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सियासत, समाजवाद और सत्ता

26 नवम्बर 2016

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आसनसोल (जहाँगीर आलम) :- जिस प्रधानमंत्री का मुद्दा शुरूआती दौर से ही गरीबी और विकास की रही हो, उस प्रधानमंत्री के ऐसे फैसले पर आश्चर्य कैसा? लेकिन सवाल तो उठते थे और उठते रहेंगे. ये बात और है की सरकारे अपने कार्यकाल के दौरान गरीबो और ग्रामीणों की वजाय कार्पोरेट जगत को प्रत्येक वर्ष कई तरह के टेक्स में पांच लाख करोड़ रूपए छुट देते रहे है, जो वर्तमान सरकार में भी लागु है. जबकि दूसरी तरफ रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ, कृषि जैसे बुनियादी सुविधाओ पर ग्रामीण इलाकों के लिए चार लाख करोड़ रूपए देना सरकार के लिए मुश्किल हो रहा है. तो क्या गरीब सिर्फ वोट बैंक तक ही सिमित है. बात हो रही है देश को कैशलेश बनाने की. यहाँ की जनता को भ्रष्टाचार, काली अर्थव्यवस्था जैसे कुंए से निकालने की. तो बातो का क्या वो तो होते ही रहेगे. बताते चले कि वर्ष 1969 में अमिरीकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्शन ने ऐसी ही फार्मूला को आजमाया था. निक्शन ने 500, 1000, 10,000 और एक लाख के डालर बंद कर दिए थे. तर्क दिया था की इससे देश में छुपे कालेधन और नकली करेंसी रद्दी में तब्दील हो जाएगी. इस कदम से अमेरिका में बैंकिंग सिस्टम तो काफी मजबूत हुआ लेकिन कालीअर्थव्यवस्था जस की तस रही. यही नहीं आज अमेरिका कालाधन के मामले में दुनिया में शीर्ष स्थान रखता है. जिस तरह से आज प्रधानमंत्री मोदी ने पांच सौ व हजार के नोट बंद करके यह तर्क दिया कि देश को कालाधन से मुक्ति मिलेगी, कैशलेश समाज बनेगा. जिसकी कल्पना भी निराधार है. असली भारत तो गाँवो में बस्ता है जो देश की कुल अवादी का 60 फिसद है. उल् लेख नीय है कि 20 प्रतिशत इंडिया, 20 हिंदुस्तान और 60 प्रतिशत भारत को मिलकर अपना देश सम्पूर्ण होता है और दिल्ली की सत्ता जो फैसले करती है वो सभी इण्डिया को ध्यान में रखकर करती है. जबकि अभी भी पांच लाख गाँवो में से चार लाख पच्चास हजार गाँवो में बैंकिंग सुविधा है ही नहीं. वही 80 फीसदी अमरीकी कैशलेश पेमेंट का व्यव्हार करते है यानी नगदी लेनदेन न के बराकर है, फिर भी कालीअर्थव्यवस्था बा-दस्तूर जारी है. वही कैशलेश पेमेंट के मामले में जर्मनी 76, ब्रिटेन 89, एवं फ़्रांस 92 प्रतिशत स्थान रखता था. फिर भी ये सभी देश कालेधन या भ्रष्टाचार मुक्त नहीं हुए. तो कैसे मोदी जी ने यह तर्क दे डाला की इस फैसले से देश में कालेधन पर रोक लगेगा या कालाधन बनना ही बंद हो जायेगा. क्योकि बाकी सभी देश इस फार्मूले को अजमा चुके है और परिणाम भी सभी के सामने है. सवा अरब जनसंख्या वाले भारत जैसे देश में सिर्फ ढाई करोड़ लोग ही क्रेडिट कार्ड का इस्तेमाल करते है. जबकि बाकियों के लिए सुविधा भी मुहैया नहीं करायी गयी है. यदि सभी व्यवस्था दुरुस्त भी किये जाये तो दो वर्ष का समय लग जायेगा. लेकिन सवाल यह भी कि इसके लिए इन्फ्राटकचर कहाँ से आएगा. जिस देश के ग्रामीण मनारेगा जैसे स्कीमो पर पल रहे है. यानी ये कल्पना के परे है कि गरीब और ग्रामीण भारत के सामानान्तर शहरी गरीब और आधुनिक शहरो पर जो खर्च तमाम सत्ता ने किये अगर उतना पैसा गांव के इन्फ्रस्ट्कचर पर होता तो करोडो ग्रामीण काम के लिए शहरों की ओर पलायन करने को मजबूर नहीं होते. करोडो शहरी गरीब रोज के 35 रुपये पर जिन्दगी नहीं गुजरता. कैसे हर दौर में गाव और गरीबो के नाम पर दिल्ली की सत्ता ने देश को बेवकूफ बनाया है. इसे मौजूदा बजट से भी समझा जा सकता है. जहाँ 1.51 करोड रुपये शिक्षा-स्वास्थ जैसे तमाम सोशल सेक्टर के लिये आवंटित किये गए तो वही 5,72,923 करोड रुपये कारपोरेट को टैक्स में छूट दे दी गई. यानी इक्नामी का रास्ता गांव से नहीं बल्कि शहरो से निकला है. यानी जिस राजनीति क व्यवस्था से जनता का मोह भंग हो रहा था. समाधान के लिये उसी राजनीतिक व्यवस्था की तरफ जाने को मजबूर है. जबकि जनता के पैसे पर सबसे ज्यादा रईसी राजनेता ही करते हैं. देश में कुल 4582 विधायक, जिन्हे औसत प्रतिमाह दो लाख वेतन और भत्ता मिलता है. यानी सालाना करीब ग्यारह सौ करोड. लोकसभा और राज्यसभा मिलाकार कुल 776 सांसदों को हर महीने औसतन पांच लाख रुपये वेतन और भत्ते के तौर पर मिलता है. जो साल के 465 करोड, 360 लाख रुपये होंगे. विधायकों और सांसदों के वेतन भत्ते को मिला दे तो करीब पंद्रह अरब 65 करोड 60 लाख रुपये और इसमें आवास , यात्रा भत्ता, इलाज, विदेशी सैर सपाटा शामिल नहीं है. सुरक्षा के लिहाज से हर विधायक को दो सुरक्षाकर्मी और एक सेक्शन हाउस गार्ड यानी 5 पुलिस कर्मी तो कुल 7 सुरक्षाकर्मी एक विधायक के पीछे रहते हैं. हर पुलिस कर्मी को औसतन 25 हजार रुपये मिलते है. यानी कुल 4582 विधायकों पर एक लाख 75 हजार के हिसाब से हर महीने 80 करोड 18 लाख रुपये होते हैं और सालाना 9 अरब 62 करोड 22 लाख रुपये होता है. अगर सांसदों की सुरक्षा में लगे सुरक्षाकर्मियों के खर्च को जोड़ लें तो सांसदों की सुरक्षा में हर वर्ष 164 करोड रुपये खर्च होते हैं. इसके अलवा प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, अन्य मंत्री और कुछ राजनेताओं को जेड प्लस की सुरक्षा मिली होती है, उसके लिये 16 हजार सुरक्षाकर्मियों की तैनाती होती है. जिनपर सालाना खर्चा 776 करोड़ के करीब होता है. यानी कुल 20 अरब का खर्चा चुने हुये नुमाइन्दो की सुरक्षा पर होता है. हर साल चुने हुये नेताओ पर 50 अरब खर्च हो जाता है और इस फेहरिस्त में राज्यपाल, पूर्व नेताओं की पेंशन, पार्टी अध्यक्ष या पार्टी नेता या फिर जिन नेताओं को सरकारें मंत्रियो का दर्जा दे देती है, अगर उन पर खर्च होने वाला देश या कहे जनता का पैसा जोड़ दिया जाये तो करीब 100 अरब रुपया खर्च हो जाता है. यानि पैसे हमारे ही खर्च होते और हमपर ही इनका रौब रहता है. सरकार इसमे कटौती नहीं करेगी बल्कि हमारे ही पैसो को लेने के लिए घंटो य दिनों तक कतार में खड़ा रहना पड़ रहा है, हमारे पैसे से खरीदी गयी लाठियां हमपर ही बरस रही है. तो यह देश की सरकार को तय करना चाहिए की इस परेशानी के हक़दार कौन है? जब जनता सड़को व कतारों में मारी-मारी फिर रही है, जाने जा रही है तो हमारे ही पैसो से संसद भवन की कैंटिंग में मस्त भोजन करके संसद की कुर्सियों में आराम फार्म रहे है. यानी वर्तमान सरकार से जनता ने जो सपने संजोये थे उसपर पानी फिरता दिख रहा है.

जहाँगीर आलम की अन्य किताबें

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शहर बदल

5 अक्टूबर 2016
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जहाँगीर आलम:-शहर का अपना मिजाज होता है, यहाँ के लोगो की जीवन शैली भी अलग होती है. हर बात में दिखावा झलकता है, हर किसी को एक दुसरे से आगे निकलने की होड़ मची रहती है. ऐसा ही हो रहा है अपने शहर आसनसोल में. इसके फिजा, हवा में बदलाव आने लगे है. शहर आसनसोल शादियों पुराना शहर, विश्वभर के लोग जानते है इस शहर

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सूबा, सरकार और दरकार.....

8 नवम्बर 2016
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आसनसोल (जहाँगीर नेमतपुरी) :- कहा जाता है, जो दिखता है वहीआकडा होता है. हुक्मरान तो कुछ भी कह देते है और उसे आज़ादी भी है. मगर सच्चाई कीलकीर सिर्फ कह देना ही नहीं होता है. क्योकि आकडे, स्थिति,तस्वीर और वर्तमान भी बोलती रहती है. जी हाँ कुछ ऐसी ही स्थितितस्वीर और आकड़ो से हमारा देश गुजर रहा है. मगर अफ़सोस

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नाकाम सरकार को युवा देशभक्ति की दरकार

8 नवम्बर 2016
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वर्तमान परिपेक्ष में देशभक्ति का सही परिभाषा बदलने की कोशिश की जा रही है. परिभाषा से छेड़छाड़ कही देश में उन्माद न पैदा कर दे...आसनसोल (जहाँगीर नेमतपुरी) :- किसी ने कहा है कि हर मर्ज की दवा होती है, मगर इस बात से सहमत नहीं हुआ जा सकता है. हमारा मुल्क कुछ ऐसी ही बिमारियों मे

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सियासत, समाजवाद और सत्ता

26 नवम्बर 2016
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आसनसोल (जहाँगीर आलम) :- जिस प्रधानमंत्री का मुद्दा शुरूआती दौर से ही गरीबी और विकास की रही हो, उस प्रधानमंत्री के ऐसे फैसले पर आश्चर्य कैसा? लेकिन सवाल तो उठते थे और उठते रहेंगे. ये बात और है की सरकारे अपने कार्यकाल के दौरान गरीबो और ग्रामी

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कालाधन, कैशलेश समाज और सरकार के वो पचास दिन

7 दिसम्बर 2016
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(जहाँगीर आलम) आसनसोल :- जब पूर्व प्रधानमंत्री ने चेतावनी दी तब वर्तमान गंभीर हुए और मुस्कुरा कर भोजन करने चले गये. एक ने कहा एक ने सुना और सदन रुक गया. 60 फीसदी ग्रामीण और 40 फीसदी शहर के झोपड़पट्टी में गुजर-बसर करने वालो पर कब किसी पीएम ने बात की है.भारत का सत्य यही है की कष्ट और नाजायज पैसो पर न्य

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राजनीति, भ्रष्टाचार का पालनहार

19 दिसम्बर 2016
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आसनसोल (जहाँगीर आलम) :- सवाल तो देश में आज भी वही है जो आजादी के बाद रहे थे. शिक्षा, स्वास्थ, रोजगार आदि जैसे अहम् विषयो से देश आज तक आगे नहीं बढ़ पाया है. हाँ इन बीते दशको में देश की जनसंख्या जरुर बढ़ी है. लेकिन समस्या जस की तस ही रही. यानी कह सकते है की सात दशक पहले जिस त

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पचास दिनों के बाद भी स्थिति में कोई सुधार नहीं

31 दिसम्बर 2016
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आसनसोल ( जहाँगीर आलम) ) :- दुकाने सजी है और उनमे जरुरत के सामान भी उपलब्ध है, पर्यटकों की संख्या में भी कोई खासा कमी नहीं है. लेकिन इन सबो के बावजूद ग्राहक नहीं दिख रहे. ये हालात है, झारखण्ड-बंगाल की सीमा पर स्थित एक मात्र पर्यटक स्थल मैथन डैम की. जहाँ लोगो की भीड़ तो है

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...तो यह सिलसिला जारी रहेगा और मरने वाले मजदुर ही होंगे

10 जनवरी 2017
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आसनसोल (जहाँगीर आलम) :- ईसीएल की राजमहल परियोजना की त्रासदी ने कई जिंदगियां निगल ली. लेकिन एक सवाल सबके जेहन में छोड़ गयी की आखिर इसका जिम्मेवार कौन है? आखिर इतनी मौतों का सौदागर कौन है? किसने चंद रुपयों की लालच में लाशो का सौदा कर दिया? ईसीएल में सक्रीय सभी श्रमिक संग

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तीन तालाक का फायदा अब तो महिलाये भी उठाने लगी

16 जनवरी 2017
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आसनसोल (जहांगीर आलम) :- केंद्र सरकार ने हाल ही में तीन तालाक का मुद्दा उठाते हुए यह दलील दी थी की शरियत के इस फैसले से मुस्लिम समुदाय की महिलाये पीड़ित है, उनका वैवाहिक अधीकारो का हनन हो रहा है. मुस्लिम पुरुष तीन तालक का फायदा उठाते हुए कभ

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खोखले सिस्टम की भेट चढ़ गयी कई मासूम जिन्दगियां

21 जनवरी 2017
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आसनसोल (जहाँगीर आलम) :- सुबह का अलार्म बजते ही माएं झट से उठ जाती है, क्योकि रात में ही उसने अलार्म सेट किये होती है कि सुबह कही देर ना हो जाए, उठने में और उसके लाडले को स्कुल जाने में. जब सुबह उठकर माएं अपने बच्चो के लिए टिफिन का इन्तेजाम

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विदया की मंडी में तब्दील होता विदया का मंदिर

2 फरवरी 2017
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आसनसोल (जहाँगीर आलम) :- बच्चो का इम्तेहान ख़त्म और अभिभावकों की अग्नि परीक्षा शुरू हो गयी. तक़रीबन सभी अभिभावक इसी जद्दोजहद में लगे दिख रहे कि उनके बच्चे का एडमिशन भी एक अच्छे स्कुल में हो जाए. इनमे से कई नए नव

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देश की भविष्य के साथ खिलवाड़, पड़ेगा मंहगा

8 फरवरी 2017
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आसनसोल (जहाँगीर आलम) :- ये बच्चे ही हमारे देश की भविष्य हैं और इन्ही पर भविष्य में देश की उन्नति निर्भर है. लेकिन आज देश के इन भविष्यो के साथ खिलवाड़ कर हम अपने देश को ही कमजोर करने की भरपूर चेष्टा में लगे है. जिसका परिणाम भी हमें ही भुगतना होगा. इन्हें सम्पूर्ण रूप से शिक्षित बनाना सिर्फ अभिभावकों क

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स्कुल-कॉलेज के विधार्थी है इनके सॉफ्ट टार्गेट

14 फरवरी 2017
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आसनसोल (जहाँगीर आलम) :- नशा हमारे परिवार, समाज और देश के लिए दीमक की तरह है, इसकी जद में ज्यादातर युवा पीढ़ी रहते है. इसके कारोबारी भी स्कुल-कालेजो को सबसे आसान जरिया मानते है. इसके लिय वे लोग अपने दलालों को इन जगहों पर सक्रीय कर देते है. लेकिन उन्हें नहीं मालूम की वे

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जिला अस्पताल के समुचित लाभ में सड़क जाम बना रोड़ा

19 फरवरी 2017
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आसनसोल (जहांगीर आलम ) :- वर्ष 2011 में 34 वर्षो की वाम सरकार को पछाड़ते हुए तृणमूल कांग्रेस ने राज्य की सत्ता में अपना कब्ज़ा ज़माया. जिसके बाद जनता के अनुरूप ही तृणमूल ने राज्य समेत आसनसोल में कई विकासमूलक कार्य किये और अबतक जारी है. तृणमूल की ममता सरकार ने सर्वाधिक

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सिर्फ एक दिन, एक दिवस, नहीं बल्कि हर पल, हर समय महिलाओ को दे सम्मान

10 मार्च 2017
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सिर्फ एक दिन, एक दिवस नहीं बल्कि हर पल, हर समय महिलाओं को दे सम्मान आसनसोल (जहांगीर आलम) :- आज विश्व भर में महिलाओ को सम्मान देने के मकसद से महिला दिवस का पालन किया जा रहा है. इसी क्रम में आसनसोल शहर के विभिन्न स्थानों व संस्थानों में भी महिला दिवस मनाया गया. लेकिन क्या

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होली के रंग में रची-बसी भारतीय राजनीति

10 मार्च 2017
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होली के रंगों में रची-बसी भारतीय राजनीति आसनसोल (जहाँगीर आलम) :- भारत विविधताओं का देश है, जो इन्द्रधनुष की भाँती कई धर्मो, अनेक सभ्यता-संस्कृति का बेजोड़ नमूना पेश करता है. अनेको धर्म, सैकड़ो त्यौहार, अनगिनत जातियों से लैस हमारा देश पूरी दुनियां में अपना मिशाल कायम करता है

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एक दूसरे पर लगाते रहेंगे आरोप-प्रत्यारोप

22 मार्च 2017
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जहाँगीर आलम (आसनसोल) :- गोवा में 2017 के विधानसभा चुनाव के बाद रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर को दुबारा मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी संभालने का मौका मिला है. जबकि चुनाव में सबसे अधिक सीटें जीतने वाली कांग्रेस पार्टी को यहां विपक्ष में बैठना पड़ रहा है. वही पूर्वोत्तर के राज्य मण

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पानी के लिए बह रहे पानी की तरह पैसे

22 मार्च 2017
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जल समस्या से निजात, आवंटित हुए 225 करोड़ रूपए . 20 मार्च 2017 सोमवार का दिन कुल्टी वासियों के लिए खुशियों भरा शौगात लेकर आया. दशको से पीने की पानी का दंश झेल रहे इस इलाके के लाखो लोगो को अब पानी मयस्सर हो पायेगी. इसकी घोषणा कुल्टी बोरो कार्य

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डीवीसी-नागरानी या राजकुमार

23 मार्च 2017
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जहाँगीर आलम (आसनसोल) :- पश्चिम बंगाल के कल्यानेश्वरी मंदिर के निकट मार्किट कॉम्प्लेक्स डीवीसी की जमीन पर आसनसोल नगर निगम द्वरा अवैध कब्जा कर शोचालय निर्माण का मामला शांत भी नहीं हुवा था कि उक्त जमींन पर एक और दावेदार सामने आकर सबको अचंभित कर दिया. ऐसे में आसनसोल नगर निग

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अस्तित्व में आया राज्य का 23 वां जिला "पश्चिम बर्दवान"

9 अप्रैल 2017
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आसनसोल :- दशको से शहरवासियो की मनोकामना व मांग शुक्रवार को पूर्ण हो गई. आसनसोल के पुलिस लाइन मैदान से शुक्रवार की दोपहर राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने आसनसोल एवं दुर्गापुर को मिलाकर व बर्धमान जिला के दो भाग करके पश्चिम बर्दवान नाम से नए जिले की घोषणा की. जिससे राज्य

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क्या पहचान हो हमारी

9 अप्रैल 2017
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“मेरा खजूर-बताशा तुम्हारा पहचान बन गया || चाँद मेरा और सूरज तुम्हारा पहचान बन गया || चले थे कहकर सबका साथ-सबका विकास करेंगे, मगर हरा और गेडुआ हमारा पहचान बन गया” || --------------------------------------- “एक दुसरे को जलील करना हमारा शान बन गया || जानवर के वास्ते इं

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सुंदर स्त्री की पारदर्शिता ही समाज की आदर्शता

4 मई 2017
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सुंदर स्त्री की पारदर्शिता ही समाज की आदर्शता हैजहाँगीर आलम :- स्वच्छ-सुन्दर और उत्तम समाज की कल्पना की चाह बगैर स्त्री के मुमकिन नहीं, स्त्रियों की बलिदान-योगदान को परिभाषित करना संभव भी नहीं है.सुंदर स्त्री हर माईने में समाज के लिए आदर्श स्वरूप है, जिसे आसानी के साथ देख

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तीसरी कड़ी का वर्चस्व

4 मई 2017
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तीसरी कड़ी का वर्चस्व वर्तमान समय में अख़बार भी लोगो की रोजमर्रा की दिनचर्या में शामिल है, अधिकांश लोग सुबह-सुबह अख़बार पढ़ना पसंद करते है. कई लोग पूरी दिलचस्पी के साथ हर खबर को गंभीरता से पढ़ते है, तो कुछ लोग हेड लाईन पढ़कर ही संतुष्ट रहते है. चूँकि अखबारों में देश-विदेश से ले

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कौन होगा अगला पीएम

22 जून 2018
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इन चार वर्षो के दौरान कई राज्यों में विभिन्न चुनाव हो गये. कही भाजपा ने बहुमत पाई तो कही बिना बहुमत के ही जोड़तोड़ कर सरकार बनाई. लेकिन सबसे अहम् वर्ष 2019 का लोकसभा चुनाव होगा और सभी की निगाहे अबकी बनने वाली सरकार और प्रधानमंत्री पर टिकी है. शायद इसबार भाजपा की सरकार और मो

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