहाँ होती है. मुख्य धारा पर भले ही मोदी सरकार ने काम किया है या नहीं? मगर युवाओ में जोश भरने में कामयाब रहे है. सरकार मुल्क को बदले या ना बदले मगर युवा देशभक्ति के नाम पर हिंदुस्तान को बदलने की कोशिश में जरुर लगे हुए है. ढाई बरस के सरकार ने देशभक्ति इतनी फूंक दी है, शायद इतनी ही देशभक्ति देश की आजादी के लड़ाई में देखि गयी होगी. मगर दोनों में आसमान जमीन का फर्क है. एक देशभक्ति अंग्रेजो के खिलाफ और दूसरी देशभक्ति देश के अन्दर किसके खिलाफ.?
कभी-कभी बदलते इस परिवेस में देशभक्ति की परिभाषा में तबदीली की भी बू आने लगी है. चुनौतियों के अम्बार से भरे इस मुल्क को आये दिन किसी-न-किसी मुश्किल का सामना करना पड़ रहा है. जिससे देश का हर नागरिक बा-खबर है. सत्ता और सरकार इनसे निबटने के बजाय नए-नए राग और धुन को बनाने में लगी हुयी है. सरकार बनने से पहले मुद्दे कुछ और थे और सरकार बनने के बाद मुद्दे ही बदल गए. शक और बीफ के बुनियाद पर घर में घुसकर अपनों की हत्या, किसी के धार्मिक विश्वास को आहत पहुंचाने का काम, जबरन नाहक चीजो को थोपना जैसे मुद्दे क्या देश हित में हो सकते है? दुनिया की हर मजहब मानवता के धागे से बंधी होती है, फिर भी हम कमअक्ली का नमूना पेश करने से बाज नहीं आते...इस देश का मसला धर्म और जाती कभी था ही नही. फिर भी इस दलदल में लोग खास कर युवा क्यों और कैसे फंसते जा रहे है. किसकी शाजिस कौन है इसके पीछे पहचानने की कोशिश करनी होगी. कही ये सरकार के राजनितिक हथकंडे तो नहीं ? जागो वर्ना कही नींद की गोली हमें सदा के लिए ना सोला दे. पिछले दिनों देश की सीमा पर हुए हमले के विरोध में युवाओ ने सिनेमाघरों के समक्ष जमकर उत्पात मचाया और थियेटर मालिको को कई शो बंद करने पड़े. जसका खमियाजा देश और यहाँ की जनता को भुगतना पड़ा. आये दिन पाकिस्तान का सीज फायर का उलंघन, सीमा पे ज्यादती के विरोध में सरकार सफल नजर आये या न आये मगर उन्मादी युवाओ के जरिये देश के माहौल में अस्थिरता जरुर पैदा हुई है. क्या देश के अन्दर विरोध प्रदर्शन, बहिष्कार, नाहक किसी को आहत पहुचाने से मसले का निदान हो सकता है? इस मुल्क का सही भविष्य हमारे होनहार युवा ही तय कर सकते है. बस दुःख इस बात की है, वो फिजूल और बे-बुनियाद कार्यो में संलिप्त नजर आ रहे है. अगर दुनिया के पटल पे सचमुच देशभक्ति का बेजोड़ नमूना पेश करना है तो उन्हें भुखमरी, लाचारी, अशिक्षा, अ
ज्ञान ता, बेरोजगारी, जैसे भयंकर बीमारियों के जकड़न से देश को मुक्त कराना होगा. सरकार इन मुद्दों पर खुद काम नहीं करना चाहती और तुम्हे भी भटकाने की कोशिश में लगी है. मुख्यधारा में आना होगा बहकावे में नहीं. क्योकि तुम्हारे अन्दर परिवर्तन लाने का जज्बा है. यह देश है तुम्हारा नेता तुम्ही हो कल के...तुम किसी और के बहकावे में क्यों आते हो और गंदी
राजनीति के गन्दी चादर क्यों ओढना चाहते हो. मौजूदा हालात और देश की स्थिति ने कई सारे रोगों को जन्म दे दिया है. गुजारिश है संभलो और संभालो. धर्म-जाति कब तक गंदे नेताओ के हथियार बनेगे. वर्तमान में देश में ऐसी कई सारी मुद्दाये उठाई गयी. जो बिलकुल देश हित के लिए गलत था. जिससे देश की कोई सरोकारिता नहीं जुडी थी. देश में ऐसी स्थिति पैदा की गयी है. आग का दरिया है और डूब कर जाना है. सरकार क्लीनचिट पाने की योजना पर कार्य कर रही है. मुख्यधारा की योजना उसे याद भी नहीं है. युवा शब्द का पर्याय जोश है, मगर ध्यान रहे जोश बिलकुल सही दिशा में होना चाहिए.