अप्रत्याशित नतीजों से चौंकाया: 2014 में जब भारत में लोकसभा चुनाव के लिए प्रचार चल रहा था, तो किसी राजनैतिक विश्लेषक ने भाजपा की इतनी बड़ी जीत की कल्पना नहीं की थी। खुद भाजपा के आंतरिक सर्वेक्षणों में इतनी ज्यादा सीटों का अनुमान नहीं लगाया गया था, मगर जब नतीजे आए तो बीजेपी अपने स्थापना काल से अब तक सबसे ज्यादा सीटें जीतकर सरकार बनाने को तैयार थी। 2016 में डोनाल्ड ट्रंप के जीत का अनुमान बेहद कम सर्वेक्षणों में किया गया था, मगर जिस तरह से ट्रंप ने चुनावों में जीत हासिल की, उसने बड़े-बड़े राजनैतिक समीक्षकों को एक बार फिर गच्चा दे दिया।
विवादों में रहे अरबपति व्यवसायी डोनाल्ड ट्रम्प ने राष्ट्रपति चुनाव में खुद अपने प्रचार की कमान संभाली थी और कई बार राजनीति क रूप से विवादास्पद बयान दिए। न्यूयॉर्क के रहने वाले 70 वर्षीय रियल इस्टेट व्यवसायी ने शासन के खिलाफ आम नागरिकों के भ्रम की स्थिति का फायदा उठाया और इसे आव्रजन विरोधी नारे में तब्दील किया जो उनके लिए काफी लाभप्रद साबित हुआ। डेमोक्रेटिक उम्मीदवार हिलेरी क्लिंटन के विपरीत ट्रम्प ने विवाद पैदा किया और मुस्लिमों, प्रवासियों, अर्थव्यवस्था तथा आतंकवाद पर उन्होंने कई ऐसी घोषणाएं कीं जो प्रतिकूल थीं। कई महिलाओं ने उन पर यौन उत्पीड़न के भी आरोप लगाए।
डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के अगले राष्ट्रपति चुने गए हैं। राजनैतिक विश्लेषकाें को गलत साबित कर ट्रंप ने हिलेरी क्लिंटन को हराया। उनकी यह जीत भारत में 2014 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जीत से जोड़कर देखी जा रही है। एक बिजनेसमैन और रियल एस्टेट डेवलपर के तौर पर ट्रंप ने मोदी और उनके नेतृत्व को सराहा है। मोदी और ट्रंप, दोनों राइट विंग राजनैतिक दलों से आते हैं। दाेनों के बीच में कई समानताएं हैं, मसलन- नरेंद्र मोदी को जनता की नब्ज पकड़ने में माहिर माना जाता है। अपने विदेशी दौरों पर पीएम मोदी भीड़ को आकर्षित करने के लिए काफी कोशिश करते हैं। टोक्यों में ड्रम बजाने से लेकर अफ्रीका में बच्चे के कान खींचने से लेकर, कई मौकों पर मोदी ने औपचारिकता दरकिनार कर लोगों से सीधा संपर्क किया है। डोनाल्ड ट्रंप एक शौमैन हैं, उन्होंने व्हाइट हाउस के उत्तराधिकारी के चुनाव को पूरी तरह से बदल दिया है। उनकी प्रचार शैली पूरी तरह से नाटकीय रही है।
चुनाव प्रचार के दौरान डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के पुराने प्रभुत्व को वापस लाने और विकास की जोरदार वकालत करते रहे। उनके चुनाव प्रचार अभियान का नारा था- मेक अमेरिका ग्रेट अगेन (अमेरिका को फिर से महान बनाओ)। ट्रंप ने 2008 के बाद बुरी तरह लड़खड़ाई अर्थव्यवस्था को दुरुस्त करने का वादा करते हुए नई नौकरियां सृजित करने का दावा किया। वैश्विक मंदी के दौर में अमेरिका में बड़े पैमाने पर लोगों की नौकरियां छिन रही थीं। ट्रंप ऐसे में आशा की एक किरण बनकर उभरे और अमरीकियों ने उन्हें अपना नेता चुनने में हिचक नहीं दिखाई। दूसरी तरफ, नरेंद्र मोदी ने 2014 में पूरा लोकसभा चुनाव ही विकास के मुद्दे को आगे कर लड़ा। प्रचार के दौरान ‘सबका साथ, सबका विकास’ जैसे नारे ने मोदी की चुनावों पर पकड़ और मजबूत कर दी। इसके अलावा भ्रष्टाचार के खिलाफ मोदी के मुखर होने से भी भाजपा को प्रचंड बहुमत हासिल करने में कामयाबी मिली।
नरेंद्र मोदी और डोनाल्ड ट्रंप, दोनों को राजनैतिक समीक्षक ‘कट्टर’ बताते रहे हैं। प्रचार के दौरान डोनाल्ड ट्रंप के मुस्लिमों के खिलाफ की गई नकरात्मक टिप्पणियों की वजह से कई बार उनकी तुलना नरेंद्र मोदी से की गई। ट्रंप हर मुद्दे पर तुरंत एक्शन लेने की वकालत करते हैं, चाहे वो सीरिया में इस्लामिक स्टेट के खिलाफ जंग छेड़ने का मसला हो या फिर अमेरिका में मुुस्लिमों पर प्रतिबंध लगाने की बात करना हो। दूसरी तरफ, नरेंद्र मोदी ने कई मुद्दों पर कड़े और तत्काल फैसले किए हैं। उन्होंने कई सुझाव और अपनी बेटी सहित महिलाओं के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणियां कर भी सुर्खियां बटोरीं और इन सब बातों से उनके प्रचार के पटरी से उतरने की आशंका पैदा हो गई। इन विवादों में सबसे प्रमुख वह वीडियो रहा जो पांच वर्ष बाद सामने आया जिसमें ट्रम्प यह कहते हुए सुनाई पड़ते हैं कि वह महिलाओं का यौन उत्पीड़न कर ‘‘स्टार’’ की छवि होने के कारण बच निकलने में सक्षम हैं। ट्रम्प ने 1987 से ही राष्ट्रपति चुनाव लड़ने का विचार किया था लेकिन कई लोगों का मानना है कि 2011 में व्हाइट हाउस संवाददाताओं के रात्रि भोज के दौरान उनका विचार और प्रबल हुआ। ट्रम्प ने तब अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा के अमेरिकी नागरिक होने पर ही सवाल खड़ा किया था।
रिपब्लिकन पार्टी के नेता डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के अगले राष्ट्रपति होंगे। उन्होंने आठ नवंबर को हुए अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में डेमोक्रेटिक पार्टी की उम्मीदवार हिलेरी क्लिंटन को हराया। अमेरिकी इतिहास में ताजा अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव विवादों के लिए याद किया जाएगा। चुनाव प्रचार के दौरान ट्रंप ने कई ऐसे बयान दिए जिससे दुनिया के दूसरे देश चिंतित हैं। इन देशों में भारत भी है। ट्रंप ने सार्वजनिक तौर पर एक भारतीय काल सेंटर कर्मचारी की नकल उतारते हुए मजाक उड़ाया था। वो सार्वजनिक तौर पर कह चुक हैं कि चीन और भारत अमेरिकियों की नौकरियां छीन रहे हैं। वो अपने चुनाव प्रचार के दौरान नौकरियों की आउटसोर्सिंग के खिलाफ बोलते रहे हैं। वो भारत के संग कारोबारी अंसतुलन का मुद्दा भी उठा चुके हैं। लेकिन विशेषज्ञों की मानें तो ट्रंप का राष्ट्रपति बनना भारत से ज्यादा चीन और पाकिस्तान के लिए भारी पड़ेगा।
पूर्व अमेरिकी राजनयिक विलियम एवरी ने इकोनॉमिक्स टाइम्स से कहा कि ट्रंप के आने से भारत को उतनी दिक्कत नहीं होगी। एवरी मानते हैं कि ट्रंप से चीन और पाकिस्तान को ज्यादा मुश्किल हो सकती है। एवरी के अनुसार चीन और पाकिस्तान लंबे समय से अमेरिका को दुधारू गाय की तरह इस्तेमाल करते रहे हैं। 2015 में चीन को अमेरिका के साथ व्यापार में 366 अरब डॉलर की बढ़त थी। वहीं पाकिस्तान इस्लामिक आतंकवाद से लड़ने के नाम पर 2002 से अब तक 30 अरब डॉलर की मदद ले चुका है। ट्रंप ने चुनाव प्रचार के दौरान जो संकेत दिया है उनके आधार पर कहा जा सकता है कि इन दोनों देशों में अमेरिकी पैसे का प्रवाह पहले जैसा नहीं रहेगा।
पिछले 15 साल में अमेरिका को निर्माण क्षेत्र में चीन के हाथों करीब 50 लाख नौकरियां खोनी पड़ी हैं। इस दौरान चीन इस सेक्टर में तेजी से आगे बढ़ा है। ट्रंप ने वादा किया है कि वो चीन से निर्माण क्षेत्र की नौकरियां वापस लाएंगे। इसके लिए संभव है कि वो एशियाई देशों, खासतौर पर चीन के सस्ते मानवीय श्रम का मुकाबला करने के लिए टैरिफ और गैर-टैरिफ वाले बैरियर लगा सकते हैं। अगर ऐसा हुआ तो इसका सबसे बड़ा नुकसान चीन को होगा। अगर ट्रंप ने आर्थिक क्षेत्र में चीन की बढ़त रोकने के लिए आक्रामक नीतियां बनाईं तो दोनों देशों के बीच कारोबारी जंग शुरू हो जाएगी जिसका असर चीन के अंदरूनी हालात पर पड़ सकता है। दशकों के विकास के बाद इस साल चीनी अर्थव्यवस्था मंदी से जूझ रही है। भारतीय कंपनियों में अमेरिका के संग कारोबार का सबसे ज्यादा फायदा आईटी कंपनियों को होता है। इस बात की संभावना कम है कि ट्रंप भारत में तैयार हुए सॉफ्टवेयर पर उस तरह का शुल्क लगा पाएंगे जैसा चीन के बने ठोस उत्पादों पर लगाना संभव है। अगर ट्रंप की नीति से चीन को समस्या होती है तो इससे एशिया की क्षेत्रीय राजनीति में भारत को ही सर्वाधिक फायदा होगा।
ट्रंप के जीतने से पाकिस्तान को भी बड़ा नुकसान हो सकता है। ट्रंप ने अपने चुनाव प्रचार के दौरान पाकिस्तान को दुनिया का सबसे खतरनाक देश बताया था। उन्होंने कहा था कि पाकिस्तान पर काबू रखने के लिए भारत की मदद लेनी चाहिए। ट्रंप ने कहा था कि अगर वो चुनाव जीते तो इस दिशा में बहुत तेजी से काम करेंगे। अमेरिका अभी तक भारत और पाकिस्तान के बीच के तनाव को दो देशों के बीच मुद्दा बताकर तटस्थ दिखने की कोशिश करता है। कश्मीर के मसले पर भी अमेरिका पाकिस्तान पर किसी तरह का प्रभावी दबाव बनाने में विफल रहा है। लेकिन ट्रंप ने जैसा कहा है अगर वो ऐसा करते हैं तो हालात बदल सकते हैं।
डोनाल्ड ट्रंप का जन्म न्यूयॉर्क के क्वींस में 14 जून 1946 में हुआ था। उनके पिता फ्रेड ट्रंप न्यूयॉर्क में रियल एस्टेट का कारोबार करते थे। फ्रेड ब्रुकलिन और क्वींस में एमआईजी फ्लैट बनाकर काफी दौलत कमायी। ट्रंप की मां मैरी ट्रंप स्कॉटलैंड से आने वाली प्रवासी थीं। उनके माता-पिता ने उन्हें 13 साल की उम्र में न्यूयॉर्क मिलिट्री अकादमी में पढ़ने के लिए भेज दिया था। वो 1964 में अकादमी से पास हुए।
ट्रंप ने यूनिवर्सिटी ऑफ पेंसिलवानिया के व्हार्टन स्कूल ऑफ फाइनेंस से अर्थशास्त्र की पढ़ाई की। ट्रंप अपनी पढ़ाई के दौरान छुट्टियों में अपने पिता की कंपनी ‘एलिजाबेथ ट्रंप एंड सन’ में काम करते थे। कॉलेज की पढ़ाई के बाद वो पूरी तरह अपने पिता की कंपनी से जुड़ गए। ट्रंप ने 1971 में पिता का पूरा कारोबार का संभाल लिया। उन्होंने कंपनी का नाम बदलकर “‘ट्रंप ऑर्गेनाइजेशन” कर दिया। वो क्वींस छोड़कर मैनहैट्टन में रहने चले गए।
चुनाव प्रचार के दौरान ट्रंप बार-बार इस बात पर जोर देते रहे कि उनके पिता ने कारोबार शुरू करने के लिए उन्हें बड़ी दौलत नहीं दी थी। पहली प्रेसिडेंशियल बहस में हिलेरी क्लिंटन ने कहा था कि ट्रंप ने 1.4 करोड़ डॉलर से अपना कारोबार शुरू किया था। लेकिन ट्रंप ने उनकी बात गलत बताते हुए कहा था कि “मेरे पिता ने 1975 में मुझे बहुत छोटा सा लोन दिया था।” शायद उनकी बात में सच्चाई भी है क्योंकि ट्रंप का कारोबार जिस ऊंचाई पर आज नजर आता है उसकी शुरुआत उनके मैनहैट्टन आने के बाद ही हुई।