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वैलेंटाइन डे युवाओं का एक दिवालियापन

13 फरवरी 2017

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लेख क:- पंकज प्रखर

प्रेम शब्दों का मोहताज़ नही होता प्रेमी की एक नज़र उसकी एक मुस्कुराहट सब बयां कर देती है, प्रेमी के हृदय को तृप्त करने वाला प्रेम ईश्वर का ही रूप है| एक शेर मुझे याद आता है की....

“बात आँखों की सुनो दिल में उतर जाती है ,

जुबां का क्या है ये कभी भी मुकर जाती है|

इस शेर के बाद आज के लेख की शुरुआत एक कहानी से करता हूँ कहते है किसी देश में कोई राजा हुआ जिसने अपनी सेना को सशक्त और मजबूत बनाने के लिए अपने सैनिकों के विवाह करने पर रोक लगा दी थी जिसके कारन समाज में व्यभिचार फैलने लगा सैनिक अपनी शारीरिक आवश्यकताओं को अनैतिक रूप से पूरा करने लगे जिसका समाज पर बुरा प्रभाव पढने लगा ऐसे में उस राज्य में एक व्यक्ति हुआ अब वो संत था या क्या था इसका इतिहास कहीं नही मिला लेकिन हाँ उसने उस समय प्रताड़ित किये गये इन सैनिकों की सहायता की और समाज को नैतिक पतन से बचाने के लिए सैनिकों को चोरी छिपे विवाह करने के लिए उत्साहित किया. उसका परिणाम ये हुआ की राजा नाराज़ हो गया और उसने उस व्यक्ति की हत्या करवा दी तब से ही पश्चिम के लोग उस मृतात्मा को याद करने के लिए इस दिवस को वलेंतिन डे के रूप में मनाते है . जिसका हमारी तरफ से कोई विरोध नही है लेकिन इस दिवस के नाम पर बाज़ारों में पैसे की जो लूट होती है या कहें भारतीय संस्कारों का पतन होता है, अश्लीलता और फूहड़ता के जो दृश्य उत्पन्न होते है उनसे हमारा विरोध है | अब सोचने वाली बात ये है की भारतीय संस्कृति में ये प्रदुषण आया कैसे हम भारतीय इतने मुर्ख कैसे हो गये की किसी और देश में घटने वाली घटना से सम्बंधित तथाकथित पर्व हमने अपनी संस्कृति में घुस आने दिया | एक ऐसा देश जो राधा और कृष्ण के निर्विकार निश्चल प्रेम का साक्षी रहा हो जिसने समूची सृष्टि को प्रेम के वास्तविक रूप से अवगत कराया हो वहां के युवाओं द्वारा ये वैलेंटाइन डे मनाकर के अपनी संस्कृति का ह्रास करना ,फूहड़ता और अश्लीलता का प्रदर्शन करना कहां तक जायज़ है. हमारी संस्कृति में पहले से ही बसंत पंचमी, होली जैसे सार्थक, उद्देश्यपरक त्यौहार है. जिनमे पूरा समाज मिलजुल कर खुशियाँ मनाता है.जब इस प्रकार के सामूहिक उल्लास के पर्व है तो हमारे युवाओं को उधार के उद्देश्यहीन और अश्लीलता से भरे ये पर्व है न जाने क्यों आकर्षित करते है. लार्ड मैकाले की बड़ी इच्छा थी की वो शरीर से भारतीय और मानसिकता से अंग्रेजी सोच वाले लोगों को तैयार करे उसके इस स्वप्न को आज हमारे युवा साकार करते नजर आते है | सात दिवस पहले से ही बाहों में बाहें डाले फूहड़, बेतुके कपड़े पहने आपको ऐसे बरसाती मेंडक सडकों पर घुमते हुए आसनी से मिल सकते है. जो इन सात दिनों तक एक दूसरे के लिए पागल रहते है और सच मानिए ऐसे दिखावा करने वालो का प्रेम अगले सात दिनों तक भी नही चलता .क्यों ? क्योंकी ये प्रेम के सच्चे स्वरूप को नही जानते एक दूसरे से लिपटना चिपटना प्रेम नही है ये तो केवल हवस और सेक्स है जिसे हमारे युवा प्रेम समझ बैठते है और एक दुसरे के प्रति आकर्षण खत्म हो जाने के बाद ये प्रेम भी तिरोहित हो जाता है बचता है तो तनाव और मानसिक अशांति | प्रेम ईश्वर के होने का एहसास है प्रेम वो भावना है जो हमारे अंदर ईश्वर की उपस्थिति दर्शाती है प्रेम एक ऐसा माध्यम है जिसके द्वारा हम किसी भी व्यक्ति को अपना बना सकते है सच्चे और निर्विकार प्रेम के आगे तो स्वयं भगवान् भी हाथ बांधे अपने प्रेमी के सामने खडे नज़र आते है. आज जिस प्रकार के प्रेम की बात की जाती है और वो अनेको विकृतियों से भरा हुआ है. निश्चित रूप से वो प्रेम की परिभाषा भारत की तो नही हो सकती हम भारतीय इस उधार की संस्कृति को अपनाकर अपने देश की छवि को धूमिल करने में लगे है | भारतीय प्रेम किसी एक दिवस का मोहताज़ नही है भारयीय संस्कृति में हर दिवस ही प्रेम दिवस है . हम आज भी मानसिक रूप से अंग्रेजों के गुलाम है. अफ़सोस की आज़ादी के पहले इतने काले अँगरेज़ नहीं थे जितने आज़ादी के बाद बन गए हैं | क्या आप अपने आपको वै ज्ञान िक बुद्धि का कहते हो क्या कभी जानने की कोशिश की के जो कर रहे हैं इसके पीछे का सच क्या है वास्तव में सच ये है की इस प्रकार से भारतीय युवाओं को वैलेंटाइन डे जैसे दिनों के प्रति आकर्षित करके भारत के रूपये पैसे को खीचना है इन साथ दिनों में करोड़ो रूपये विदेशी तिजोरियों में चले जाते है अब एक प्रश्न है भारतीय युवाओं से क्या वो जिस व्यक्ति को प्रेम करते है वो इतना लालची है की इन दिनों जब तक आप उसे कोई उपहार नही देंगे तब तक वो आपके प्रेम को स्वीकार नही करेगा | क्या इन दिनों में विशेष कोई गृह दशा होती है की इन दिनों ही अपने साथी को चोकलेट खिलाओ, फूल दो, गुड्डा गुडिया दो, तो उसके प्रभाव स्वरुप वो आपके प्रेम को स्वीकार कर लेगा | निश्चित रूप से आप कहेंगे ऐसा नही है फिर ये निराधार वेलेंटाइन डे का दिवालियापन क्यों ? एक और पक्ष भी है मेरे पास कई तथाकथित बुद्धिजीवी भी इस की प्रशंशा के गीत गाते नज़र आते है उनका कहना ये होता है की इस दिवस को आप इतना गलत तरीके से क्यों लेते हो इस दिवस को आप अपने परिवार अपने माता पिता ,बहन.भाई के साथ मना सकते है तो भाई में ये पूछना चाहता हूँ की जिस घटना का और घटना से सम्बन्धित इतिहास का भारत से कोई लेना देना ही नही है उसे यहाँ मनाने की आवश्यकता ही क्या है इस सप्ताह में एक दिवस आता किस डे (kiss Day) अब मनाओ अपनी माता- बहनों के साथ कैसे सम्भव है ये अश्लीलता ? भारत के एक महान संत ने इस संस्कृति की रक्षा हेतु इस दिवस को मातृ-पितृ पूजन दिवस के रूप में घोषित किया है जिसके पीछे उद्देश्य आज विघटित होते परिवार और हमारी संस्कृति को जो हानि हो रही है उसकी भरपाई करना है उन्होंने इस सप्ताह को मातृ-पितृ पूजन सप्ताह बनाया है .उन्होंने इस सप्ताह के प्रत्येक दिवस को एक अलग रंग देने के लिए अलग–अलग नाम दिए है . प्रथम दिवस धारणा दिवस जिसका उद्देश्य है की व्यक्ति अपने अंदर श्रेष्ठ धारणायें उत्पन ही न करे बल्कि धारणाओं में दृडता भी लायें. द्वितीय दिवस भावना दिवस मनुष्य का जीवन उसके अंदर उत्पन्न होने वाली भावनाओं पर आधारित होता हो जो जैसा सोचता है वैसा बनता चला जाता है तो इस दिवस पर अपनी भावनाओं,विचारों को ठीक करने का संकल्प लें. तीसरा दिवस है सेवा दिवस ये दिवस प्रेरित करता है की हम परोपकारी बने जैसे भी हो सके मन से वचन से कर्म से या धन से लोगों की सेवा करने का संकल्प लें . चौथा दिवस है संस्कार दिवस अर्थात हम संस्कारों को धारण करें कौन से संस्कार ,वो संस्कार जो हमारे व्यक्तित्व का विकास करें हमे हमारे धर्म और परिवार का नाम रोशन करने में मदद करे. इसकी नैतिक जिम्मेदारी माता-पिता की है क्योंकि आज बच्चों में यदि संस्कारों का अभाव है तो उसके लिए माता-पिता भी दोषी है तो ये दिवस हमे बताता है की बच्चों के लिए भी समय निकाले और बच्चे भी श्रेष्ठ संस्कारों को धारण करें. पांचवा दिवस संकल्प दिवस इस दिवस पर आप संकल्प ले की आपके अंदर आपको जो भी दुर्गुण दिखाई देते है आप उन पर लगाम लगायेंगे वो दुर्गुण एकदम समाप्त नही भी हो पाए तो कम से कम उनको कम करने का संकल्प तो ले ही सकते है तो इस दिवस बुराइयों को छोडने के लिए ईमानदारी से प्रयास करने का संकल्प ले सकते है. छटा दिवस है सत्कार दिवस इस भागती दौडती दुनिया में हर आदमी पैसे की ओर अंधाधुंध दौड़ता नजर आता है. किसी व्यक्ति को किसी अतिथि के आने की तिथि मालुम पढ जाए तो उसके आने से पहले ही वो किसी और का अतिथि बन जाता है. हमारे देश में अतिथि को देव कहा गया गया है .हमारी परम्परा अतिथि देवो भव: की रही है. लेकिन वर्तमान समय में इस भावना का अभाव नजर आता है. कोई किसी का सत्कार नही करना चाहता हाँ स्वयं के सत्कार के लिए सब लालायित है .लेकिन जब तक आप सत्कार करेंगे नही तब तक आपका सत्कार भी नही हो सकता तो अपने इष्ट मित्रों के साथ समय व्यतीत करें अपने अंदर अतिथि देवो भव: की भावना लाये तो देखिये परिवारों और इष्ट मित्रो के बीच आप अपने आप को कितना निश्चिंन्त और प्रसन्न अनुभव करेंगे जो लोग एकाकीपन का अनुभव करते है ये दिवस उन्हें विशेष रूप से मनाना चाहिए. सातवाँ दिवस है श्रद्धा दिवस अर्थात ये दिवस संदेश देता है की हम वैसे तो रोज ही प्रदर्शित करते है लेकिन आज के दिन विशेष रूप से अपने बड़े बुजुर्गों के प्रति सम्मान और श्रद्धा प्रदर्शित करें. क्योकि हमारे बड़े ही हमारी वो जडें हैं जिन्होंने हमे सींचकर समाज के योग्य बनाया है तो निश्चती रूप से हमे उनके प्रति श्रद्धा प्रकट करनी चाहिए. आठवाँ दिवस मातृ-पितृ पूजन दिवस ये जितने भी दिवस हम मनायेंगे इन सब का आधार है माता-पिता........

माता-पिता है तो श्रेष्ठ धारणा है,भावना है ,सेवा है और संस्कार है

धरती पर माता पिता ईश्वर का प्रतिपल अवतार है,

माता-पिता है तो जीवन में श्रेष्ठ संकल्प है,सत्कार है श्रद्धा और विश्वास है.

माता-पिता की कृपा ही हमारे जीवन का आधार है.

इसलिए इस दिवस माता-पिता की पूजा कर स्वयं को कृतार्थ करें. माता-पिता का सम्मान करें उनके साथ समय व्यतीत करें ये ही इस दिवस का संदेश है | तो चलिए क्यों न आज से हम अपने जीवन में श्रेष्ठ आदर्शों को अपनाते हुए अपनी संस्कृति की रक्षा करने हेतु इस वैलेंटाइन डे को मातृ-पितृ पूजन दिवस के रूप मे आत्मसात करें |

पंकज कुमार शर्मा 'प्रखर' की अन्य किताबें

चेल्सी जैन

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Nice best article ever for the Valentine day

14 फरवरी 2017

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14 फरवरी 2017

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14 फरवरी 2017

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रचनाएँ
पारस... छूते ही सोना कर दे
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पाठकों को समर्पित शब्द गुच्छ...
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लेख क :- पंकज”प्रखर”भावनाओं में घुला हुआ विष और अमृतइस लेख का प्रारम्भ तुलसी बाबा की एक चौपाई से करता हूँ “जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत देखि तिन तेसी” इस चौपाई का सार सीधे शब्दों में ये है की मनुष्य जैसा सोचता है वैसी ही सृष्टि का निर्माण वो अपने आस-पास करने लगता ह

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गांधी - ईश्वरीय चेतना का एक अवतार

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विद्यार्थी जीवन में माता पिता की भूमिका (लेखक :- पंकज "प्रखर " कोटा , राज.)

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धन उपार्जन और आपका विवेकपंकज “प्रखर” पिछले दिनों अमीरी को इज्जत का माध्यम माना जाता रहा है।इज्जत पाना हर मनुष्य की स्वाभाविक इच्छा है। इसलिये प्रचलित मान्यताओं के अनुसारहर मनुष्य अमीरी का इच्छुक रहता है, ताकि उसे दूसरे लोग बड़ाआदमी समझें और इज्जत करें। अमीरी सीधे रास्ते नहीं आ सकती। उसके लिए टेड़े र

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लेख क :- पंकज “प्रखर”कोटा (राज.) प्यारे विद्यार्थियों आपके लिए आज का लेख स्वर्गीय हरिवंश राय बच्चन की निम्न पंक्तियों से शुरू कर रहा हूँ ..“असफलता एक चुनौती है, इसे स्वीकार करो,क्या कमी रह गई, देखो और सुधार करो।जब तक न सफल हो, नींद चैन क

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जब हम किसी पुराने पीपल या बरगद के वृक्ष को देखते है तो हमारा हृदय एक प्रकार की श्रद्धा से भर जाता है पुराने वृक्ष ज्यादातर पूजा पाठ के लिए देव स्वरूप माने जाते है इसी प्रकार हमारे घर के वृद्ध वृक्ष हमारे बुजुर्ग भी देव स्वरुप है | जिनकी शीतल छाँव में हम अपने सब दुखों और समस्याओं को भूल कर शांति का

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आज 12 जनवरी 2017 में हम स्वामी विवेकानंद की 154 वी जन्म जयन्ती मना रहे है| जिसे हम युवा दिवस के रूप में जानते है| आज से 154 वर्ष पूर्व एक बालक का जन्म हुआ जिसका नाम विश्वेश्वर रखा गया जिसे घर में प्यार से नरेंद्र के नाम से बुलाया जाता था | लेकिन ये बालक अपनी अद्भुत

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गौरवशाली राष्ट्र का गौरवशाली गणतांत्रिक इतिहास

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लेखक :- पंकज प्रखर गणतन्त्र दिवस यानी की पूर्ण स्वराज्य दिवस ये केवल एक दिन याद की जाने वाली देश भक्ति नही है बल्कि अपने देश के गौरव ,गरिमा की रक्षा के लिए मर मिटने की उद्दात भावना है | राष्ट्र हित में मर मिटने वाले देश भक्तों से भारत का इतिहास भरा पड़ा है अपने राष्ट्र से प्रेम होना सहज-स्वाभाविक

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आधुनिकता के इस दौर में संस्कृति से समझौता क्यों

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एक महान सती थी “पद्मिनी”

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एक सती जिसने अपने सतीत्व की रक्षा के लिए अपने प्राणों का बलिदान कर दिया उसकी मृत्यु के सैकड़ों वर्ष बाद उसके विषय में अनर्गल बात करना उसकी अस्मिता को तार-तार करना कहां तक उचित है | ये समय वास्तव में संस्कृति के ह्रास का समय है कुछ मुर्ख इतिहास को झूठलाने का प्रयत्न करने में लगे हुए है अब देखिये एक सर

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वाणी की देवी वीणापाणी और उनके श्री विगृह का मूक सन्देश

1 फरवरी 2017
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वसंत को ऋतुराज राज कहा जाता है पश्चिन का भूगोल हमारे देश में तीन ऋतुएं बताता है जबकि भारत के प्राचीन ग्रंथों में छ: ऋतुओं का वर्णन मिलता है उन सभी ऋतुओं में वसंत को ऋतुराज कहा जाता है भगवान श्री कृष्ण ने गीता में कहा है की प्रथ्वी पर जो भी

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राम केवल एक चुनावी मुद्दा नही हमारे आराध्य है

7 फरवरी 2017
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राम केवल चुनावी मुद्दा नही बल्कि हमारे आराध्य होने केसाथ-साथ हमारे गौरव का प्रतीक है | ये देश जो राम के आदर्शों का साक्षी रहा है येअयोध्या जहां राम ने अपने जीवन आदर्शों के लिए न केवल कष्ट सहे बल्कि मनुष्यत्व केश्रेष्ठ गुणों को उसके चरम तक पहुँचाया वो राम आज केवल एक चुनावी मुद्दा है जिसेनेता अपनी–अपन

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वैलेंटाइन डे युवाओं का एक दिवालियापन

13 फरवरी 2017
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लेखक:- पंकज प्रखर प्रेम शब्दों का मोहताज़ नही होता प्रेमी की एक नज़र उसकी एक मुस्कुराहट सब बयां कर देती है, प्रेमी के हृदय को तृप्त करने वाला प्रेम ईश्वर का ही रूप है| एक शेर मुझे याद आता है की.... “बात आँखों की सुनो दिल में उतर जाती है ,जुबां का क्या है ये कभी भी मुकर जाती है| ” इस शेर के बाद आज के

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विद्यार्थी परीक्षाओं से डरें नही बल्कि डटकर मुकाबला करें (लेखक :- पंकज प्रखर)

1 मार्च 2017
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प्रिय विद्यार्थीयों जैसा की आप लोग जानते है की कुछ ही दिनों में बोर्ड की वार्षिक परीक्षाएं शुरू होने जा रही है ऐसे में आप लोगों के परीक्षा संबंधी तनाव और परेशानियों को दूर करने के लिए मै कुछ नये सकारात्मक सूत्र आपको देना चाहता हूँ, क्योकि अपने इतने वर्षों के शिक्षण काल में मैंने अनुभव किया है की छात

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“अवसर”

5 अप्रैल 2017
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“अवसर” खोजें, पहचाने और लाभ उठायें अवसर का लाभ उठाना एक कला है एक ऐसा व्यक्ति जो जीवन में बहुत मेहनत करता है लेकिन उसे अपने परिश्रम का शत-प्रतिशत लाभ नही मिल पाता और एक व्यक्ति ऐसा जो कम मेहनत में ज्यादा सफलता प्राप्त कर लेता है इन दोनों व्यक्तियों में अंतर केवल अवसर को

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सफलता की आधारशिला सच्चा पुरुषार्थ

14 मई 2017
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सफलता की आधारशिला सच्चा पुरुषार्थमानव ईश्वर की अनमोल कृति है लेकिन मानव का सम्पूर्ण जीवन पुरुषार्थ के इर्द गिर्द ही रचा बसा है गीता जैसे महान ग्रन्थ में भी श्री कृष्ण ने मानव के कर्म और पुरुषार्थ पर बल दिया है रामायण में भी आता है “कर्म प्रधान विश्व रची राखा “ अर्थात बिना पुरुषार्थ के मानव जीवन की क

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स्त्री और नदी का स्वच्छन्द विचरण घातक और विनाशकारी

21 मई 2017
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स्त्री और नदी दोनों ही समाज में वन्दनीय है तब तक जब तक कि वो अपनी सीमा रेखाओं का उल्लंघन नही करती | स्त्री का व्यक्तित्व स्वच्छ निर्मल नदी की तरह है जिस प्रकार नदी का प्रवाह पवित्र और आनन्दकारक होता है उसी प्रकार सीमा रेखा में बंधी नारी आदरणीय और वन्दनीय शक्ति के रूप में परिवार और समाज में रहती है|

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न सुख से प्रभावित हों और न दुःख से विचलित

25 मई 2017
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लेखक:- पंकज “प्रखर”कोटा (राजस्थान) मानव जीवन में कठिनाइयों का भी अपना महत्व है| कठिनाइयां हमारी परीक्षा लेती हुई हमारी योग्यताओं को और धारदार कर देती है ज्यादातर लोग कठिनाइयों को अपना दुर्भाग्य मानकर अपनी किस्मत को कोसते रहते है | इनमे वो लोग विशेषकर होते है जिन्होने सामान्य से निचले स्तर के परिवार

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भारत का महान सम्राट अकबर नही महाराणा प्रताप थे

3 जून 2017
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राजस्थान की भूमि वीर प्रसूता रही है इस भूमि पर ऐसे-ऐसे वीरों ने जन्म लिया है जिन्होंने अपने देश की रक्षा में न केवल अपने प्राणों को न्यौछावर कर दिया बल्कि शत्रुदल को भी अपनी वीरता का लोहा मानने पर विवश कर दिया | लेकिन दुर्भाग्य ये रहा की हमारे देश का इतिहास ऐसे मुर्ख पक्ष

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हिन्दू मुस्लिम समन्वय के प्रतीक कबीर बाबा

9 जून 2017
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आज धर्म के नाम पर एक दुसरे पर छींटाकसी करने वाले तथाकथित हिन्दू और मुसलमान जो शायद ही धर्म के वास्तविक स्वरूप की परिभाषा जानते हो ऐसे समय में उन्हें कबीर जैसे महान व्यक्तित्व के विचारों को पुन: पढना चाहिए | कबीर किसी विशेष पंथ सम्प्रदाय के नही अपितु पूरी मानव जाति के लिए

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“अच्छे दिन आने वाले है” आ गये किसानो के अच्छे दिन

9 जून 2017
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राजनैतिक परिस्थितियाँ इतनी दुर्भाग्यपूर्ण हो गयी है कि देश का सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति हमारा अन्नदाता किसान आज विकट परिस्थितियों से जुझ रहा है कारण है की वो अपनी मेहनत का उचित मूल्य चाहता है| क्या ये सरकार इतनी नाकारा हो गयी है की अपना अधिकार मांगने वाले किसान पर गोली दाग

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“नज़रे बदलो नज़ारे बदल जायेंगे”आपकी सोच जीवन बना भी सकती है बिगाढ़ भी सकती है

22 जून 2017
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सकारात्मक सोच व्यक्ति को उस लक्ष्य तक पहुंचा देती है जिसे वो वास्तव में प्राप्त करना चाहता है लेकिन उसके लिए एक दृण सकारात्मक सोच की आवश्यकता होती है| जब जीवन रुपी सागर में समस्यारूपी लहरें हमे डराने का प्रयत्न तो हमे सकारात्मकता का चप्पू दृण निश्चय के साथ उठाना चाहिए

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“कस्तूरी कुंडल बसे, मृग ढूंडे बन माहि " समाधान स्वयं में ही छिपा हुआ है

22 जून 2017
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आज के इस आपाधापी के युग में हर व्यक्ति अनेक प्रकार की समस्याओं से घिरा हुआ है कोई न कोई ऐसी समस्या हर व्यक्ति के जीवन में है जिससे पीछा छुडाने के लिए वो हर सम्भव प्रयास करता है लेकिन विडम्बना ये है की जैसे ही वो एक समस्या से पीछा छुड़ाता

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‘प्रेम’ और उसका अनुभव

8 अगस्त 2017
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कबीरा मन निर्मलभया जैसे गंगा नीरपीछे-पीछे हरिफ़िरे कहत कबीर कबीर||यदि मनुष्य कामन निर्मल हो जता है तो उसमे पवित्र प्रेम उपजता है वो प्रेम जिसके वशीभूत होकर स्वयंईश्वर भी अपने प्रेमी के पीछे दौड़ने के लिए विवश हो जाते है| ये गोपियों कानिस्वार्थ, निर्मल प्रेम ही था जिनकी याद में बैठकर द्वारिकाधीश अपने म

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‘वसुधैव कुटुम्बकम’ का भाव रखने वाली एकमात्र संस्कृति ‘भारतीय संस्कृति’

18 अगस्त 2017
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हमारी प्राचीन भारतीय संस्कृति समूचे विश्व की संस्कृतियों में सर्वश्रेष्ठ और समृद्ध संस्कृति है | भारत विश्व की सबसे पुरानी सभ्यता का देश है। भारतीय संस्कृति के महत्वपूर्ण तत्व शिष्टाचार, तहज़ीब, सभ्य संवाद, धार्मिक संस्कार, मान्यताएँ और मूल्य आदि हैं। अब जबकि हर एक की जीवन शैली आधुनिक हो रही है भार

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तीन तलाक का खेल ख़त्म हुआ

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मुस्लिम वर्ग की महिलाओं के लिए आज सोने का सूरज उगा है ये तारीख और ये फैसला इतिहास में सुनहरे अक्षरों में लिखा जाएगा |क्योंकि ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता’ का उद्घोष करने वाले इस भारत देश में अब हमारी मुस्लिम बहनों को भी आज समाज में बराबरी का दर्जा मिला है | सुप्रीम कौर्ट के तीन तलाक

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तकनीकी के अग्रदूत राजीव गांधी का शिक्षा के प्रति दृष्टिकोण

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हमारे भूतपूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय श्री राजीव गांधी का कहना था कि देश के प्रत्येक व्यक्ति तक शिक्षा का प्रसार होना चाहिए| यदि प्रत्येक नागरिक शिक्षित होगा तो एक श्रेष्ठ राष्ट्र का निर्माण होगा| श्री गांधी हमारे देश में तकनीक लाने वाले पहले व्यक्ति थे जिन्होंने न केवल भारतीय जनता को तकनीकी से रूबरू

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23 सितम्बर 2017
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आज के लेख की शुरुआत दुर्गा सप्तशती के इस श्लोक से करता हूँ इसमें कहा गया है...विद्याः समस्तास्तव देवि भेदाः, स्त्रियाः समस्ताः सकला जगत्सु।त्वयैकया पूरितमम्बयैतत्, का ते स्तुतिः स्तव्यपरापरोक्तिः॥ - दुर्गा सप्तशती अर्थात्:- हे देवी! समस्त संसार की सब विद्याएँ तुम्हीं से निकली है तथा सब स्त्रियाँ तुम

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‘कन्याभ्रूण’ आखिर ये हत्याएँ क्यों?

28 सितम्बर 2017
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बेटा वंश की बेल को आगे बढ़ाएगा,मेरा अंतिम संस्कार कर बुढ़ापे में मेरी सेवा करेगा| यहाँ तक की मृत्यु उपरान्त मेरा श्राद्ध करेगा जिससे मुझे शांति और मोक्ष की प्राप्ति होगी और बेटी, बेटी तो क्या है पराया कूड़ा है जिसे पालते पोसते रहो उसके दहेज की व्यवस्था के लिए अपने को खपाते रहो और अंत में मिलता क्या है

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तपस्या और प्रेम की साकार प्रतिमा है “नारी”

30 सितम्बर 2017
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नारी तुम केवल श्रद्धा हो, विश्वास रजत नभ पग तल में।पीयूष स्रोत सी बहा करो, जीवन के सुन्दर समतल में॥प्राचीन समय से स्त्रियों के नाम के साथ देवी शब्द का प्रयोग होता चला आ रहा है जैसे लक्ष्मी देवी, सरस्वती देवी, दुर्गा देवी आदि नारी के साथ जुड़ने वाले इस शब्द का प्रयोग आकस्मिक रूप में नही हुआ है अपितु य

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अपनी वास्तविक इच्छाओं को जांचे और परखे

31 अक्टूबर 2017
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इच्छा, आकांक्षा मनुष्य की प्रेरणा स्त्रोत है इच्छाएं है तो मनुष्य कर्म की और अग्रसर होता है | इच्छाएं नया जोश नई प्रेरणा का संचार मनुष्य के अंदर करने के साथ-साथ समाज में उसका स्थान भी निश्चित करती है लेकिन जब ये इच्छाएं आकाँक्षायें विकृत हो जाती हैं तो सम्पूर्ण जीवन को अशाँति तथा असन्तोष की आग में ज

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आत्मकेंद्रित होते युवा और समाज की आवश्यकता

13 दिसम्बर 2017
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इस तकनीकि के युग में आजकल के युवा इतने आत्मकेंद्रित हो गये है की उन्हें समाज या अपने आसपास के लोगों से मानो कोई सरोकार ही नही रह गया है| इसलिए आज घर के बुजुर्गों को अपने युवा हो रहे किशोरों से ये कहते सुनते है कि समाज में उठा बैठा करो, लोगों से मिला जुला करो, लोगों के यहाँ आया जाया करो थोड़े सोशल (सा

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अकेलापन

15 दिसम्बर 2017
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प्रमोद ने माइक्रोवेव में खाना गरम किया और और डाइनिंग टेबल पर बैठ कर खाने लगा | जाने क्या बात थी कुछ महीनों से उसे अकेलापन खलने लगा था | वह अपने जीवन के बारे में सोचने लगा जवानी में उसने अपने जीवन में कभी कोई कमी महसूस नही की थी, वह अपने में ही मस्त था| उसे लगता था की जीव

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यथा सोच तथा सृष्टि

30 अप्रैल 2018
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इस लेख का प्रारम्भ तुलसी बाबा की एक चौपाई से करता हूँ “जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत देखि तिन तेसी” इस चौपाई का सार सीधे शब्दों में ये है की मनुष्य जैसा सोचता है वैसी ही सृष्टि का निर्माण वो अपने आस-पास करने लगता है| संसार में अनेक प्रकार के जीव पाए जाते है,जिनमे मानव जीवन को सबसे श्रेष्ठ माना जाता

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विवाह .... एक सामाजिक संस्कार

3 मई 2018
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आज के समय में जब किसी विवाह योग्य युवा से विवाह प्रस्ताव अथवा विवाह करने की बात की जाती है तो वो बिदक जाता है और ये कहकर टालने की कोशिश करता है की अभी इतनी जल्दी क्या है ,अभी मेरा जीवनयापन का माध्यम सही नही है | इसका कारण जब जानने की कोशिश की गयी तो अपने नजदीकी मित्रों और रिश्ते दारों से युवा वास्तव

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कनाडा में आयोजित कार्यक्रम का आदरणीय डॉ.मोनिका शर्मा (हैदराबाद) के निर्देशन में राजस्थान में सफल आयोजन करने हेतु " विश्व हिंदी संस्थान कल्चरल ऑर्गेनाइजेशन" कनाडा की ओर से प्राप्त हुआ सम्मान आयोजक आदरणीय प्रो. सरन घई जी एवं डॉ. मोनिका शर्मा ,हैदराबाद का हृदयतल आभार।

25 मई 2018
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कनाडा में आयोजित कार्यक्रम का आदरणीय डॉ.मोनिका शर्मा (हैदराबाद) के निर्देशन में राजस्थान में सफल आयोजन करने हेतु " विश्व हिंदी संस्थान कल्चरल ऑर्गेनाइजेशन" कनाडा की ओर से प्राप्त हुआ सम्मान आयोजक आदरणीय प्रो. सरन घई जी एवं डॉ. मोनिका शर्मा ,हैदराबाद का हृदयतल आभार।

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राष्ट्र स्तरीय सम्मान से पुरस्कृत हुए कोटा के पंकज 'प्रखर

25 मई 2018
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करनाल, हरियाणा में आयोजित राष्ट्र स्तरीय सम्मान समारोह में कोटा राजस्थान के युवा साहित्यकार पंकज कुमार शर्मा 'प्रखर' को उनके साहित्य लेखन के लिए दिया गया प्रस्तुत कार्यक्रम के संयोजक और एंटी करप्शन फाउंडेशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष नरेंद्र अरोड़ा ने बताया कि ये समारोह शहीद पुलिस कर्मियों को समर्पित था ।

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वृक्षों का आध्यात्मिक एवं वैज्ञानिक महत्व

16 जून 2020
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वृक्षों का आध्यात्मिकएवं वैज्ञानिक दोनों ही दृष्टि से विशेष महत्व है ये जहां विभिन्न त्योहारोंतिथियों पर पूजे जाते हैं वहीं विज्ञानइनके फल, फूल, मूल एवं छाल का प्रयोग कर नित नए अनुसंधान करनेमें लगा हुआ है जिनसे की अनेक जानलेवाबीमारियों से हमारी रक्षा हो सके।मानव शरीर में शायद हीऐसा कोई रोग हो जिसक

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मंथरा के ऋणी….. श्रीराम

23 मई 2021
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‘मंथरा’ येशब्द सुनते ही हमारे सामने एक अधेड़ उम्र की कुरूप,घृणित किन्तु रामायण की अत्यंत महत्वपूर्ण स्त्री की छवि बन जाती है जिसकानाम था ‘मंथरा’। इस पात्र ने हमारे मन मस्तिष्क पर इतना गहरा प्रभाव छोड़ा है कि आजभी जब हम किसी नकारात्मक स्वभाव वाली महिला को देखते हैं तो के

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भारतीय संस्कृति और उसके प्रचार-प्रसार की आवश्यकता

23 मई 2021
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विश्वकी सर्वोत्कृष्ट आदि,अनादिऔर प्राचीनतम संस्कृति है भारतीय संस्कृति यह इस भारत भूमि में रहने वाले हरभारतीय केलिए बड़े गौरव का विषय है परंतु ये बड़े दुख का विषय है कि आज इस पावनपवित्र संस्कृति के ऊपर विदेशी संस्कृतियाँ घात लगाए बैठी हैं और इस संस्कृति की निगलनेका कोई मौका

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देवर्षि नारदजयंती (विशेष लेख)

23 मई 2021
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देवर्षि नारदभगवान के जितने प्रेमी भक्त हैं,भगवान भी नारद जी के उतने ही बड़े भक्त हैं।लेकिनआज की पीढ़ीनारद जी का जिस तरह से चरित्र-चित्रण करती है, उससे उनकीछवि उपहास के पात्र और चुगलखोर की बन गई है जो अतिनिंदनीयहै। आज आवश्यकता है कि देवर्षिनारद का वास्तवित चरित्र समाज के सामने आए। प्राणिमात्र के कल्याण

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मजबूर हूँ ,मैं मज़दूर हूँ

23 मई 2021
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‘मज़दूर’ एक ऐसा शब्द जिसके ज़हन में आते ही दुख, दरिद्रता, भूख, अभाव, अशिक्षा, कष्ट, मजबूरी, शोषण औरअभावग्रस्त व्यक्ति का चेहरा हमारे सामने घूमने लगता है।आप जब भी किसी पुल सेगुज़रें तो ये ज़रूर सोचें कि ये न जाने किन मज़दूरों के कंधों पर टिका हुआ है, जब आप नदियोंके सशक्त और मजब

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