दोस्तों कि ‘‘मैं क्रांतिदूत हूं" मेरा जीवन साधनामय सा है । दूसरे कैसे हैं, क्या करते हैं, क्या सोचते हैं, क्या कहते हैं, इसकी मैं तनिक भी परवाह नहीं करता । अपने आप में सन्तुष्ट रहता हूं, मेरी कर्तव्य पालन की सच्ची साधना इतनी महान है, इतनी शांतिदायिनी, इतनी तृप्तिकारक है कि उसमें मेरी आत्मा आनन्द में सराबोर हो जाती है । मैं अपनी आनन्दमयी साधना को यूँ हीं निरन्तर जारी रखूंगा क्षेत्र में परमार्थ भावनाओं के साथ ही काम करूंगा । मै समझता हूँ कि यह संकल्प दृढ़तापूर्वक सबों के मन में जमा रहना चाहिए । जब भी मन विचलित होने लगे, जब भी पैर पीछे डिगने की संभावना प्रतीत हो तभी इस संकल्प को मनोयोग पूर्वक दृढ़ करना चाहिए...