देश बेंच के खा डाला है
नेता और दलालों ने ।
जनता के घर डाका डाला
मिलकर नमक हरामों ने ।
खादी टोपी बर्बादी की
बनी आज परिचायक है ।
चोर उचक्के आज बन गए
जनता के जन नायक हैं ।
गाली – गोली किस्मत अपनी
जीवन फँसा सवालों में ।
देश बेंच के खा डाला है
नेता और दलालों ने ।
सरकारी जोंकें चिपकी हैं
लोकतन्त्र के सीने में ।
मज़ा आ रहा है उनको
ख़ून चूस कर पीने में ।
औषधि अभाव में हिन्द
तड़प दम तोड़ रहा ।
अमृत दाता ही समाज में
देखो विष को घोल रहा ।
विवश दुधमुंहें गरलपान को
उन्नत देश ख़यालों में ।
देश बेंच के खा डाला है
नेता और दलालों ने ।
रथ विकास का बन विनाश
अब दौड़ रहा ।
चढ़कर इस पर सत्ता धारी
सुख वैभव सब लूट रहा ।
श्वेतवसनधारी भारत में
भाग्यविधाता दिखता है ।
राजनीति के मक़तर में
रथ का घोड़ा कटता है ।
तारकोल सड़कों का चाटा
चाराखोर दलालों ने ।
देश बेंच के खा डाला है
नेता और दलालों ने ।
विष की खेती आज हो रही
राजनीति के खेतों में ।
मेढ़ों पर सिर कटते हैं
जंग हो रही बेटों में ।
संतापित हैं तप्त हृदय
बेचारी सी माताओं के ।
दिशहीन संतति चंगुल में
फंसी आज नेताओं के ।
मधुरिम मधुमय देश बेचारा
तड़प रहा है तालों में ।
देश बेंच के खा डाला है
नेता और दलालों ने ।
हिन्द फंसा गुर्बत में देखो
कौम दीखती अन्धी है ।
अन्तस में है घोर हलाहल
नफ़स ख़लिश है मज़लिश में ।
क़तरा – क़तरा लहू जिस्म का
रंगा सियासी रंगों में ।
अलबत्ता इन्सान आज का
फंसा सियासी फन्दों में ।
अनुराग तड़पता द्वेष ईर्ष्या
के चमकीले जालों में ।
देश बेंच के खा डाला है
नेता और दलालों ने ॥