मैं मुसाफिर हूँ मंज़िल नही जानता ।
क्या है आसां क्या मुश्किल नही जानता।।
इन निगाहों को समझा वफ़ा ही सदा
क्या करेंगी ये घायल नही जानता ।।
मरहम-ए-जख़्म है इश्क़ जाना मगर
इश्क़ का दर्द-ए-दिल नही जानता।।
हमसफ़र हममदद हमजहां में ही था
हम भी होते हैं क़ातिल नही जानता।।
मैंने पानी को पानी ही समझा सदा
क्या है दरिया? क्या साहिल? नही जानता।।
अनिल कुमार शर्मा
22 दिसम्बर 2016बहुत सुन्दर