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भैंस-चक्र ( व्यंग्य )

16 फरवरी 2017

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भैंस-चक्र

कमलानाथ


राज्य में कल अचानक आपातकालीन स्थिति उत्पन्न होगई। वहाँ अनौपचारिक राजकीय शोक मन रहा था। अनौपचारिक इसलिए, क्योंकि इसकी औपचारिक घोषणा सरकारी राजपत्र में नहीं हुई थी, हालाँकि राष्ट्रीय दुर्घटना बन गई इस की अखबारी ख़बर से सारा देश ग़मगीन हो गया था। दरअसल नेताजी की दो भैंसों में से एक भैंस उनके तबेले से सुबह ग़ायब पाई गयी थी।


नेताजी इन दिनों राज्य के गृहमंत्री थे जिनके पास अन्य कुछ और विभाग भी थे। कल से ही वे खुद बेहद परेशान थे और अपने अधीन सभी विभागों के बड़े अधिकारियों के साथ जल्दी से जल्दी भैंस की बरामदगी के मुताल्लिक़ मीटिंग कर रहे थे।


राज्य के पुलिस महानिरीक्षक ने ग्यारह ग्यारह लोगों की कुल सत्ताईस पुलिस की टुकड़ियां बना कर फ़ौरन तफ़्तीश के लिए चारों तरफ़ रवाना कर दी थीं और खुद टेलीफ़ोन पर बैठे मिनट मिनट की ख़बर ले रहे थे। मंत्रीजी के आदेश पर वे तबेले के आसपास के इलाक़ों में ड्यूटी दे रहे दस पुलिस वालों को कर्तव्य पालन की उपेक्षा करने के जुर्म में पहले ही सस्पेंड कर चुके थे। भला नेताजी की भैंस तबेले से निकल जाए और ऐसी क्या बेध्यानी कि उन्हें ख़बर तक न लगे! उनका रिटायरमेंट नज़दीक था और वे ड्यूटी में कोताही बरतने के अपराध में खुद ही सस्पेंड होजाने का जोखिम उठाने के लिए तैयार नहीं थे।


पुलिस की एक मुस्तैद टुकड़ी ने आगे की तफ़्तीश के लिए मौक़ा-ए-वारदात पर पहुँचते ही सबसे पहले भैंस का गोबर और मूत्र कब्ज़े में ले लिया और अपने विभाग के सबसे होशियार खोजी कुत्ते को सुंघा कर भैंस खोजने के लिए रवाना कर दिया। दुर्भाग्य से थोड़ी देर बाद ही सूचना आई कि अपने काम को अंजाम देने के दौरान कुत्ते की नाक पर किसी एक भैंस ने पीछे से ज़ोर की दुलत्ती रसीद कर दी और कुत्ता उसके बाद कुछ भी सूंघने के क़ाबिल नहीं रहा।


इधर जिन दस पुलिस वालों को काम में लापरवाही की वजह से सस्पेंड किया गया था वे सभी अपनी मुस्तैदी का मुजाहिरा करते हुए नेताजी के घर के बाहर एक एक भैंस और एक एक ‘चोर’ को पकड़े खड़े हुए थे जिन्हें उन्होंने रात भर की मेहनत के बाद तबेलों से ‘बरामद’ कर लिया था। पकड़े गए ‘चोरों’ से नेताजी की भैंस चुराने का अपना ‘अपराध’ भी स्वीकार करा लिया गया था। चूंकि नेताजी की एक ही भैंस चोरी हुई थी इसलिए पुलिस और फोरेंसिक लेबोरेटरी के कुछ डॉक्टर एक डंडे की मदद से इन भैंसों को गोबर करने को बाध्य कर रहे थे ताकि उसका मिलान चोरी हुई भैंस के गोबर से किया जा सके।


उधर दूसरी तरफ़ राज्य के मुख्य सचिव ने आनन फानन में प्रदेश के सारे बूचड़खानों को तुरंत बंद करवा के उनके सारे चाकू-छुरियों को जब्त करने का आदेश निकाल दिया था ताकि भैंस के अपहरण और उसकी हत्या होने की आशंका को रोका जा सके। मांस की तमाम दुकानों से सैम्पल उठाये जारहे थे कि कहीं मंत्रीजी की भैंस भी हलाल तो नहीं कर दी गयी। राज्य भर के तबेला-मालिकों को भी समन देकर बुलवाया गया जिन्हें एक हलफ़नामे पर दस्तख़त करने थे कि उन्होंने मंत्रीजी की भैंस को न तो देखा और न अगवा किया।


मुख्य सचिव ने सम्बन्धित विभाग के अधिकारियों को निर्देश भी जारी किये कि अब तक राज्य भर में अगवा की गयीं, क़त्ल कर दी गयीं, बेघर, लापता और पीड़ित भैसों के आंकड़े तुरंत जुटाए जाएँ और उनके कल्याण के लिए एक योजना प्रस्तावित की जाय। मुख्यमंत्रीजी ने इसके लिए पहले ही 500 करोड़ आवंटित करने की मंजूरी दे दी थी। साथ ही उन्होंने अन्य अधिकारियों, विश्वद्यालयों के बड़े बड़े प्रोफेसरों और सिविल सोसाइटी के ज़िम्मेदार लोगों को तुरंत ही एक सम्मेलन के लिए उपस्थित होने का फ़रमान भिजवाया ताकि इस तरह की समस्या का निराकरण किया जा सके। इसका एक फ़ायदा यह माना गया कि ऐसी भैंसों की तर्ज़ पर ही मानव समाज में बहुतायत से सरेआम हो रही अपहरण, हत्या, बलात्कार और लापता होने जैसी घटनाओं और उनसे निबटने के बारे में भी भविष्य में कुछ चर्चा की जा सके।


नेताजी भले ही चिंतित हों पर इससे उन सारे विभागों के अफ़सर ज़रूर मन ही मन खुश होगये थे जिनका मंत्रालय नेताजी के पास था। उनको भैंस से सम्बंधित किसी भी सुझाव या सूचना के लिए सीधे नेताजी से मिलने का अवसर मिल गया था। पुलिस के उपमहानिरीक्षक ने जिनका अब प्रोमोशन होना था, सुझाव दिया कि कानून और व्यवस्था से जुड़ी ऐसी दुर्घटनाएं भविष्य में न हों इसका पुख़्ता इंतज़ाम कर दिया जाना चाहिए। भैंस के मिल जाने पर दोनों भैंसों को ज़ैड-कैटेगरी की सुरक्षा मुहैया करा देनी चाहिए। मंत्रीजी को सुझाव तो पसंद आया पर इस बाबत विपक्ष के संभावित हमले के मद्देनज़र ज़ेड कैटेगरी की सुरक्षा देने की बजाय उन्होंने भैंसों को सिर्फ़ एसपीजी सुरक्षा देने का हुक्म ही दिया, हालाँकि सरकार द्वारा प्रदेश की एक भैंस को ज़ैड-कैटेगरी वाली सुरक्षा भी मिली हुई थी। उपमहानिरीक्षक खुशी खुशी तामील के लिए चले गए और जाते जाते मंत्रीजी को यह आश्वासन देते गए कि चोरी करने वाले की सात पुश्तें भी भैंस का तो क्या, किसी बकरी का दूध पीने के क़ाबिल भी नहीं रहेंगी।


वहीँ बैठे एक पुलिस अधीक्षक ने भी चिंता ज़ाहिर कर डाली कि प्रदेश में बलात्कार की घटनाएँ पिछले दिनों बहुत तेज़ी से बढ़ी हैं, इन हालातों को देखते हुए अकेली जवान भैंस का इस तरह रात को बाहर रहना ठीक नहीं। दूसरे अधीक्षक ने कहा – ‘सर, सुप्रीम कोर्ट ने नेताओं की गाड़ियों पर तो लाल बत्ती लगाने पर रोक लगा दी है पर चरने जाते वक़्त आपकी भैंसों के सींगों पर तो लाल बत्ती लगाई जा ही सकती है ताकि आगे से उन्हें कोई छूने तक की हिम्मत नहीं कर सके।’ मंत्रीजी को लगा – सही है, इलाज से बेहतर एहतियात!


बिना समय गंवाए डाक्टरों की एक टीम लेकर चिकित्सा और स्वास्थ्य विभाग के सचिव भी मंत्रीजी के यहाँ पहुँच गए थे। बड़े अस्पताल के सुपरिंटेंडेंट ने सुझाव दिया था कि भैंस के पाड़े के खून का सैम्पल ले कर उसका डीएनए टैस्ट किया जाय और उसका मिलान राज्य की सारी भैंसों के डीएनए के साथ किया जाय ताकि चोरी का पता चल जाय। यह बताना प्रासंगिक होगा कि चूंकि वे मंत्रीजी की भैंस के पाड़े की बात कर रहे थे, संकोचवश उन्होंने ‘पाड़े’ नहीं, ‘बेटे’ शब्द का उपयोग ही किया था। तब भी उनको मन ही मन डर लग रहा था कि मंत्रीजी की भैंस के लिए ‘मैडम’ की बजाय ‘भैंस’ कह देने से कहीं मंत्रीजी बुरा न मान जाएँ और उनका तबादला कर दें। मंत्रीजी को सुझाव तो अच्छा लगा, पर इसमें समय अधिक लग जाने की चिंता व्यक्त की। हाँ, उन्होंने ये ज़रूर कहा कि इस प्रक्रिया से पाड़े के ‘पिताजी’ का पता लगाया जाय क्योंकि इस बार यह भैंस पहली बार की बजाय ज़्यादा प्रसन्न दिख रही थी, थोड़ा ज़्यादा दूध दे रही थी और पाड़ा भी कुछ ज़्यादा ही स्वस्थ था। भविष्य में इन्हीं भैंसा-श्री को अपनी सेवाएँ देने के लिए आमंत्रित किया जा सकता था।


ज़्यादा दूध की चर्चा हुई तो इसका श्रेय दूध निकालने वाले घोसी ने भी ले लिया जिसने बताया कि वो दूध निकालने से पहले हमेशा अपना ट्रांज़िस्टर खंबे में टांग देता था जिसमें गाने बजते रहते थे। इसकी पुष्टि पशुपालन विभाग के सचिव और पशु-चिकित्सकों ने भी की कि संगीत से गाय-भैंस ज़्यादा दूध देती हैं ऐसा किसी शोध से पता चला है। किसी ने सुझाव दिया कि हो सकता है भैंस की आदत संगीत सुनने की पड़ गयी हो, इसलिए सभी तबेलों के आगे संगीत बजाया जाय और अगर कोई भैंस इसमें विशेष रुचि दिखाए तो हो सकता है कि वह मंत्रीजी की भैंस ही हो। तब क्या था, वहाँ बैठे सूचना और प्रसारण विभाग के सचिव ने फ़ौरन ही प्रस्ताव दिया कि हाल ही में राज्य के एक रेडियो स्टेशन में ए-ग्रेड का एक कलाकार ट्रांसफ़र होकर आया है, उसे तबेलों के आगे बीन बजाने की ड्यूटी पर लगाया जा सकता है। अगर नेताजी की भैंस इंस्ट्रूमेंटल सुनना पसंद करे तब तो वही ठीक है, वर्ना दूसरा वैसा ही अच्छा कलाकार वोकल के लिए भी भिजवा देंगे। मंत्रीजी ने खुशी खुशी सम्बंधित मंत्रालय से बात करना स्वीकार कर लिया।


यह पहली बार हुआ था कि सारा राज्य अचानक जागरूक हो गया था, सरकार अपनी ज़िम्मेदारी बखूबी समझने लगी थी, सारे सरकारी अफ़सर और कर्मचारी अपनी ड्यूटी कर्मठता के साथ कर रहे थे, अकर्मण्य पुलिस अभूतपूर्व मुस्तैदी से सक्रिय होगई थी और रातोंरात प्रदेश में एक सुखद बदलाव सा नज़र आने लगा था।


तभी पुलिस महानिरीक्षक यकायक दौड़ते हुए बाहर निकले और थोड़ी देर बाद खुद ही नेताजी की भैंस की रस्सी का एक हिस्सा पकड़े हुए गर्व के साथ आते दिखाई दिए। उनके साथ ही रस्सी का दूसरा हिस्सा पकड़े राज्य के मुख्य सचिव भी प्रसन्न मुद्रा में थे। प्रैस फ़ोटोग्राफ़र धड़ाधड़ उनकी फ़ोटो पर फ़ोटो खींचे जा रहे थे और सारे चैनल्स इस बरामदगी का लाइव कवरेज दिखा रहे थे। आखिर संयुक्त रूप से पुलिस की मुस्तैदी और प्रशासन की कार्य कुशलता से इतने कम समय में ही भैंस को ढूंढ निकाला गया था। वह पास ही रातभर वन-विहार कर रही थी और बरसात के बाद की हरी हरी घास का रसास्वादन कर रही थी। भैंस के पुनः गृह-प्रवेश की ख़बर से मंत्रीजी के यहाँ मिठाइयाँ और बधाइयाँ बँट रही थीं। नेताजी मीडिया से घिरे हुए गर्व के साथ पुलिस और प्रशासन की अक्षमता के आरोपों का खंडन उनकी दक्षता के इस नए उदाहरण से कर रहे थे और देश के अन्य प्रदेशों को इससे प्रेरणा लेने की सलाह दे रहे थे।


और उधर मंत्रालय में इस अभियान से जुड़े सभी प्रशासन और पुलिस कर्मियों की पदोन्नति के काग़ज़ तैयार हो रहे थे।


- कमलानाथ

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एक उत्कृष्ट लेखक की कलम से बहुत अच्छा और सशक्त व्यंग्य. यह प्रदेशों, अधिकारियों, मंत्रियों, मातहत कर्मचारियों आदि के कामकाज पर बड़ा मनोरंजक ‘हमला’ है जो असली ज़मीनी हालात को भी दिखलाता है. ऐसे उच्चस्तरीय लेखक अधिकतर छपी हुई पत्रिकाओं में ही पढ़े जा सकते हैं, जिनकी पाठकों की संख्या सीमित होती है और जो लोग ऐसी पत्रिकाएँ नहीं खरीद सकते वे इस तरह के लेखों से वंचित रह जाते हैं. मैंने कमलनाथ जी को पत्रिकाओं में तो पढ़ा ही है, इंटरनेट पर भी उनको काफी पढ़ा है. भले ही बड़े लेखक इस तरह अपना ‘पारिश्रमिक’ खोते हों, पर इसका लाभ हजारों, लाखों पाठकों को मिल जाता है, जो अन्यथा उनको पत्रिकाओं में नहीं पढ़ सकते हैं. ऐसे बेमिसाल लेखकों का आभार और धन्यवाद. ऐसे उत्कृष्ट लेखक जब तक ओनलाइन पत्रिकाओं में नहीं लिखेंगे पाठकों का नुक्सान बना रहेगा. हिंदी की क्षमताओं का परिचय ऐसे लेखकों के द्वारा ही मिलता है. ‘शब्द’ का आभार कि उन्होंने ऐसे रचनाकारों से पाठकों को रूबरू कराया है. दिनेश वैद्य

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