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साझा विरासत का खून: फूल रही सरसों

18 फरवरी 2017

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16 फरवरी, 2017. पाकिस्तान की एक जगह सहवान में १३वीं सदी के महान मुस्लिम सूफ़ी संत लाल शहबाज़ क़लन्दर का मज़ार और उसमें भक्तों का जमावड़ा, अक़ीदत के फूल और चादरें, सूफ़ी क़व्वालियाँ, दिव्य आनंद की 'धमाल'....कि एक धमाका और 70 मरे, 100 से ज़्यादा घायल!!! यह उस दिन की सबसे बड़ी खबर थी और यह एक आतंकी हमला था.....


पाठक भूले न होंगे एक बंजारिन गायिका को जिसका नाम था रेशमा और जो अपने क़बीले के साथ घूमते-घूमते पाकिस्तान चली आयी थी और इसी मज़ार पर बैठ कर इस संत की स्तुति में एक गीत गाया करती थी, ' दमादम मस्त क़लन्दर, अली दम दम दे अंदर, सखी शहबाज़ क़लन्दर, लाल मेरी पत रखियो सदा, झूले लालण हो लाल मेरी. .' पाकिस्तान रेडियो के किन्हीं अधिकारी ने वहाँ रेशम को सुना और रेडियो पर ले आये. फिर तो जैसे जंगल में आग लग गई. है कोई ऐसा सारी दुनिया में जिसने ये भक्तिगीत न गाया-सूना हो या इसकी धुन पर मस्त होकर नाचा न हो !


सूफ़ी पंथ हमारी एक साझा परम्परा है, न जाने कितने सूफी संतों ने इसे परवान चढ़ाया !अजमेर शरीफ में चादरें यहां से भी चढ़ती हैं, वहाँ से भी चढ़ती हैं . हज़रत निज़ामुद्दीन की दरगाह पर, दिल्ली में, अपने पीर की बग़ल में उनके मुर्शिद भी सोये हुए हैं, हज़रत अमीर खुसरौ, जिनके लोकगीतों, क़व्वालियों और सगीत, साहित्य के ख़ज़ानों ने तो भारत-पाकिस्तान ही क्या पूरे विश्व में धूम मचा रक्खी है, वह भी इसी परम्परा में आते हैं, बहरहाल. ....


धमाका हो गया, 70 जानें चली गईं 100 घायलों में से भी कितने बचें, कौन जानें!यह कैसा विरोध, कैसा उन्माद, कैसा राष्ट्रवाद!!! राष्ट्रवाद का उन्माद आज कई देशों पर छाया हुआ है जिसकी आग में न जाने कितने देश झुलस रहे हैं, जल रहे हैं और साझा विरासतों की तो जैसे जान पर ही

बन आई है.


अमीर खुसरौ के पुरखे आए ईरान से, खुद जन्मे उत्तर भारत के एक छोटे से क़स्बे पटियाली में, ज़िन्दगी बीती, दिल्ली के हज़रत निजामद्दीन औलिया के सान्निध्य में और इस साझा विरासत सूफ़ी परम्परा के लिए बसंत ऋतु की छटाओं में रंग कर एक ऐसा गीत लिख गए और उसकी राग बहार में ऐसी धुन भी बनगए जो आज तक बदली ही नहीं गयी बल्कि आज भी इधर हों या उधर, शास्त्रीय संगीत के छात्र जब राग बहार सीखते हैं तो यही गीत उन्हें सिखाया जाता है. गीत है - फूल रही सरसों, सघन बन फूल रही सरसों , अम्बुवा मूले , केसू फूले, कोयल कूकत डार -डार और गोरी करात सिंगार, मलिनिया हरवा ले आयी घर सों , सघन बन फूल रही सरसों.


यही गीत जिस तरह बसंत ऋतु में यहाँ नाचा- गाया जाता है वैसे ही वहाँ भी नाचा-गाया जाता है . विश्वास न होता हो तो देखिए पाकिस्तानी टेलीविज़न की एक प्रस्तुति जो हमने अपने इस लेख के साथ संलग्न की है. गीत के बोलों में कुछ अंतर हो सकता है क्योंकि लोकगीत अपने जन्म

से सदियों तक सारा संसार घुमते हैं. शब्दों में थोड़ा-बहुत. अंतर हो जाता है. तो सुनिये इस रचना को और सोचिये कि कितने क्रूर होंगे वे हाथ और मन जो कट्टरता के नाम पर इस खूबसूरत साझा परंपरा, सूफ़ी परम्परा को मिटाने चले हैं!


रेणु

रेणु

बहुत ही दुखद और निंदनीय है ऐसी घटनाएं -- खासकर पूजा घरों वा इबादतगाहों में -- जहाँ लोग अपनी आस्था और विश्वास की बदौलत आते हैं -- इन पवित्र जगहों पर ऐसे अमानवीय कृत्य ईश्वर की नजर में पाप तो कानून की दृष्टी में जघन्य अपराध हैं | शाहबाज कलंदर , निजामुद्दीन औलिया या अमीर खुसरो सब अमन के मसीहा थे | इन्होने गंगा - जमुनी तहजीब को भरपूर पोषित किया | सचमुच हिन्द - पाक की साँझा विरासत आतंकवाद की भेंट चढ़ रही है -- काश कोई अमन का मसीहा फिर से आकर इस कडवाहट को अमृत में बदल देता ! !

20 फरवरी 2017

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आगाज़

15 फरवरी 2017
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नमस्कार दोस्तों! शब्द नगरी द्वारी सजाई गयी इस महफ़िल में आज से मैंने भी क़दम रख दिए हैं! काफी सामान हैं यहां लुभाने के; सो सोचा क्यों आप सब से मुलाक़ात भी की जाय और मन में जो ए , उकेर भी दिया जाय .. शब्द नगरी का आभार की एक मंच दिया. शब्द नगरी की ओर से, मज़ाहिया अंदाज़ में लिखना चाह

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बात से पहले की बात

16 फरवरी 2017
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मित्रो, नमस्कार ! मैंने अपना पन्ना (वेब पेज ), 'बात बोलेगी' कल ही बनाया था और आज,' बात से पहले की बात' करना चाहता हूँ. यह सन 1949 की बात है. मैं तब कक्षा चार में दिल्ली, पहाड़गंज के दयानंद एंग्लो-वैदिक विद्यालय में पढता था. वहाँ एक वाक्-प्रतियोगिता का आयोजन हुआ. विषय था,' क्या भारत विश्व का प्रति

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बूँद टूटे कि तोड़े !

17 फरवरी 2017
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' बारिश की बूँद टूटे कि तोड़े, सवाल इतना सा है! ' देवेंद्र भाई ने कहा और चुप हो गए.देवेंद्र भाई यानी स्वर्गीय डॉ. देवेंद्र कुमार, प्रसिद्द गांधीवादी अर्थशास्त्री, डॉ कुमारप्पा के शिष्य एवं गुमनाम वैज्ञानिक! वैज्ञानिक , जो केवल गांव वालों के लिए ही सोचते थे और उन्हें निरंतर आत्मनिर्भरता की और अग्रसर

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साझा विरासत का खून: फूल रही सरसों

18 फरवरी 2017
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और वह केला नहीं ख़रीद पाई !

21 फरवरी 2017
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बहुत दिनों पहले की बात है .तब जनाब ख़्वाजा अहमद अब्बास हयात थे. एक प्रसिद्द टैब्लॉइड 'ब्लिट्ज़' के हिंदी संस्करण में उनका एक स्तम्भ 'आख़िरी पन्ना' छपा करता था. एक बार उन्होंने लिखा कि जब वो छोटे थे तोअपने लिए दूध नहीं ख़रीद पाए क्योंकि जब उनकी जेब में 4 आने होते तो

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सदाफूली की साइकिल

24 फरवरी 2017
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माँ ने उसका नाम ही सदाफूली रख दिया था. 'सदाफूली ' महाराष्ट्र में 'सदाबहार' फूल को कहते हैं. गर्मी हो, सर्दी या कि बरसात, यह फूल सदाबहार है , फूलता ही रहता है. कई मर्ज़ों की दवा भी है यह! 'एंटीबायटिक' बनाने मैं भी प्रयोग की जाती है अर्थात स्वयं तो सदा खिली रहती ही है द

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सुपारी वहाँ भी: सुपारी यहां भी

28 फरवरी 2017
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हाल ही में महाराष्ट्र के विदर्भ अंचल के नगर वर्धा के पास बसे सेवाग्राम में स्थित,'गांधीकुटी'केतीर्थाटन को गया था. सेवाग्राम से लेकर वर्धा तक की पुण्यभूमि गाँधी जी की कर्मस्थली रही. सेवाग्राम एक पूरा परिसर है जिसमें गाँधी जी द्वारा खोलेगये विभिन्न प्रकार के सामाजिक संगठन, शिक्षा संस्थान एवं राष्ट्रीय

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" मेरे पिता को पकिस्तान ने नहीं मारा !"

3 मार्च 2017
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जी! किसी नन्ही-मुन्नी कली(आयु केवल दो वर्ष) के पिता युद्ध में खेत रहे! उसे कहा गया कि युद्ध पाकिस्तान से था . गुड़िया ज्यों-ज्यों बड़ी होती गई , उसके मन में यह बात बैठती गयी कि पाकिस्तानी उसके पिता के क़ातिल हैं. छह साल तक अपने पिता की बांहों के लिए तरसती रही इस मुलमुली

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