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कोष मूलो दंड

31 जनवरी 2017

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जब से समाज में व्यवस्था स्थापित है तभी से ही शासकों की ओर से शासन चलाने के लिए प्रजा से कर वसूला जाता रहा है। भारत में भी कर वसूलने का इतिहास बहुत पुराना है। मनु काल हो या महाभारत काल या कालिदास या कोटिल्य के अर्थशास्त्र का प्रसंग लें कर व्यवस्था का संदर्भ आता ही है। कालिदास राजा दिलीप का संदर्भ देते हुए कहते हैं कि उसने अपनी प्रजा की भलाई के लिए कर वसूला वैसे ही जैसे सूर्य हजार गुना लौटाने के लिए धरती से नमी सोखता है"- Bhishma’s counsel to Yudhishthira. (Mahabharata, Book 12: Santi Parva: Rajadharmanusasana Parva) राजा को अपनी प्रजा से उचित समय पर धन लेना चाहिए। जैसे एक बुद्धिमान व्यक्ति रोजाना अपनी गाय का दूध दोहता है, राजा को अपने राज्य को प्रतिदिन दोहना चाहिए। जैसे मधुमक्खी, पौधों को हानि पहुंचाए बिना धीरे-धीरे फूलों से मधु एकत्र करती है; राजा को अपने राज्य के स्रोतों से भंडारण के लिए धन इकट्ठा करना चाहिए। कोटिल्य अर्थशास्त्र में कर प्रणाली का विस्तार से वर्णन है। कर प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष तरीके से वसूले जाते हैं। भारत में प्रजा से कर वसूलने की वर्तमान प्रणाली अंग्रेजों की देन है। भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की असफलता के बाद नुकसान की भरपाई के लिए 1860 ई. में भारतीय रजवाड़ों तथा भारतीय अंग्रेजों पर आयकर लगाया गया था। ब्रिटिश भारत के प्रथम वित्तीय सदस्य सर जेम्स विल्सन इसके जन्मदाता थे। गवर्नर जनरल की स्वीकृति उपरांत यह 24 जुलाई, 1860 को अस्तित्व में आया। यह अंग्रेजों और अमीर रजवाड़ों से ही वसूला जाता था। 1865 ई. में यह बीती बात हो गया तथा 1867 ई. में लाईसैंस कर और आयकर को जोड़कर इसे पुन: लागू किया गया और वसूली भू-राजस्व की तर्ज पर ही होती थी। समय समय पर इसमें बदलाव किए जाते रहे तथा एंग्लो-रुस युद्ध के लिए अधिक राजस्व की जरुरत थी इसलिए इसका दायरा व्यापक करते हुए 1886 ई. में अलग आयकर अधिनियम अस्तित्व में आया जो विभिन्न संशोधनो के साथ आयकर अधिनियम, 1918 आने तक अस्तित्व में रहा। पहले विश्वयुद्ध के बाद धन की तंगी को देखते हुये 1916 ई. में पहली बार कर की अलग-अलग दरें तय की गई। वर्ष 1917 में युद्धप्रयासों के चलतेसुपरटैक्सलगाया गया। आयकर अधिनियम 1922 ने 1918 का स्थान ले लिया। तब तक का यह सबसे व्यापक आयकर अधिनियम 1961-62 के निर्धारण वर्ष तक लागू रहा। आयकर अधिनियम 1922 की विभिन्न पेचीदकिओं को देखते हुए भारत सरकार ने आयकर अधिनियम, 1922 को आसान बनाने तथा कर अपवंचन के उपायों हेतु इसे विधि आयोग को भेजा। विधि आयोग ने अपनी रिपोर्ट 1958 में प्रस्तुत की किंतु इसी बीच 1956 में भारत सरकार की ओर से नियुक्त प्रत्यक्ष कर प्रशासन सुधार समिति की ओर से 1956 में रिपोर्ट प्रस्तुत कर दी गई। आखिरकार विधि मंत्रालय के परामर्श पर आयकर अधिनियम 1961 पारित कर दिया गया जो 1 अप्रैल, 1962 से प्रभावी है। आयकर अधिनियम जम्मू-कश्मीर सहित संपूर्ण भारतवर्ष में लागू है। 1919 से चेम्सफोर्ड के सुधारों उपरांत राज्यों और केंद्र सरकार के आय स्रोत बंटकर अलग अलग हो गए तब से आयकर केंद्र सरकार की आय का सीधा स्रोत है। स्वतंत्रता उपरांत प्रोफैसर निकोलस कोलदर के सुझावों पर धनकर अधिनियम, 1957 एवं उपहार कर अधिनियम, 1958 अस्तित्व में आ गए। केंद्रीय राजस्व बोर्ड अधिनियम, 1963 ने प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष करों के प्रशासन के लिए सीबीडीटी एवं सीबीईसी के रुप में दो बोर्ड अस्तित्व में ला दिए। कर देना देश के सभी नागरिकों का दायित्व है क्योंकि सरकार के पास अगर राजस्व नहीं होगा तो शासन व्यवस्था चलेगी कैसे। किंतु कर व्यवस्था में बहुत सी खामियां हैं जिससे एक ओर तो वेतनभोगी वर्ग और उससे भी अधिक सार्वजनिक क्षेत्र का वेतनभोगी वर्ग अधिक प्रभावित है। व्यवसायी वर्ग की समस्याएं अन्य प्रकार की हैं। इसके लागू होने के अवसर पर तब आयकर अगर किसी कार्यालय प्रमुख से वसूला जाता होगा तो आज स्थिति यह है कि कार्यालय के चपरासी, चौकीदार और ड्राइवर भी कर देते हैं चाहे उनके बच्चे भूखे ही क्यों न मर रहे हों। अब सरकार की नजर में उबेर और ओला जैसी टैक्सिओं के ड्राइवर भी हैं जिनका घर तो चलता नहीं मगर उनकी आय अमीरों की श्रेणी में आती है। इस संबंध मैं किसी एक समय के अपने बहुत ही ईमानदार कमिश्नर की उदाहरण अवश्य देना चाहुंगा। उन्हें उस समय के अनुसार बहुत भारी कर लग रहा था। हम सभी तो नए थे कर लगता नहीं था। कार्यालय के अनेक कर्मचारी बुद्धीजीवी बनकर उनके पास पहुंचे और सुझाव दिया कि अनेक बचत योजनाएं हैं जिनसे आप कर बचा सकते हैं(जैसे उनको इन योजनाओं प्रति ज्ञान ही नहीं हो)। उन्होंने तुरंत जवाब दिया कि अगर मैं कर नहीं दूँगा तो यह रेलगाड़ियां कैसे चलेंगी, सड़कें कैसे बनेंगी तथा जनता तक बिजली पानी जैसी सुविधाएं कैसे पहुंचेगीं। उन्होंने तुरंत अपने जीपीएफ से अग्रिम निकाला और आयकर भर दिया। सभी उन्हें मूर्ख की संज्ञा देते हुए बैठ गए किंतु जब मैं आयकर अदायगी समय अपने जीपीएफ से अग्रिम निकालता हुँ तो मूर्खता वाला किस्सा याद अवश्य आता है। देश में तो हालत यह है कि कुछ राज्यों में वेतनभोगी व्यवसाय कर के नाम पर दोहरी कर व्यवस्था में आ जाते हैं तथा कुछ अशांत क्षेत्रों में तिहरी कर व्यवस्था का शिकार हो जाते हैं। कुछ मामलों में वर्तमान कर व्यवस्था के जन्मदाताओं की अपने देशों में सरकारें चली गईं। माँ देश इंग्लैंड और बहन देश अमेरीका में करों के झगड़ें में 13 वर्षों तक ग्रृहयुद्ध चला नतीजा अमेरीका इंग्लैंड की कॉलोनी नहीं रही। अंगेजों के समय में सरकार की आमदन का मुख्य स्रोत आयकर और भू-राजस्व ही था। उत्पाद शुल्क, सीमाशुल्क और बिक्रीकर तो 1931 तक मूलत: नमक और तंबाकू तक ही सीमित रहते ऊँठ के मूँह में जीरा मात्र थे। इसके बाद इस्पात, सीमेंट तथा कुछ अन्य वस्तुएं इनके दायरे में आईं। सीमित कर वसूली से स्थापित यातायात व्यवस्था देना कोई छोटी बात नहीं है। भारत सरकार के सेवानिवृत्त कर्मचारिय़ों को मिलने वाली पेंशन की दर भी अधिक थी। किंतु वर्तमान परिप्रेक्ष्य में करों का दायरा बहुत ही व्यापक है। विश्व के दूसरे देश जिनके साथ भारत की तुलना की जाती है के मुकाबले आयकर बहुत ही अधिक है। 1975 में जब मैं ग्यारवीं कक्षा का विद्यार्थी था तो तब के मेरे अर्थशास्त्र के अध्यापक की एक उदाहरण आज भी मेरे दिमाग में ताजा है। उनका कहना था कि अगर कोई दिन-रात मेहनत करके एक लाख रुपए कमाता है तो चाहे सरकार हो या कोई और उससे आकर यह कहे कि इसमें से 70 हजार मुझे दे दो तो उस व्यक्ति की पहली प्रतिक्रिया यह होगी कि वह 70 हजार माँगने वाले के थप्पड़ रसीद कर देगा। एक समय यह भी था नगर में प्रवेश करने वाली वस्तुओं पर चुंगीकर लगता था। मगर जब वो वस्तू आपकी हो गई फिर कोई कर नहीं। अब बाईक से लेकर बस-ट्रक सभी को टोल नाकों से गुजरते समय सुबह-शाम या यह कहें कि किसी भी समय पथकर लग सकता है। पथकर आने से पूर्व गाड़ियों पर केवल रोड़ कर लगता था। व्यापक उत्पाद शुल्क, बिक्रीकर, सीमाशुल्क, आयकर, सेवाकर, व्यवसायकर, मनोरंजन कर और आने वाले समय में जीएसटी के नाम से न मालूम भारतीय नागरिकों को कितने कर देने पड़ रहे हैं। मगर हालत देखिए कि 2004 व उसके बाद भर्ती कर्मचारिओं को पेंशन तक देने के लिए सरकारों के पास संसाधन नहीं है। ऐसे कर जिनको आमतौर पर युद्धों की क्षतिपूर्ति के नाम पर लगाया जाता रहा मगर वर्तमान कल्याणकारी सरकारों के दौर में जनता से वसूले करों के दम पर प्रशासकों के पास अपनी ऐशोआराम के लिए तो संसाधन हैं मगर न तो जनता को मूलभूत सुविधाएं ढंग से उपलब्ध तथा न ही करदाताओं को कोई अलग से पहचान दी जा रही है। क्योंकि प्रत्यक्षकर आयकर श्रेणी में अधिकतर संख्या वेतनभोगी वर्ग की है(10 लाख से ऊपर आय दर्शाने वालों का आँकड़ा 35 लाख से ऊपर नहीं है और देश में एक लाख से अधिक प्रति माह वेतन पाने वाले कितने कर्मचारी हैं) इसलिए ग्रुप ग कर्मचारियों को आयकर दाताओं की सूची में रखना उनके पारिवारिक सदस्यों से अन्याय है। ग्रुप बी और ए की भी श्रेणिया बनाकर व्यवसाय कर की तर्ज पर एकमुश्त कर वसूला जाए। इसी तरह व्यवसायी वर्ग को भी चोर न समझा जाए। जो कर देता है वो बतौर आम आदमी मूलभूत सुविधाओं का हकदार है। अनेक व्यवसायी ऐसे भी मिलेंगी जो अपने जीवनकाल में सरकार को भारी भरकम कर दे चुके होते हैं। मगर उनके बुरे वक्त में सरकारी एजेंसियां उनकी मदद करने की बजाए उनके बचे खुचे संसाधन भी कुर्क कर लेती हैं और उन्हें व उनके परिवार को भगवान भरोसे मरने के लिए छोड़ दिया जाता है। स्थापित अभिनेता-अभिनेत्रियां चाहे वे अमिताभ वच्चन-जया भादुड़ी हों या राजकिरण उदाहरण सामने है। जब उनके पास एक फूटी कौड़ी तक नहीं थी तो स्वयं उन्होंने अपनी मेहनत से अपने आप को संभाला। सरकार सामने नहीं आई। अब जब उनके दिन अच्छे हैं तो मदद माँगने वाले कतार में हैं। इसलिए अनुरोध है कि सरकारें करों को भारतीयों पर दंड स्वरुप न लादते हुए सरलता से वसूलें और समय आने पर हकदारों को वाँछित सुविधाएं भी दें।

विजय कुमार शर्मा की अन्य किताबें

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भारतीय माटी भारतीय जल

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पाकिस्तानी हैं भारतीय गुजरा कलमाटी थी भारतीय और भारतीय थे फलएक समान थे भारतीय हवा, जल और स्थल सूझवान बनाओ भगवान उनको सूझवान बनाओवो भी थे कभी भारतीय घर-बाहर और भारतीय घाटवर्तमान में जो कहलाते हैं पाकिस्तानी खाट, बाट, हाट सूझवान बनाओ भगवान उनको सूझवान बनाओवो भी थे कभी भारतीय तन, मन और धनथे वो भी कभी भ

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एक किस्सा रेडियो का

31 अक्टूबर 2015
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जब भी कोई नई चीज बाजार में आती है तो सभी का मन ललचाता है कि वह उसे मिल जाए। रेडियो भी जब बाजार में आया तो नए-नए कार्यक्रम सुनकर लोग उसे अपने घर लेकर आना चाहते थे। एक व्यकित ने एक डिब्बेनुमा वस्तु से गाने बजते देखे, पैसे जेब में थे ही और झट से उसे खरीद लिया। जगह-जगह उसे अपने साथ लेकर जा रहा था। जब खे

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निर्धन की तरूणी

29 अप्रैल 2016
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हुसन को अवगत करादोकि ढूँढे कोई और द्वार मैं निर्धन की तरूणीहूँ मुझे अवकाश नहीं हैबालपन से कठिनाइयों केअंचल में पली-बढ़ी मैं  राशन कार्ड, मध्याह्नभोजन या बने योजना खाद्य सुरक्षा की राशन डीपू, पानी केनल, कुएं की पक्की सखी हूँ मैंचूलहे चौक

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15 अगस्त को प्रधानमंत्री का भाषण बनाम बलोचिस्तान का विषय

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लाल किले की प्राचीर से 15 अगस्त, 2016 को दिए गए भारतीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के भाषण में बलोचिस्तान के आंदोलकारियों को दिए जाने वाले समर्थन का मामला उठते ही तमाम भारतीय एवं विदेशी गलियारों में एकदम से हलचल बढ़ गई है। सरकार समर्थक भारतीय मीडिया तो जैसे इस अवसर की

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नोटबंदी स्वतंत्र भारत की सबसे बड़ी मानवीय सनसनी

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भारत 1947 मेंअंग्रेजों के चंगुल से स्वतंत्र हुआ था। स्वतंत्रता प्राप्ति के उपरांत लंबे समयतक भारतीयों ने विभाजन का दर्द झेला। कुछ संभले तो 1962 का भारत-चीन युद्ध, 1965में भारत-पाक युद्ध और दक्षिण भारतीयों का हिंदी विरोधी आंदोलन। प्रधा

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गरीब कल्याण स्टंट

4 दिसम्बर 2016
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जब से सृष्टी सृजित हुई है तबसे ही ताकतवरऔर कमजोर के बीच में अंतर रहा है। भारतीय समाज में भी यह अंतर होना स्वाभाविक है।राजा महाराजाओं के दौर से ही भारतीय समाज बंटने लगा था तथा विदेशिओं ने भारतीयगरीबों की समस्याओं का समाधान करने के लिए सोने की चिड़िया कहे जाने वाले भारत

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शैतान विद्वान

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एक समय की बात है कि एक राज्य को भयंकर मूसीबतों ने घेर लिया। पुरानेजमाने के राजाओं के लिए अपनी प्रजा का दुख देखा नहीं जाता था। इसलिए वह राजा जी जानसे अपने राज्य की समस्याओं हो हल करने में जुट गया। राजा भेस बदलकर रात को निकलताऔर दिन में अपने दरबारियों के साथ विचार विमर्श में व्यस्त रहता। साथ ही साथ वह

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एटीएम

20 दिसम्बर 2016
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एटीएम मेरा नाम एटीएम मेरा नामहिंदु-मुस्लिम-सिख-ईसाई की बदहाली से परेशानएटीएम मेरा नाम एटीएम मेरा नामहिंदु-मुस्लिम-सिख-ईसाई की बदहाली से परेशानसोचो लोगो जरा तो सोचो बनी कहानी यह कैसेमेरी नींद और चैन छीना गए कहां आपके पैसे ?नोटबंदी सरकार का

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मत पूछो हालत फकीर की

24 दिसम्बर 2016
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माँ नहीं बन पाने वाली जंग नहीं लड़ पाने वाली चाय नहीं बेच पाने वाली हीरों का झुंड लगाने वाली सैनिक नहीं बन पाने वाली पीर पैगंबर बन बैठने वाली स्वयं पर अश्क करने वाली बीवी पर पहरा बिठाने वाली किसान नहीं बन पाने वाली व्यापार ी नहीं बन पाने

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जागो प्रजा जागो

30 दिसम्बर 2016
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महान चिंतक अरस्तू ने एक समय 6 प्रकार के राज्यों का वर्गीकरण किया था। उनका विश्वास था कि यह साइकिल;चक्करद्ध क्रम में परिक्रमी रहता है। यह साइकिल राजतंत्र से आरंभ होता है और जल्द ही पथभ्रष्ट होकर नादिरशाही में परिवर्तित हो जाता हैए चंद बुद्धि

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इसे कहते हैं रामराज जी

8 जनवरी 2017
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नोटबंदी गई है छा जी करंसी की लगी बाट जी 8 नवंबर गई है आ जी अफवाहों का गर्म बाजार जी टोलनाके बने गले की फांस जी बैंक एटीएम की बढ़ी कतार जी प्रजा को मिला नया रोजगार जी चाय पराठों में मिलती पगार जी रोटी.दाल.चावल.साँबर की जगह टमाटर.रोटी बनी सर्वोत्तम खुराक जी इसे कहते हैं राम

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ब्रह्मा बेदर्दे

18 जनवरी 2017
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ब्रह्मा बेदर्दे

18 जनवरी 2017
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मंथरा-कैकेयी की जुगलबंदी ने रामायण दी रचवा ब्रह्मा बेदर्दे ब्रह्मास्त्र दिए चलवा ब्रह्मा बेदर्दे शकुणी-दुर्योध्न के षड़यंत्रों ने महाभारत दी लिखवा ब्रह्मा बेदर्दे कर्ण-भीष्म का प्रताप दिया घटवा ब्रह्मा बेदर्दे ईसा-हजरत का बलिदान भाईचारा न सका ला ब्रह्मा बेदर्दे दुनिया को

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मेक अमेरीका ग्रेट अगेन योजना का भारत पर प्रभाव

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आखिरकार 20 जनवरी, 2017 को डोनॉल्ड ट्रंप ने अमेरीका के 45वें राष्ट्रपति के रुप में पदभार संभाल लिया। ट्रंप अमेरीका के एक बिलियनर एवं विवादस्पद व्यापार ी हैं तथा अपने बेबाक व्यवहार के कारण अनेक विवादों से जुड़ चुके हैं। राट्रपति चुनाव में कू

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अंग्रेजी की हिंदी को सीख

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मैं विदेशी तू नाज-ए-हिंद है भूल मत तू हिंदमाता की बिंदी हैपुष्पक पहला तेरे वतन में ही आया थाआँखों देखा हाल देववाणी ने बयाँ कराया थाधरती पुत्रों तेरों ने ही भूखों का हलनिकाला था पूर्वज मेरों ने पूर्वज तेरों से बहुत कुछचुराया थाअस्त्र-शस्त्र-ब्रह्मास्त्र का डंका तोतेरे

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कोष मूलो दंड

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बसंत पंचमी का त्यौहार

31 जनवरी 2017
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भारत ऋतुओं का देश है।यहां अपनी-अपनी बारी से 6 ऋतुएं आती हैं । इन सभी में से बसंत ऋतु सबसे हरमनप्यारी है । बसंत पंचमी मूल रुप से प्रकृति का उत्सव है । इस दिन से धार्मिक,प्राकृतिक और सामाजिक जीवन के कार्यों में बदलाव आना आरंभ हो जाता है । बसंत पंचमीप्रकृति के साथ आध्यात

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जैसी चाह वैसी राह

5 फरवरी 2017
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बढ़ते हैं कर बढ़ाने वाला चाहिएबनते हैं मित्र बनाने वाले चाहिएहोती है खोज करने वाला चाहिएबिकती है दारू पीने वाला चाहिएढहती हैं दीवारें ढहाने वाला चाहिएहोती है दुश्मनी करने वाला चाहिएहोती है नोटबंदी करने वाला चाहिएरोती है दुनिया रुलाने वाला चाहिएमिलते हैं गुलामबनाने वाल

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वर्तमान स्वरोजगार योजना एक व्यंग्य

22 अप्रैल 2017
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एक व्यक्ति ने मुर्गे पाल रखे थे जो बहुत हट्टे कट्टे थे । उन्हें एक सज्जन मिलने आए और पूछा कि तुम्हारे मुर्गे बहुत तंदरुस्त हैं इन्हें क्या खिलाते हो । वह बोला मैं इन्हें काजू बादाम और महंगे ड्राई फ्रूट खिलाता हूँ । अच्छा ! लोगों को खाने को नहीं मिल रहा और तू अपने मुर्गों को ड्राई फ्रूट खिला रहा है

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आप विधायक सौरभ भारद्वाज का ईवीएम पर खुलासा महज एक बकवास

10 मई 2017
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दिनांक 9.5.2017 को आम आदमी पार्टी ने ईवीएस कीहैकिंग प्रक्रिया दिखाने के लिए दिल्ली विधानसभा का विशेष सत्र बुलाया था। जबहैकिंग प्रक्रिया टीवी पर लाइव आरंभ हो गई तो मुझे भी उत्सुकता हुई और मैने यहपूरी प्रक्रिया एक टीवी चैनल पर देखी। इस सत्र में विपक्ष के नेता को मार्शल कीसहायता से सदन से बाहर निकलवाकर

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भारतीय प्रजातांत्रिक केंद्रवाद बनाम राष्ट्रपति पद्धति सरकार

13 मई 2017
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1917 की रुसी बोलशैविक क्रांति की सफलता केउपरांत प्रजातांत्रिक केंद्रवाद की कम्युनिस्ट विचारधारा समाज के सामने आई। रशियन सोशल-डेमोक्रेटिक लेबर पार्टीकी दिनाँक 26 जुलाई से 03 अगस्त 2017 तक आयोजित छठी कांग्रेस में प्रजातांत्रिककेंद्रवाद की व्याख्या करते हुए कहा गया है कि पार्टी की नीचे से ऊपर तक निर्दे

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जूते की आत्मकथा

20 मई 2017
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एक आम कहावत है कि उसने उसको जूते-चप्पलों सेपीटा। मगर एक समय ऐसा भी था जब आठवीं कक्षा के मेरे अध्यापक ने चाय पीते-पीते ही पूरीकक्षा को जूते की आत्मकथा लिखनी सिखाई। अध्यापक महोदय ने आरंभ करते हुए कक्षा कोबताया कि जूते की आत्म लिखना बहुत आसान है। लिखो गाँव में राम लाल की भैंस मर गई।उस मरी हुई भैंस को च

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भगवान जगन्नाथ रथयात्रा पुरी पर विशेष

25 जून 2017
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ओड़िशा के पुरी में समुद्रतट पर स्थित जगन्नाथ मंदिर एक हिंदु मंदिर है जो श्रीकृष्ण(जगन्नाथ)कोसमर्पित है । जगन्नाथ का अर्थजगत के स्वामी से होता है । इस मंदिर को हिंदुओंके चार धामों में से एक माना जाता है । यह मंदिर वैष्णव परंपराओं और संत रामानंद से जुड़ा हुआ है । भगवान जगन्नाथ पुरी में 56प्रकार के अन्

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चायवाद

9 जुलाई 2017
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नरसंहार को नाजीवाद कहते हैंराष्ट्रभक्ति को राष्ट्रवाद कहते हैंकट्टरवाद को फासीवाद कहते हैंमाओ समर्थन को माओवाद कहते हैंसमाज सुधार को समाजवाद कहते हैंमार्क्स समर्थन को साम्यवाद कहते हैंसर्ववाद विरोध को आतंकवाद कहते हैंक्षेत्र विस्तार को साम्राज्यवाद कहते हैंऔर जनता की गाढ़ी कमाई विदेशों में लुटाने को

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सत्ता संघर्ष और अनुवादकों की भूमिका

5 अगस्त 2017
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अंग्रेजी की एक टर्म लिटल नॉलेजइज डेंजरस का हिंदी पर्याय बना है नीम हकीम खतराए जान जिसका अर्थ है कम ज्ञानस्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। एक सामान्य जन से जब नीम हकीम खतराएजान का अर्थपूछा गया तो उसका उत्तर था- ऐ हकीम तू नीम के पेड़ के नीचे मत जा वहां तेरी जान का खतरा है। शोले फिल्म काएक मशहूर डॉयलाग है

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सत्ता संघर्ष और अनुवादको का दायित्व

12 अगस्त 2017
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जब भारत सरकार अधिनियम, 1935 अस्तित्व में आया थातो लगने लगा था कि भारत स्वतंत्र होने वाला है और भारत की राष्ट्रभाषा हिंदी होनेवाली है। क्योंकि विदेशिओं को यह भलिभांति मालूम था कि भारत में बहुसंख्य हिंदीभाषिओं की है। स्वतंत्रता सेनानियों का भी आपस में संवाद हिंदी में ही होता था औरहिंदी ने स्वतंत्रता स

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आस्था खुद के अस्तित्व तक

6 सितम्बर 2017
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आस्था से तात्पर्य है कि समग्र रुप से स्थिर या स्थित होना। यह आस्था किसी व्यक्ति विशेष या स्थान विशेष से संबंधित हो सकती है। जैसे कोई देव या देवालय। आ का मतलब समग्र रुप से व स्था का मतलब स्थिर रहने की अवस्था । विदेशों में भी पूर्व में आस्था व अंधविश्वास था। जर्मनी व फ्रांस

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भारत का भाषा विवाद (14 सितंबर हिंदी दिवस पर विशेष)

14 सितम्बर 2017
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किसी भी राष्ट्र की एकता के लिए किसी एक सर्वमान्य भाषा का होना जरुरी है और भारत में यह भाषा हिंदी ही हो सकती है। इंडोनेशिया के राष्ट्रपति रह चुके सुकर्णो ने अपनी आत्मकथा में भारत को हिंदी को अपनी राजभाषा अपनाने में आनाकानी पर व्यंग कसा था।

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जनता मांगे भ्रष्टाचारी डॉ मनमोहन सरकार ?

26 अक्टूबर 2017
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नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में चल रही वर्तमान सरकार का अस्तित्व में आने का एक ही कारण था कि देश में ईमानदार प्रधानमंत्री के नेतृत्व में एक गठबंधन सरकार चल रही थी। मेरे जीवन का एक अनुभव है कि ईमानदार शख्सियत या तो अपना स्वयं का नुकसान कर सकती है या अपने जैसे ही किसी ईमानदार क

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झगड़ें नहीं राष्ट्रगान और राष्ट्रगीत याद करें

5 नवम्बर 2017
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जन गणमन अधिनायक जय हे वंदे मातरम्भारतभाग्यविधाता सुजलांसुफलां मलयजशीतलाम्पंजाबसिन्धु गुजरात मराठा सस्यश्मामलां मातरम्द्राविड़उत्कल बंगा शुभ्रज्योत्सनाम् पुलकित यामिनम् विन्ध्यहिमाचल

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सरकारी झटकों से बीमार भारतीयों के लिए आ रहा राष्ट्रीय व्यंजन खिचड़ी

5 नवम्बर 2017
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सरकारी झटकों से बीमार भारतीयों के लिए आ रहाराष्ट्रीय व्यंजन खिचड़ीWorried because of Government shakesNational food Khichri is coming For Ill Indians

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साम्यवादी मार्क्स बनाम दक्षिणपंथी मोदी का ७ नवंबर

15 नवम्बर 2017
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कार्ल मार्क्स ने 1848 के अपने कम्युनिस्ट घोषणापत्र में कहा था कि साम्यवादी क्रांति का लक्ष्य उत्पादन के साधनों पर विश्व के मजदूरों का आधिपत्य स्थापित करके पूंजीवाद की कब्र खोदना है। एक नई समतामूलक संस्कृति को जन्म देना, समाज को वर्गविहीन बन

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विश्वास बनाम अफवाह

18 नवम्बर 2017
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महानायक अमिताभ बच्चन की एक पिक्चर आई थी देश प्रेमी। अमिताभ जी को एक ऐसी कॉलोनी में रहना पड़ता है जिसमें अलग-अलग धर्मों के लोग रहते हैं तथा छोटी-छोटी बातों का बतंगड़ बनाकर आपस में लड़ते रहते हैं। मगर यह उस देश प्रेमी का ही विश्वास होता है कि

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पूर्वज वही जो लाभ दिलाए

23 नवम्बर 2017
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अगर कहीं रेलगाड़ी से दिल्ली स्टेशन को लिंक करते नगरों की यात्रा पर निकलें तो मैरिज ब्यूरो का एक विज्ञापन दिवारों पर लिखा मिलेगा – दुल्हन वही जो दादा जी दिलाएं । दशकों पूर्व सदी के महानायक अमिताभ बच्चन की अर्दांगनी जया भादुड़ी स्टारर एक फिल्म आई थी जिसका शीर्षक था द

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समाज की उत्पति से लेकर आजतक विश्व एक हीथ्यूरी पर चल रहा है कि समाज में वर्चस्व किस का होगा। जंगलराज को नकेल डालकर कुछव्यवस्थाएं स्थापित हो गईं लेकिन जिनके साथ अन्याय होता था उन्होंने प्रतिरोध जारीरखा। वर्तमान युग में विश्व की ओर से फेस की जा रही समस्याओं का मुख्य कारण पश्चिमजगत और उनका अंधानुकर

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ब्रह्म ज्ञान

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लिखा ओंकार ने कभीबैठकर इक दिन सच में मानव तूँ इक दिन हैरान होगारुकेंगी बसें विमान ट्राम और रेलें बंद पलों मेंसारा सामान होगालिखा ओंकार ने कभी बैठकर इक दिन सच में मानव तूँइक दिन हैरान होगापक्षी चहकेंगे सुखी साँस होगा प्रदूषण रहित तबसारा संसार होगापाताल धरती पानी आकाश पर काबज कैद घर में इक दिनइंसान हो

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पानी की आत्मा

30 जुलाई 2020
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कोई कहे हिंदु पानीकोई कहे मुस्लिम पानी समझाने को आत्मा पानी की अनेकों ने दी कुर्बानी फिर भी न माने क्योंकि कमान ईसाईयत को थीजो थमानी ईसाईयत ने करोड़ों लीले आत्मा की हुई बदनामी स्वतंत्र है देश फिर भी कोई कहे हिंदु पानी ‘कोई’ मुस्लिम पानी क्योंकि

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अस्थायी आशियाना

1 अगस्त 2020
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सजनरे झूठ मत बोलो-खुदा के पास जाना है। हाथी है न घोड़ा है वहां पैदल ही जाना है।तुम्हारे महल चौबारे-यहीं रह जाएंगे सारे - अकड़ किस बात की प्यारे - अकड़ किस बातकी प्यारे। एकसमय की बात है कि एक सन्यासी राजा के महल के सामने आए और आते ही राजा के महल मेंघुसने का प्रयास करने लगे। राजा के सैनिकों ने उन्हें

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जन्मदिवस पर पत्नी को शुभकामनाएं

20 जून 2023
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 किसी खूबसूरत एहसास की भांति  तुम परिवार और मेरे जीवन के लिए हो बहुत जरुरी,  जैसे जिस्म के लिए सांसों की डोरी,  हम जीवन के प्रत्येक रंग को जी लेंगे,  तेरा साथ रहेगा तो समाज की प्रत्येक तपन सह

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