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पाकिस्तानी आर्मी के नए जनरल बाजवा एवं ... !!

29 नवम्बर 2016

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हमारे पडोसी देश पाकिस्तान की आर्मी के अब तक सैन्य प्रमुख रहे राहिल शरीफ ने बिना किन्तु-परंतु के अपना पद छोड़कर एक अलग उदाहरण पेश करने का साहस किया है, क्योंकि पाकिस्तान में अब तक अधिकांश सैन्य-प्रमुखों ने लोकतंत्र को कालिख ही लगाई है. जनरल मुशर्रफ एवं जिया उल हक़ जैसे सैन्य शासकों ने तो न केवल पाकिस्तान की सरकारों को बर्खास्त किया, बल्कि भारत के साथ अनायास युद्ध छेड़कर पाकिस्तान को दशकों पीछे धकेल दिया. यूं तो पाकिस्तान की समूची आर्मी एवं जनता को भी भारत विरोध का पाठ पढ़ाया जाता रहा है, किन्तु कुछ ने अपनी हदें पर की हैं, जिसका परिणाम पाकिस्तान के बंटवारे एवं उसके घोर पिछड़ेपन के रूप में सामने आया है. हालाँकि, नए जनरल के चुनाव से पूर्व कयास लगाए जा रहे थे कि जनरल राहील शरीफ अपने कार्यकाल का विस्तार करा सकते हैं, किंतु अपने देश में आतंकवाद के खिलाफ 'ज़र्ब-ए-अज्ब' अभियान छेड़ कर उन्होंने जो लोकप्रियता पाई थी उसे एक महत्वकांक्षी जनरल बन कर वह गंवाना नहीं चाहते थे और इस बाबत उन्होंने बिलकुल सटीक फैसला भी लिया. वैसे, तमाम विशेषज्ञ पाकिस्तान में यूं आसानी से जनरल चुने जाने को लोकतंत्र की मजबूती के तौर पर भी देख रहे हैं, किन्तु इसके पीछे कई पेंच हैं जिन्हें समझा जाना आवश्यक है. कहा तो यही जा रहा है कि नए चुने गए जनरल कमर जावेद बाजवा को यह जिम्मेदारी लोकतंत्र के प्रति उनके नरम विचारों के चलते मिली है और संभवतः इन बातों का कुछ योगदान भी हो, किन्तु सिर्फ इसे ही सच मान लिया जाए तो उचित नहीं होगा. आगे की पंक्तियों में नए जनरल के आसान चुनाव की परतें खोलने की कोशिश करेंगे. जहां तक प्रश्न पाकिस्तान आर्मी और भारत के संबंधों का है तो इसकी मुख्य नीति आतंकवाद फैलाने और कश्मीर के इर्द-गिर्द ही सिमटी रही है और नए जनरल बाजवा के कार्यकाल में भी इसमें कोई खास तब्दीली तब्दीली नहीं आने वाली! General Qamar Javed Bajwa, Hindi Article, New, Pakistan Army Chief, Foreign Policy, India, America, China, Afghanistan, World Politics, Terrorism


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वस्तुतः बांग्लादेश के पाकिस्तान से अलग हो जाने के उपरांत पाकिस्तानी आर्मी यह मान चुकी है कि भारत से सीधे युद्ध में जीत पाना नामुमकिन ही है और इसीलिए पाकिस्तान आकुपाइड कश्मीर पर अपने नाजायज कब्जे को जायज ठहराने और कश्मीरियों को उकसाने के लिए वह आतंकवाद का सहारा लेते रहते हैं जिससे कश्मीर जलता रहता है और भारत पाकिस्तान के बीच तलवारें खींची रहती हैं. जाहिर तौर पर पाकिस्तान को एक रखने के लिए जिस ऑक्सीजन की जरूरत पड़ती है वह पाकिस्तानी आर्मी भारत विरोध से ही हासिल करती रही है. तमाम विशेषज्ञ नए जनरल की नियुक्ति के बाद भी इस मुद्दे पर कुछ बड़ा बदलाव आने से इनकार कर रहे हैं. मतलब भारत के संदर्भ में जनरल बाजवा की नीति कमोबेश अपने पूर्ववर्ती जनरल राहिल शरीफ के उठाए गए कदमों पर ही आगे बढ़ेगी. हालांकि भारत ने जिस तरह सर्जिकल स्ट्राइक की है और खुलेआम घोषणा भी की है, उससे पाकिस्तानी आर्मी के नए चीफ को ज़मीनी रणनीति में कुछ बदलाव करना पड़ सकता है. इस सम्बन्ध में, भारत के पूर्व थल सेना प्रमुख जनरल बिक्रम सिंह ने बेहद सधी हुई टिप्पणी की है. पाकिस्तान के नए सेना प्रमुख की नियुक्ति पर एक्स इंडियन आर्मी चीफ ने साफ कहा है कि भारत को नए पाकिस्तानी जनरल से सतर्क रहने की जरुरत है! गौरतलब है कि जनरल विक्रम सिंह संयुक्त राष्ट्र के एक मिशन में बाजवा के साथ काम कर चुके हैं. उन्हें बेहद प्रोफेशनल व्यक्ति करार देते हुए जनरल बिक्रम ने कहा कि शांति मिशन में जनरल बाजवा और तमाम अधिकारी काफी मिलनसार रहते हैं, किंतु वही अधिकारी जब स्वदेश लौटते हैं तब मामला दूसरा हो जाता है. हालाँकि, जनरल बिक्रम सिंह ने यह भी उम्मीद जताई है कि 'पाकिस्तानी सेना प्रमुख पाकिस्तान में फैल रहे चरमपंथी आतंकवाद को भारत के मुकाबले ज्यादा बढ़ा खतरा कंसीडर करेंगे'! देखा जाए तो पाकिस्तान के लिए उचित भी यही है, क्योंकि अगर आप आंकड़े निकालेंगे तो पाकिस्तानी आवाम की जो क्षति आतंकवाद से हुई है वैसी क्षति किसी अन्य चीज से नहीं! पर चूंकि, कश्मीर मुद्दे को पाकिस्तान अपने गले की नस करता रहता है और शायद इसीलिए भारत से लगी अपनी सीमा की मामलों के विशेषज्ञ लेफ्टिनेंट जनरल कमर जावेद बाजवा को 4 अधिकारियों पर तवज्जो देते हुए पाकिस्तानी पीएम नवाज शरीफ ने उन्हें नया सेना प्रमुख घोषित किया है. General Qamar Javed Bajwa, Hindi Article, New, Pakistan Army Chief, Foreign Policy, India, America, China, Afghanistan, World Politics, Terrorism


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वैसे तमाम आंकलनों में यह बात सामने आ रही है कि जनरल कमर जावेद बाजवा लोकतंत्र के समर्थक और लो प्रोफाइल व्यक्ति रहे हैं और इसी दृष्टिकोण को ध्यान में रखते हुए पाकिस्तानी गवर्नमेंट ने उन्हें सीनियर अधिकारियों पर दी तवज्जो दी है. पाकिस्तान के प्रमुख अखबार द न्यूज़ ने इस संबंध में टिप्पणी की है कि 'जनरल बाजवा का प्रोफाइल स्पष्ट तौर पर बताता है कि उनका लोकतंत्र समर्थक होना ही सेना प्रमुख के तौर पर उन्हें कमान सौंपी जाने की सबसे बड़ी वजह है.' चूंकि, पाकिस्तान अपने 7 दशकों के इतिहास में अपने आधे समय से ज्यादा सैन्य तानाशाहों के चंगुल में रहा है, इसलिए इस बार नवाज शरीफ ने लोकतंत्र समर्थक एंगल को ध्यान में रखते हुए जनरल बाजवा को दूसरों पर तवज्जो दी है. जो खबरें आ रही हैं, उसके मुताबिक सेना प्रमुख की रेस में आगे चल रहे चारों जनरल मिलिट्री एकेडमी से एक ही दिन पास आउट हुए थे, लेकिन बाजवा का अनुभव अन्य जनरल्स की तुलना में काफी बहुमुखी रहा है. संभवतः जनरल बाजवा की क्षमता, विश्वसनीयता, अनुभव और सबसे बड़ी कोर के नेतृत्व करने के चलते उन्हें चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ के पद के लिए आगे किया गया है. इसी संबंध में पाकिस्तान के दूसरे प्रमुख अखबार डॉन ने लिखा है कि लोकतांत्रिक सरकार के साथ बेहतर रिश्ता बनाने का विचार ही बाजवा को सेना प्रमुख के पद तक ला सका सका है. देखना दिलचस्प होगा कि बलूच रेजीमेंट से ताल्लुक रखने वाले जनरल बाजवा पाकिस्तान के 16वें सैन्य प्रमुख के तौर पर क्या बदलाव ला पाते हैं. इस पर तमाम दुनिया की नजर है और आगे भी बनी रहेगी, क्योंकि पाकिस्तान में सेना प्रमुख का मतलब कई अर्थों में 'राष्ट्र प्रमुख' भी होता है. छुपी परतों की बात करें तो, एक और महत्वपूर्ण तथ्य जो जनरल बाजवा की नियुक्ति में शामिल है, वह अमेरिका में बदले सत्ता-तंत्र से भी संबंधित है. जिस तरह से डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के राष्ट्रपति चुने गए हैं, उस ने पाकिस्तान को खासा चिंतित किया है, क्योंकि पाकिस्तान में सेना प्रमुख विदेश नीति का एक बड़ा एजेंडा तय करता है. अब चूँकि, अमेरिकी राष्ट्रपति की छवि आतंकवाद के साथ इस्लामिक चरमपंथ के विरोधी के तौर पर भी है, तो पाकिस्तान का चिंतित होना लाजमी ही है. General Qamar Javed Bajwa, Hindi Article, New, Pakistan Army Chief, Foreign Policy, India, America, China, Afghanistan, World Politics, Terrorism


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अमेरिका से बड़ी मदद हासिल करने वाला पाकिस्तान अमेरिका का विश्वास लगातार खोता जा रहा है और नए जनरल के माध्यम से कहीं न कहीं अविश्वास की इस दीवार पर लेप लगाने की चाहत भी पाकिस्तान ने पाल राखी होगी. बहुत मुमकिन है कि जनरल बाजवा की उदार छवि को इसलिए भी तवज्जो दी गई है. जाहिर तौर पर पाकिस्तान में आतंकवाद से निपटने की रणनीति के साथ-साथ अमेरिका से तालमेल बिठाना जनरल बाजवा के लिए एक बड़ी चुनौती रहेगी. न केवल अमेरिका, बल्कि जनरल बाजवा की छवि को लेकर शेष दुनिया को भी सकारात्मक संदेश देने की कोशिश पाकिस्तान सरकार द्वारा अंजाम दी गई है. इस संबंध में अगर चीन की बात करते हैं तो वह पाकिस्तान के शुभ चिंतक के तौर पर खुद को स्थापित करने की पुरजोर कोशिश में लगा हुआ है और नए जनरल की नियुक्ति के पश्चात भी आर्थिक कारिडोर (CPEC) के माध्यम से पाकिस्तानी जनता पर अपना प्रभाव मजबूत करता रहेगा. इन तमाम बातों के बीच सबसे महत्वपूर्ण नए जनरल का दृष्टिकोण ही रहेगा जो तय करेगा कि पाकिस्तान 21वीं शताब्दी में तमाम नए विकासवादी नियमों को आत्मसात करेगा अथवा आतंकवाद और भारत विरोधी मानसिकता को पालना जारी रखेगा. नए जनरल यह बात बखूबी जानते होंगे कि भारत या किसी अन्य देश के मुकाबले खड़े होने में पाकिस्तान के सामने सबसे बड़ी चुनौती उसकी गलत नीतियां ही हैं, वह चाहे चरमपंथियों को प्रमोट करना हो या भारत सहित अफगानिस्तान में आतंकवादियों को भेज कर अव्यवस्था फैलाने की सुनियोजित कोशिश ही क्यों न हो! भाग्य से पाकिस्तान के जनरल के पास इतनी ताकत होती है कि वह पाकिस्तान को गलत रास्ते से सही रास्ते पर ला सके और इसका नमूना जनरल बाजवा के पूर्ववर्ती जनरल राहिल शरीफ ने ज़र्ब-ए-अज्ब आतंकवाद विरोधी अभियान शुरू कर बखूबी दिया है. General Qamar Javed Bajwa, Hindi Article, New, Pakistan Army Chief, Foreign Policy, India, America, China, Afghanistan, World Politics, Terrorism

यह भी पढ़ें: कश्मीर-समस्या 'आज़ादी से आज तक' अनसुलझी क्यों और आगे क्या ?


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हालाँकि, वह भी कई बार भारत विरोधी राग ही अलापते रहे थे, पर पाकिस्तान में आंतरिक आतंकवाद से निपटने के लिए उनके प्रयासों की सराहना अवश्य की जानी चाहिए. कम से कम जनरल बाजवा उनकी इस विरासत को आगे बढ़ाएंगे इस बात की उम्मीद हर एक को होनी चाहिए. जनरल बाजवा को जनरल राहिल शरीफ के उस दर्द को भी समझना होगा कि आतंकवाद से आतंरिक रूप से लड़ने के बावजूद उन्हें वैश्विक स्तर पर वह इज्जत क्यों नहीं मिली, जिसके वह हकदार थे? इसका सीधा कारण यही था कि जनरल राहील शरीफ भी 'अच्छे आतंकवाद और बुरे आतंकवाद' की बचकानी परिभाषा में उलझ गए थे. मतलब आईएसआई द्वारा जो आतंक भारत या अफ़ग़ानिस्तान में फैलाया जा रहा है, वह पाकिस्तानी सेना की नज़र में 'अच्छा आतंकवाद' था, जबकि जो पाकिस्तान में आत्मघाती हमले हो रहे हैं, वह 'बुरा आतंकवाद'! जनरल बाजवा जैसे सुलझे दृष्टिकोण वाले व्यक्ति को अवश्य ही इन चक्करों में फंसकर अपना और अपने देश का नुक्सान करने से बचना चाहिए और हर तरह के आतंक पर पूर्ण विराम लगाने का यत्न करना चाहिए, अन्यथा वह लाख कोशिश कर लेंगे, पर अंततः उनका नाम भी राहील शरीफ जैसे अन्य पाकिस्तानी जनरल्स की तरह धुंधले अक्षरों में ही दर्ज रहेगा या फिर जनरल जिया उल हक़ या मुशर्रफ नामों जैसे 'काले अक्षरों' में क्योंकि उन्होंने भारत को ना समझने की भारी भूलें जो की थीं, बजाय कि अपने देश के "आतंकवाद एवं धर्मान्धता" को समझने के!


- मिथिलेश कुमार सिंह, नई दिल्ली.

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कहते हैं जो बाजी हारकर जीत जाए, वही सिकंदर कहलाता है. पिछले दिनों उत्तर प्रदेश की सत्ता पर विराजमान समाजवादी पार्टी में जो कलह खुलकर सड़कों पर सामने आयी, उसने इस पार्टी के सामने विपक्ष की चुनौतियों के अतिरिक्त नयी चुनौतियां भी पैदा कर डाला. अगर आप राजनीति के इतिहास को देखें तो इस तरह के आपसी विवाद, ल

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ताबड़तोड़ मेट्रो प्रोजेक्ट्स के लिए अखिलेश यादव को धन्यवाद!

13 अक्टूबर 2016
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उत्तर प्रदेश में अगर सबसे बड़े औद्योगिक शहर का नाम लिया जाए तो बिना किसी संदेह के कानपुर का नाम लिया जा सकता है, वह भी आज से नहीं, बल्कि कई दशकों से! वस्तुतः देश भर में कानपुर का विशेष स्थान है, किन्तु दुर्भाग्य से इस शहर की उपेक्षा काफी हद तक हुई थी, जिसे सुधारने का यत्न करते जरूर दिख रहे हैं अखिलेश

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दिवाली का भारतीय अर्थशास्त्र एवं चीन संग आधुनिक व्यापार!

20 अक्टूबर 2016
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दोनों शब्दों का इन दिनों खूब तालमेल नज़र आ रहा है. मीडिया से लेकर सोशल मीडिया और भारत से लेकर चीन तक इस उहापोह पर कड़ी नज़र भी रखी जा रही है. इस बात में रत्ती भर भी संदेह नहीं होना चाहिए कि वगैर राष्ट्रीय भावना के कोई राष्ट्र लंबे समय तक जीवित नहीं रह सकता और हमारे त्यौहार निश्चित रूप से लोगों को सामाज

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हाँ, मोदी या इंदिरा के राजनीतिक उभार से जरूर सीख लें अखिलेश!

28 अक्टूबर 2016
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समाजवादी पार्टी के हाई प्रोफाइल ड्रामे के बीच 24 अक्टूबर को हुई पार्टी की महाबैठक में मुलायम सिंह यादव ने अखिलेश यादव को सीख देते हुए कहा कि उन्हें पीएम मोदी से सीखना चाहिए, जो प्रधानमंत्री बनने के बाद भी अपनी माँ को नहीं भूले हैं. हालाँकि, सपा सुप्रीमो का सन्दर्भ यह था कि वह शिवपाल यादव, अमर सिंह क

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खतरनाक प्रोडक्ट्स का पैसे के लिए विज्ञापन करते भारतीय सेलिब्रिटीज और जेम्स बांड!

30 अक्टूबर 2016
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हमारे देश में यह नई बात नहीं है कि सिर्फ और सिर्फ पैसे की खातिर तमाम सेलिब्रिटीज उन वस्तुओं को भी प्रमोट करते नज़र आ जाते हैं, जो आम जनता के लिए सीधे तौर पर हानिकारक होता है. अगर घुमा फिरा के बात ना की जाए तो हमें नज़र आ जायेगा कि तमाम टॉप ग्रेड स्टार बॉलीवुड के सितारे हों अथवा क्रिकेट खिलाड़ी हों, उन

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'अमर सिंह' जैसे तो बदनाम होने के लिए ही बनते हैं, किंतु ...

31 अक्टूबर 2016
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समाजवादी पार्टी में हो रही पारिवारिक और राजनैतिक उठापटक से भला कौन परिचित नहीं होगा. जूतमपैजार मची है, एक दूसरे की टांग खींचने की जैसे प्रतियोगिता हो रही है और तो और अब पिता को कोई शाहजहां बता रहा है तो बेटे को कोई औरंगजेब! चाचा-भतीजा, भाई, सौतेली माँ इत्यादि सभी पारिवारिक मसाले इस ड्रामे में दिख रह

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कश्मीरी आवाम के लिए भस्मासुर बन चुके हैं 'हुर्रियत अलगाववादी'!

2 नवम्बर 2016
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जम्मू कश्मीर में पिछले दिनों से चल रही हलचल पर हर भारतीय दुखी हुआ होगा. आखिर कौन चाहता है कि उसके अपने ही भाई, उसके अपने हमकदम भारतीय लगातार कई महीनों तक कर्फ्यू से परेशान रहें, दुखी होते रहें! बड़ा आसान है कह देना कि इन समस्याओं के लिए भारत की सरकार या जम्मू-कश्मीर की राज्य सरकार जिम्मेदार है, मगर

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ट्रंप की जीत के मायने, 'अमेरिका-भारत-रूस' का त्रिकोण संभव!

13 नवम्बर 2016
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दुनिया भर में तमाम बदलाव हो रहे हैं एवं लोगों की मानसिकता भी उसी अनुपात में बदल रही है. कहा गया है कि 'परिवर्तन संसार का नियम है' और इस बात को श्रीमद्भागवत गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने सविस्तार समझाया है. डोनाल्ड ट्रंप को पिछले 1 साल से हमने, आप ने खूब सुना है. हालांकि यह नाम उससे पहले भी रियल एस्टेट

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पाकिस्तानी आर्मी के नए जनरल बाजवा एवं ... !!

29 नवम्बर 2016
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हमारे पडोसी देश पाकिस्तान की आर्मी के अब तक सैन्य प्रमुख रहे राहिल शरीफ ने बिना किन्तु-परंतु के अपना पद छोड़कर एक अलग उदाहरण पेश करने का साहस किया है, क्योंकि पाकिस्तान में अब तक अधिकांश सैन्य-प्रमुखों ने लोकतंत्र को कालिख ही लगाई है. जनरल मुशर्रफ एवं जिया उल हक़ जैसे सैन्य शासकों ने तो न केवल पाकिस्

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दिल्ली की बदलती राजनीति में फिट हैं मनोज तिवारी

2 दिसम्बर 2016
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नवंबर के आखिरी दिनों में जब लोकप्रिय भोजपुरी गायक मनोज तिवारी की दिल्ली प्रदेश के भाजपा अध्यक्ष के रूप में घोषणा हुई तो मुझे कोई खास आश्चर्य नहीं हुआ. बरबस ही बीता विधानसभा चुनाव याद आ गया जिसमें आम आदमी पार्टी ने क्लीन स्वीप करते हुए 70 में से 67 सीटें अपनी झोली में डाल ली थी. इस बात में कोई दो राय

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क्या आप पेस्ट करने के साथ टेक्स्ट को हिंदी में बदलना चाहते हैं?

10 दिसम्बर 2016
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'धोबी का कुत्ता, न घर का न घाट का' नामक यह मुहावरा जब भी बना होगा, निश्चित रुप से इसे बनाने वाले ने नहीं सोचा होगा कि इसका सर्वाधिक प्रयोग राजनीतिक संदर्भ में ही किया जाएगा. हाल-फिलहाल इसका सबसे सटीक उदाहरण पंजाब से आ रहा है. पंजाब चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आता जा रहा है, नेता और कार्यकर्त्ता भी इधर उधर

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बाप रे बाप, मुलायम का ऐसा भयानक दांव! Akhilesh Yadav Hindi Article

3 जनवरी 2017
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कई बार अपच हो जाने से मेरा पेट खराब हो जाता है तो मैं 'कायम चूर्ण' का सेवन कर लेता हूँ. हाल-फिलहाल, बाबा रामदेव का चूरन भी लाया हूँ. उत्तर प्रदेश में पिछले दो-तीन दिनों से जो हलचल मची है और ऊपर ऊपर जो कहानी दिख रही थी, वह पच ही नहीं रही थी. दोनों चूर्ण खाये मैंने, पर फिर भी यह बात पची नहीं कि अखिलेश

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बिहार की खुलकर तारीफ सुनना 'आत्मा' को सुकून दे रहा है!

9 जनवरी 2017
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Pride of Bihar, Hindi Article, New, Guru Govind Singh, 350 Prakash Utsav, History of Bihar Essay, Nitish Kumar, Laloo Yadavहिंदी भाषी क्षेत्र में बिहार राज्य का प्रमुख स्थान है और यहां की प्राचीन और समृद्ध संस्कृति ने देश को काफी कुछ दिया है. आप चाहे राजनीति की बात करें, कूटनीति या शिक्षा की बात कर

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जुबां को 'छोटी' ही रखें 'विराट'

10 नवम्बर 2018
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अगर तुम 'ऐसे' हो तो देश छोड़ दो अगर तुम वैसे हो तो देश छोड़ दो!अगर तुम 'यह' खाते हो तो देश छोड़ दो अगर तुम 'वह' खाते हो तो देश छोड़ दो!अगर तुम 'अलग' तरह की सोच रखते हो तो देश छोड़ दो और अगर 'किसी खास तरह की सोच से इत्तेफाक नहीं रखते' तो देश छोडकर चले जाओ!सच कहा जाए तो देश छोड़ने की बात आज-कल इतनी कै

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