जब एक फैसला हुआ
उस दिन एक बुजुर्ग की नजर में चमक दिखी थी
दुसरे दिन बेंको में अपने नोट जो कुछ ही दिन पहले निकले थे
बदलने गए
उनका बीपी बस बढ़ने लगा था...
वह तो देश को अपने सीने में बसा के आया था
पर जब अपने आस-पास देखा
बूढ़े-गरीब अपना काम छोड़कर अपने लिए खड़े थे
देश के नाम पर
मैं सोचते हुए आगे बढा ही था
बैंक में पैसे ख़त्म...
धुप बढ़ रही थी
लाइन बढ़ रही थी
पसीने बह रहे थे
लोगों के चहेरे पर बैचेनी-चिंता की लकीरे बढ़ रही थी
जो मैंने कल एक चिंगारी देखी थी
चमक मेरे चेहरे पर आई थी
वह बेजान बन चुकी थी
अब बस उन लोगों के चेहरे और उसमें मौत साफ़ दिख रही थी
अपने हाथों में रहे नोट कांपने लगे
दिल की धड़कन थम गई...
पर शहीदी उनके लिए बहुत दूर की बात थी
देश के लिये....