जेल में जाने से कोई अपराधी नहीं हो जाता जबतक न्यायालय उसे दोषी न ठहराए. अपराध सिध्द होने तक हम कथित तौर पर गिरफ्तार अभियुक्तों को चोर, हत्यारा, आतंकवादी या देशद्रोही कहते हैं. विशेष रूप से इन शब्दों का इस्तेमाल कोर्ट और पत्रकारिता में किया जाता है. लेकिन हमारे देश में तो न्यायालय के फैसले से पहले ही सोशल मीडिया और
समाचार पत्रों व चैनलों पर कथित अपराधी को देशद्रोही या आतंकवादी सिध्द कर दिया जा रहा है,जो कि देशहित के विरुद्ध है. केवल पुलिस के चार्ज लगा देने से अपराधी को सजा देनी होती तो फिर न्यायालय की जरूरत नहीं होती. और आज लगभग देश का हर नेता अपराधी होता क्योंकि शायद ही कोई ऐसा नेता हो जिसके ऊपर हत्या, बलात्कार, नरसंहार जैसे मामले दर्ज न हो. लेकिन हमारा न्यायिक व्यवस्था या संविधान कहता है कि भले देर हो फैसला सुनाने में पर किसी बेगुनाह को सजा नहीं होनी चाहिए और यह खासियत व गरिमा है हमारे संविधान की. तभी तो कसाब और अफजल जैसे आतंकियों को सजा दिलाने में देर लगा वर्ना कथित अपराध के आधार पर फांसी की सजा सुनाने में कितना देर लगता! सच तो यह है कि न्यायिक व्यवस्था जन साधारण सोच से बहुत परे है. आप जागरूक बनकर सवाल कीजिये या पुलिसकर्मी है तो आम जनता की रक्षा कीजिए लेकिन जज और जल्लाद बनकर किसी को सजा देने का अधिकार नहीं है. संविधान के अनुसार कथित अपराधियों को सजा देना और अपराधी कहना दोनों गैर कानूनी व अमानवीय है. हमें अपने दायित्व को समझकर संवैधानिक फैसला लेने का अधिकार है न कि देश में हिंसा के बारूद बिछाने का. परंतु कन्हैया कुमार, रोहित वेमुला से लेकर सिमी के आठ कथित आतंकवादियों के फर्जी एनकाउंटर मामलों पर विचार करें तो लगता है कि '
देशभक्ति ' की परिभाषा मढ़ी जा रही है और देश दो वर्गों में बंट गया है. एनडीटीवी को राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देकर 09 नवंबर, 2016 को टेलिकास्ट रोकने की घोषणा के खिलाफ मैं नहीं लेकिन जी टीवी के द्वारा डॉक्टरेड विडियो टेलिकास्ट करने के जुर्म में सरकार के सौतेले रवैये के खिलाफ लोगों का आना वाजिब है.
लोकतंत्र को संविधान के अनुसार चलने देना चाहिए क्योंकि संविधान के बिना लोकतंत्र की कल्पना नहीं की जा सकती. राष्ट्रभक्ति और देशहित की बात करने वाले खुद ही न्यायालय के फैसले के खिलाफ काम कर रहे हैं, भले ही उनके जुबां पर वंदे मातरम् और भारत माता की जय के बोल हैं. सवाल तो अब यह उठ रहा है कि क्या संविधान से परे है आज की राष्ट्रभक्ति?