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तुम्हारा ख़याल

29 दिसम्बर 2016

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सच है की तुमसे है ज़्यादा,

तुम्हारा ख़्याल ख़ूबसूरत
क्यूँकि इसमें हक़ीक़त के
दाग़ों का शुमार नहीं
ढल जाता है ये मेरी पसंद से …

घंटो बैठता है मेरे नज़दीक ये
मेरी आँखों में आँखें डाल,
पकड़ कर मेरे हाथो को
दे जाता है गरमाहट
ठंडी अकेली शामों में अक्सर…

मेरी उदासियों का गवाह बनके
चुपचाप रहता है नज़दीक मेरे
बिना किसी चाहत के, फ़रमाइश के
मेरी ख़ामोशियों से बात करता हुआ ये
दे जाता है फिर से उठने की तमन्ना
और ज़िंदगी की भीड़ में शामिल
होने की हिम्मत …

कुछ भी तो नहीं माँगता ये मुझसे
बस शामिल रहता है मुझमें
हर जगह हर समय
हाँ ये सच है की तुमसे है ज़्यादा
तुम्हारा ख़्याल ख़ूबसूरत ….

By – Sneha Dev
7/09/2016

रेणु

रेणु

बहुत --------------------- बहुत ही हृदयस्पर्शी

24 मई 2017

स्नेहा

स्नेहा

धन्यवाद :)

30 दिसम्बर 2016

रवि कुमार

रवि कुमार

बहुत सुंदर

30 दिसम्बर 2016

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ख़ुशगुमानी

12 जून 2016
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ख़ुशगुमानीयूँ आरज़ू को हवा दी मैंने ,की उड़ा ले चली है मेरी रूह को ऐसे,की आता नहीं सुकूँ जमी पर मुझे,और क़दम ठहरते नहीं बादलों पर मेरे.. ऐ खुदा, हसरतों को देकर रवानी थोड़ी, मेरी हस्ती को कोई तो कहानी दे दे...कुछ तो होगा तेरे ज़हन में मेरा नक़्श,राह दिखा कुछ, ज़िंदगी में ज़िंदगानी दे दे .. यूँ तो तेर

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ज़िन्दगी तुम मेरी प्रिय सहेली...

13 जून 2016
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ज़िन्दगी तुम मेरीप्रिय सहेली...  रोज़सुबह सूरज के संग, तुम भी यू आ जाती हो,उठामुझे गरम बिस्तर से, काम थमा यूँ देती हो,फिरभी होती हूँ मैं प्रसन्न, और देती हूँ यूँ मुस्कुरा,एकऔर दिया है सुंदर दिन, जीने को तुमने ओप्रिया, कभीहुए दुखी तुमसे हम, कभी घंटो राह तकी है,कभीभीगे हुए नयनो में भी, तुमसे आस जगी है

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ख़ामोश लफ्ज़

13 जून 2016
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गर रहती ख़ामोश तो बदल जाते लफ़्ज़ ज़हर मेंऔर मैं मर जाती ...आते जो लफ़्ज़ बाहर.. रिश्ते मर जाते,नुक़सान तो आख़िर हुआ मेरा ही इस सफ़र में...By - Sneha 

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याद के साये…

14 जून 2016
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याद के साये… लम्हा लम्हा, पलछिन पलछिनगुज़र गए हैं, एक दिन दो दिनधुआँ धुआँ हैं, याद के सायेये दिन वो दिन, वो दिन ये दिन,अब भी अक्सर आते जाते,उड़ते फिरते, आवारा से,बादल के छिछोरे गुब्बार,अनचाहे ही ज़िद्दी बन के,छू के करें ठिठोली मन से,बन बन बारिश की बौछार…महक उड़ा सौंधी मिट्टी की ,जगा गए हैं, अतृप्त प

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शब्दानगरी को धन्यवाद

14 जून 2016
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मेरी लिखी रचनाओं को पसंद और पुरुष्कृत करने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया.   आपकी सरात्मक टिप्पीडियो के लिए आभार. स्नेहा देव 

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18 जून 2016
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बाबूजी ... (पित्र दिवस के अवसर पर सभी पिताओं को समर्पित मेरी एक रचना)

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‘बाबूजी’…  कभी था स्तम्भ एक गर्वित सा,  जो जीवन पथ पर डटा हुआ,हर एक पल जिसके जीवन का था, संघर्ष से भरा हुआ,फिर भी दिखा न हमें कभी उसके माथे कोई मलाल,या समय नहीं था रुकने का, और उठा सके कोई सवाल,अनजाने ही में ये सब उसने सिखा दिया था हमको भी,तो क्या मलाल और क्या सवाल, शब्दावली में यह थे ही नहीं… सब जग

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कुछ रंग तू भर दे स्याही में ,कुछ हवा दे दे अरमानों को, कलम भी तेरी कलाम भी तेरा, तू रुख बदल दे तूफानों के ...

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काश तुम थोड़ा और ठहर जातीकाश मैं कुछ पहले समझ पातीकाश न निभाई होती फ़िज़ूल की सामाजिक रस्में मैंने और काश तुमने भी हर बार न समझ करमेरी परिस्तिथी को, थोड़ा ज़िद करमुझें बुलाया होता,तुम तो बड़ी थी पता तो होगा तुमकोकी तुम्हारे बाद तुम्हारा ख्याल जब जबआएगा न जाने कितनें खोएं लम

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नाज़ था जिस ख़ूबसूरती पर मुझे वही मासूमियत की मौत बन गया,पहुँच न पाया इश्क़ रूह तकज़िस्म राह में सौत बन गया ...By - Sneha Dev (1/5/17)

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