shabd-logo

खादी और चरखा विचारधारा की लड़ाई

14 जनवरी 2017

243 बार देखा गया 243
featured image article-image

खादी और चरखा दोनोें ही महात्मा गांधी के पर्याय माने जाते हैं। राजनीति के चश्में को यदि किनारे कर दिया जाये, कांग्रेस और भाजपा की सोच पर यदि निष्र्कष निकाला जाये तो मुझे जहां तक लगता है, कि हां कम से कम कांग्रेस ने गांधी को मिटाने या हटाने का प्रयास नहीं किया। उनके बदले, उनके स्थान पर कभी किसी को चिपकाने का प्रयास नहीं किया चाहे वह जवाहर हो, इंदिरा गांधी हो, शास्त्री हो, मनमोहन सिंह हो कभी किसी को इस लायक नहीं समझा गया कि वे महात्मा गांधी के विचार धारा के पोषक है अथवा इस लायक है कि उनके स्थान पर इनमें से किसी को स्थापित किया जा सके।

किन्तु एक सच्चाई यह भी है कि भाजपा की मातृत्व संस्था जिससे कि आज वह संचालित है आरएसएस ने हमेशा से महात्मा गांधी को लेकर कई तरह के बयान दिये कभी उन्हें अपने घर में जगह देने का प्रयास भी नहीं किया। काफी समय तक मैं भी अपने काॅलेज एवं स्कुली जमाने में आरएसएस से जुड़ा रहा किन्तु यह नहीं देखा की कभी महात्मा गांधी को भुल से भी याद किया गया हो, न तो 2 अक्टूबर, न 30 जनवरी और 15 अगस्त और 26 जनवरी कि तो तब आरएसएस कार्यालय में बात भी नहीं होती थी और तिरंगे का प्रचलन भी नहीं था, केवल भगवा ध्वज ही सबकुछ था। भले ही मोदी के प्रधानमंत्री बनने के पहले एवं उसके बाद आरएसएस को महात्मा गांधी के प्रति दिलचस्पी दिखानी पड़ी हो, भले ही 15 अगस्त को तिरंगा झण्डा फहराने पर मजबुर होना पड़ा हो। जो चिज जो बात कांग्रेस और भाजपा में अभी दिखाई दे रही है वह यह है कि महात्मा गांधी के विचारधारा पर चलने वाली पार्टी कांग्रेस महात्मा गांधी को उनके स्थान पर रखते हुए भी महात्मा गांधी के उल्ट काम करती रही मतलब साफ है भ्रष्टाचार। इसके बावजुद वह महात्मा गांधी को उनके स्थान से उनके पर्याय से कभी हटाने की कोशिश नहीं कि, जबकि सत्ता में रहने का इनका इतिहास बहुत लम्बा है। किन्तु वहीं महात्मा गांधी के उल्ट विचार धारा में चलने वाली पार्टी ने महात्मा गांधी को अपने कार्यालय के दिवार में जगह देते हुए, उन्हें अपने घर में जगह देकर, उनको उनके घर से हटाने के राह पर चल पड़ी है।

दोनों ही पार्टियों में ज्यादा अंतर नहीं है एक तो महात्मा गांधी के विचारधारा पर सही चल नहीं सके तो दूसरी उनकी विचारधारा पर चलने का नाटक कर उनको उनके ही घर से भगाने पर अमादा है। एक दुबला सा इंसान जिसके तन पर पुरे शरीर को ढकने लायक कपड़ा तक नहीं होते, जो अपनी अधिकतर यात्रा एं पैदल चल कर करता है, स्वयं सारे कार्यों को पहले करता है ताकि देख कर दूसरे लोग भी करें, विरोध में आवाज उठाने के लिये स्वयं उपवास करता है, दूसरों को कष्ट नहीं देता और इसी तरह चलते हुए सत्य एवं अहिंसा के रास्ते पर अपनी आहुति देे देता है और उस इंसान को महात्मा गांधी और बापू का दर्जा देकर यह देश हमेशा, हर दिन, हर जगह जहां भी उनकी बात को सम्मान देता है।

दूसरी ओर वह व्यक्ति है जिसके ऊपर गुजरात दंगा जैसी घटना के दाग हैं, जो हमेशा हर मंच पर यह चिल्लाता फिरता है कि मैंने देश के लिये घर-परिवार छोड़ दिया। किन्तु जो व्यक्ति अपनी तुलना अब महात्मा गांधी से करवाना चाहता है उसे यह ध्यान रखना चाहिए कि महात्मा गांधी का भी घर एवं परिवार था, किन्तु उन्होंने कभी किसी को छोड़ा नहीं और मुझ आज तक जितनी पुस्तकें मिली हैं महात्मा गांधी के बारे में पढ़ने को एक भी लेख क ने यह नहीं लिखा की कहीं महात्मा गांधी ने यह कहा हो मैं यह सादगी अपने देश के लिये रखा हूं, मैंने देश के लिये घर-परिवार छोड़ दिया। देश के लिये आपको क्या करना है, यह आपकी समझ है, देशवासी यह नहीं कहते कि आप देश के लिये घर-परिवार छोड़ दिजिये। जिस महात्मा गांधी ने विरोध स्वरूप एक थप्पड़ खाने के बाद दूसरा गाल आगे कर दिया हो, उसका स्थान लेने की मन बना रहे व्यक्ति को यह ध्यान रखना चाहिए कि विरोधियों को सहने की शक्ति उनमें पैदा हो, लेकिन ये तो विरोध करने वाले पर सीधे कार्यवाही कराते हैं और बनना चाहते हैं महात्मा गांधी। चरखा लेकर फोटो खिंचाने से, कैलेण्डर से फोटो गायब कर देने से कोई महात्मा गांधी नहीं बन जाता, महात्मा गांधी और चरखा तो स्वयं अपने आप में एक विचारधारा है, जिस पर आज भी असंख्य लोग चलना चाहते हैं, किन्तु उनका स्थान लेने जैसा सोचना भी मुझे जहां तक लगता है, गलत है, कम से कम देश के सत्ता पर बैठे लोगों को कुछ भी करने से पहले इन बातों को सोच लेना चाहिए।

महात्मा गांधी-महात्मा गांधी हैं, उनका स्थान कोई ले नहीं सकता। मुझे ऐसा लगता है कि पिछले कुछ दिनों में देश में विचारधारा की लड़ाई चल रही है। देश में सत्तासीन दल एक अलग तरह की विचारधारा लोगों को परोसना चाहती है, जिसके अंदरूनी हिस्से में भगवा विचारधारा कहा जाये तो शायद अतिश्योक्ति नहीं होगी। देश को विकास की लड़ाई लड़नी चाहिए, देश में विकास की बात हो समस्याओं से लड़ने की बात हो तो शायद देश की उन्नति और प्रगति होगी, किन्तु विचारधारा की लड़ाई किसी भी देश के लिये घातक है, अच्छा हो कि हमारे हुक्मरान इस बात को समझ जाये और विचारधारा के लड़ाई का केन्द्र देश को न बनाये। कांग्रेस ने भी देश में काफी लम्बे समय तक सत्ता में रहते हुए देश में शासन किया किन्तु कोई विचारधारा थोपने जैसी बात मुझे दिखाई नहीं देती जहां तक मैं सोच पा रहा हूं, देश के संविधान के अनुरूप सभी धर्मों, सभी लोगों और हर व्यक्ति की अपनी स्वतंत्रता है कि वह देश को नुकसान पहुंचाये बिना अपने अधिकारों की बात कर सकें, किन्तु हर बात से यह संशय न निकाला जाये कि आप देशद्रोही है और आप में देश के प्रति सम्मान नहीं है।

1

क्या यही है देश की तकदीर

12 जून 2016
0
2
1

जहां रिश्वत, प्रलोभन, लोभ और वोट के बाजार में,पैदा होता देश का तारणहार है,जहां सत्ता की भूख से, कुर्सियों की दौड़ में,वोट का करता वह नोट से व्यापार है।क्या वो देश को चला पायेगा,इस तरह के लोभ में मतंगियों को,कौन राह दिखायेगा ?क्या भारत अपनों में ही लुट जायेगा,या फिर से पैदा होना पड़ेगा,भगत, आजाद, शिव

2

स्वच्छ पर्यावरण हेतु मजबुत इच्छाशक्ति की आवष्यकता : अंचल ओझा

23 जून 2016
0
0
0

पाॅलिसी निर्माण में सरकार की अह्म भूमिका होती है, इससे इंकार नहीं किया जा सकता। आज वैश्विक स्तर पर पर्यावरण को लेकर बात की जा रही है, शुद्ध, स्वच्छ एवं स्वस्थ्य पर्यावरण को लेकर कई पर्यावरण विशेषज्ञों तथा वैज्ञानिकों ने चिंता जाहिर की है। भारत के परिपेक्ष्य में मेरा व्यक्तिगत मत यह है कि पर्यावरण को

3

निर्भया का पत्र आपके नाम

23 जून 2016
0
1
1

निर्भया का पत्र आपके नाम- अंचल ओझा, अंबिकापुरलोग कहते हैं मुझे आज़ादी ज्यादा मिल गई, इसलिये बिगड़ गई हूँ।लोग कहते हैं मैं छोटे कपड़े पहनती हूँ, इस लिये बदचलन हूँ। पड़ोस के काका ने भाई से कहा आजकल तेरी बहन मोबाईल पर ज्यादा बात करती है, सम्हालो नहीं तो हाथ से निकल जायेगी। पड़ोस में चर्चा होती है की बेटी को

4

स्वच्छता अभियान कुछ इस तरह से

12 जनवरी 2017
0
2
1

पूर्व से ही निर्मल भारत अभियान के नाम से यह योजना संचालित थी, किन्तु तब शौचालय बनवाने एवं अन्य कार्य के लिये जबरदस्ती नहीं किया जा रहा था। देश में नरेन्द्र दामोदर भाई मोदी के नेतृत्व में भाजपा की सरकार आयी उसने स्वच्छ भारत अभियान को ज्यादा तवज्जों दी और राज्य सरकारों को, राज्य सरकारों ने जिला सरकार

5

खादी और चरखा विचारधारा की लड़ाई

14 जनवरी 2017
0
2
0

खादी और चरखा दोनोें ही महात्मा गांधी के पर्याय माने जाते हैं। राजनीति के चश्में को यदि किनारे कर दिया जाये, कांग्रेस और भाजपा की सोच पर यदि निष्र्कष निकाला जाये तो मुझे जहां तक लगता है, कि हां कम से कम कांग्रेस ने गांधी को मिटाने या हटाने का प्रयास नहीं किया। उनके ब

6

क्या हिन्दू धर्म खोखला और कमजोर है ?

16 जनवरी 2017
0
2
1

डॉ पाल दिनाकरन प्रार्थना सभा : फोटो धर्म इतना कमजोर कैसे है कि वह मात्र एक प्रार्थना से बदल दिया जाता है, या फिर आपके छुआ-छूत का भेदभाव इतना बड़ा है कि लोगों को दूसरी ओर खिंचता है, चाहे जो भी हो। किन्तु पिछले तीन दिनों में जो कुछ भी सरगुजा संभागीय मुख्यालय अम्बिकापुर में घटित हुआ। उसने कहीं न कहीं स

7

बेपटरी हुई बजट?

1 फरवरी 2017
0
1
0

सरकार का बजट आ गया है, उम्मीद से बहुत दूर और निराशाजनक बजट कई मायनों में है, एकाध-दो प्वाइंट को छोड़ दिया जाये, सरकार के साहस को दरकिनार कर दिया जाये तो एक-दो प्रमुख बातों के अलावा मुझे जो लगता है बजट से जनता को जितनी उम्मीदें थी, उस मुताबिक कुछ भी नहीं है, खासकर मजदूर, गरीब, किसान, युवा और महिला वर्

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए