विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ का 21 वाँ वार्षिक अधिवेशन उज्जैन में आजोयित हुआ. विद्यापीठ के अधिष्ठाता डॉ. योगेंद्रनाथ शर्मा ‘अरुण’, कुलाधिपति डॉ. सुमन भाई, कुलसचिव डॉ. देवेंद्रनाथ शाह, कुलानुशासक डॉ. चंद्रशेखर शास्त्री और पीठ के उत्तराखंड प्रभारी गोपाल नारसन ने संयुक्त रूप से अधिवेशन का उद्घाटन किया. इस अवसर पर डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा को उनकी सुदीर्घ हिंदी सेवा, सारस्वत साधना, कला के क्षेत्र में महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ, शैक्षिक प्रदेयों के लिए विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ ने विद्या सागर (मानद डीलिट) उपाधि प्रदान की है. उल् लेख नीय है कि गुर्रमकोंडा नीरजा उच्च शिक्षा और शोध संस्थान, दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, हैदराबाद में प्राध्यापक हैं. तेलुगु साहित्य : एक अवलोकन, तेलुगु साहित्य का हिंदी अनुवाद : परंपरा और प्रदेय, अनुप्रयुक्त भाषावि ज्ञान , तेलुगु साहित्य : एक अंतर् यात्रा शीर्षक चार आलोचनात्मक के साथ-साथ डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ के कहानी संग्रह ‘टूटते दायरे’ का तेलुगु अनुवाद अंधकारमपै सम्मेट देब्बा और एक काव्य संग्रह कुछ कोलाहल, कुछ सन्नाटा प्रकाशित हैं. इनके अतिरिक्त उन्होंने सात पुस्तकों का संपादन भी किया है. इनमें भाषा की भीतरी परतें (भाषाचिंतक प्रो. दिलीप सिंह अभिनंदन ग्रंथ), मेरी आवाज, उत्तर आधुनिकता : साहित्य और मीडिया, संकल्पना, अन्वेषी, निरभै होइ निसंक कहि के प्रतीक और अँधेरे में : पुनर्पाठ सम्मिलित हैं. इनके निर्देशन में 33 शोधार्थियों ने एमफिल और 8 शोधार्थियों ने पीएचडी उपाधि प्राप्त की. 2008 से दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, हैदराबाद द्वारा प्रकाशित मासिक ‘स्रवंति’ के सह-संपादक भी हैं. अंतरराष्ट्रीय हिंदी भास्कर सम्मान, भारतेंदु हरिश्चंद्र सम्मान, साहित्य सेवी सम्मान, परिलेख हिंदी साधक सम्मान एवं तेलुगु भाषी हिंदी लेखक पुरस्कार से सम्मानित हैं.