(आस पास कई लोग ऐसे भी मिल जाते हैं - )
न तुम तब
तब के थे
न तुम आज
आज के हो
तुम वह राजा भी नहीं हो
जिसके सिर पर सिंग था
तुम तो बिना सिंग के
सिंग होने की बात करते हो
और सोचते हो -
कोई तुम्हारे सिंग की चर्चा कर रहा है ...
:)
दरअसल तुम एक पागल हो
जो कभी कपड़े में होता है
तो कभी नंगा ...
ऐसे में तुम किसी दिन नंगे से परहेज रखते हो
किसी दिन कपड़े पहने लोगों से ...
:)
तुम्हारी मानसिकता दयनीय तो बिल्कुल नहीं
खतरनाक से भी अधिक हास्यास्पद है
क्योंकि तुम कभी धूनी रमाते हो
कभी नशे में धुत्त रोते हो
कभी ईंट पत्थर के साथ सम्राट हो जाते हो !
:)
बचपन और पौधा एक सा होता है
समय समय पर काटछांट ना हो
तो गुलाब गुलाब होकर भी अपनी छवि खो देता है
और इन्सान अपनी ज़ुबान !
तुमने भी ज़ुबान खो दी है
कहाँ कब किससे क्या कहना चाहिए
तुमने सीखा नहीं
पर अपने आगे सबको झुकाना चाहते हो !
तुम दया के पात्र बिल्कुल नहीं
तुम वह पात्र हो
जिसमें अमृत भी अपनी पहचान खोने लगता है
इस लिहाज से
तुमसे डर लगता है !
अपनी पहचान खोना
किसी को गवारा नहीं होता
और बेवजह एक पागल की सनक में