shabd-logo

जिनमें आसीर है ..

26 दिसम्बर 2016

283 बार देखा गया 283

यूँ तो कुछ नहीं बताने को..चंद खामोशियाँ बचा रखे हैं


जिनमें असीर है कई बातें जो नक़्श से उभरते हैं



खामोशियों की क्या ? कोई कहानी नहीं...



ये सुब्ह से शाम तलक आज़माए जाते हैं


क्यूँकि हर तकरीरें से तस्वीरें बदलती नहीं


न हि हर खामोशियों की तकसीम लफ़्जों में होती


रफ़ाकते हैंं इनसे पर चुनूंगी हर तख़य्युल को


जब खुशी से वस्ल होगी...

© पम्मी सिंह

.


(आसीर-कैद ,तकरीर-भाषण,रफाकते-साथ,तख़य्युल-विचारो,तकसीम-बँटवारा )

पम्मी सिंह की अन्य किताबें

1

Guftugu: Niyat

29 अगस्त 2016
0
2
0

नियतखामोश जबानों की भी खुद की भाषा होती है कभी अहदे - बफा के लिए ,कभी माहोल को काबिल बनाने के लिए मु.ज्तारिब क्या करु नियत नहीं . . दुसरे पर कीचड़ उछाल कर ख़ुद को कैसे साफ़ रखू। कभी खुद के घोसले ,कभी दुसरो के तिनके की पाकीज़गी बनाए रखने की नियत ,मुख्तलिफ़ होकर भी ख़ामोशी अपनी मश

2

जिनमें आसीर है ..

26 दिसम्बर 2016
0
2
0

यूँ तो कुछ नहीं बताने को..चंद खामोशियाँ बचा रखे हैंजिनमें असीर है कई बातें जो नक़्श से उभरते हैंखामोशियों की क्या ? कोई कहानी नहीं...ये सुब्ह से शाम तलक आज़माए जाते हैंक्यूँकि हर तकरीरें से तस्वीरें बदलती नहीं न हि हर खामोशियों की तकसीम लफ़्जों में होतीरफ़ाकते हैंं इनसे

3

आनेवाली मुस्कराहटों ..

6 जनवरी 2017
0
3
0

लो गई..उतार चढ़ाव से भरीये साल भी गई...गुजरता पल,कुछ बची हुई उम्मीदेआनेवाली मुस्कराहटों का सबब होगा,इस पिंदार के साथ हम बढ़ चले।जरा ठहरो..देखोइन दरीचों से आती शुआएं...जिनमें असिर ..इन गुजरते लम्हों की कसक, कुछ ठहराव और अलविदा कहने का...,पयाम...नव उम्मीद के झलककुसुम के महक का,जी शाकिर हूँ ..कुछ चापों

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए