जख्मो को सहलाने की उम्मीद न कर जख्मो को कुरेदने का आदी है ज़माना।
जज्बात बेहतर है सिने में छुपाना कद्र करने वालों का न रहा पता-ठिकाना।
रोनाधोना चुपचाप ही हो तो अच्छा दुखों मे शामील होना होगया रस्म पुराना।.
एक ही मन्तर चलता है आज जिसका भरा है खज़ाना उसीके पिछे जमाना।.
*आशफाक खोपेकर*