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काश हम उन जैसे बन पाये!!!

26 फरवरी 2017

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काश हम उन जैसे बन पाये!!!
३१ दिसम्बर २०१६
२००८ में पापा नहीं रहे व २०१६ दिसम्बर में मम्मी भी मोक्ष की यात्रा के लिये चल पड़ी। दोनों का जीवन संघर्ष पूर्ण रहा। पापा मेहनती व धूनी थे लेकिन लक्ष्मी की कृपा से वंचित रहे। बाईजी (मम्मी) समझदार व धार्मिक थी लेकिन पढ़ न पाने का अफ़सोस सदैव रहा। उम्र भर उनका प्रयत्न रहा कि उनके चारों बच्चों को अच्छी शिक्षा मिले व सब अपने अपने जीवन में ख़ुश रहे। वैसे तो दोनों के जीवन से हजारों बातें सीखने को मिली लेकिन उनमें से १२ बातें अत्यंत महत्वपूर्ण है।

12 lessons to be learned from our parents:
– Truthfulness – सत्यता: मेरा भाई अंकुर ६ साल का था व हम train में सफ़र कर रहे थे। TT जब check करने आया तो मेरे पापा ने कहा यह तो अभी ५ साल से छोटा है लेकिन मम्मी ने तुरंत कहा नहीं यह ६ साल का है और उसका ticket लेना पड़ा।

– Compassion – करुणा: किसीको भी तकलिफ न देना व हर एक की तकलिफ को समझना बाईजी का मूल स्वभाव था। निर्धनता में भी खाना बनाते समय गाय व कुत्ते की रोटी अलग रख देना उनकी आदत में था। घर के किसी भी सेवक को ज़्यादा काम कराना या ज़ोर से डाँटना उनको अच्छा नहीं लगता था। मच्छर या चींटी को भी मारना उनको पाप लगता था। जीव दया तो जैसे कूट कूट के भरी थी।

– Persistent – कर्मठता: पैसे कमाने में लगातार असफलता के कारण पापा ने कई तरह के उद्यम किये। पुलिस की नौकरी, insurance का काम, चुड़ियों की दुकान, गन्ने के रस की दुकान, स्कूल व college चलाना, कई नौकरियाँ, ओसवाल इतिहास की छानबीन और न जाने क्या क्या। लेकिन ज़िंदगी से कभी हार नहीं मानी। एक असफलता के बाद दूसरा काम ज़्यादा जोश से करने की तो मानो आदत थी। पापा को कभी हताश व बाईजी को कभी निराश नहीं देखा।

– Selfless service – निस्वार्थता: पापा ने अपने अंतिम ३५ वर्ष पूर्णत: समाज की सेवा में समर्पित कर दिये। ओसवाल समाज के इतिहास को जानने में उन्होंने पूरे भारतवर्श का भ्रमण किया व ४ पुस्तकें प्रकाशित की। History of Oswals in English, ओसवाल जाति का इतिहास, ओसवंश की कुलदेवियाँ व अष्टावक्र की महागीता। ओसवाल जाति का इतिहास तो उन्होंने cancer से terminally ill घोषित होने के बाद प्रकाशित की।

– Endurance – सहनशक्ति : पापा ने कभी न दुख को दुख समझा ना सुख को सुख। मुझे आज भी याद है लगभग ५० साल पहले पापा के गन्ने के रस की दुकान का क़िस्सा। रस निकालने वाला नौकर कही चला गया व ग्राहक को रस चाहिये था। पापा ने electric machine को on किया व गन्ना मशीन में डाला। practice न होने के कारण गन्ने के साथ हाथ भी मशीन में चला गया। किसी ने switch off किया हाथ मशीन के बाहर निकाला auto किया और ख़ुद ही hospital पहुँच गये। डाक्टर ने कहा कुछ अंगुलियाँ काटनी पड़ेगी नहीं तो ज़हर फैल जायेगा। पापा ने बिना anaesthesia लगाये अंगुलियाँ कटवा दी। एक आँसू नहीं। २००५ में जब पापा को cancer detect हुआ व हमने पहली बार बताया कि पापा आपको cancer last stage पर है व डाक्टर के हिसाब से आपके पास सिर्फ़ ३ महीने है और वो मुस्करा दिये और कहा मेरे पास अभी ३ साल है और मुझे एक पुस्तक प्रकाशित करनी है। मौत का मानो कोई डर ही नहीं।

– Patience – संयम: कई बार ऐसे मौक़े आये जब यह मालूम नहीं था कि कल का सब का भोजन कैसे आएगा लेकिन मम्मी ने हमेशा संयम रखा। संयम के मामले में दोनों ही बड़े पक्के थे। पिछले ४० साल से दोनों ने जैन १२ व्रत का पालन किया। http://www.fas.harvard.edu/~pluralsm/affiliates/jainism/jainedu/12vows.htm ये नियम इतने कठोर है कि बिना संयम के पालन करना संभव नहीं।

– Self-respecting – स्वाभिमान: मैं १९८२ में नौकरी के कारण नागपुर shift हो गया। पापा मम्मी दोनों छोटे भाई बहन के साथ मुम्बई व बाद में पूना रहे। एक बार भी उन्होंने अपनी तकलिफ ज़ाहिर नहीं की। कभी भी पैसे नहीं मंगवाते। मैंने भेज दिये तो ठीक नहीं तो भी ठीक। मम्मी के मन में तो आख़िर समय तक जोधपुर अपने मकान में जाकर रहने कि इच्छा बलवती रही।

– Economical – मितव्ययिता: पानी कि हर बूँद को संचित करना व एक मिनट भी ज़रूरत के बिना बिजली न जलाना उनके लिये बड़ा महत्वपूर्ण रहा। सीमित कपड़े सिलवाना, कम से कम ख़र्च में यात्रा करना, पूरे शहर में साइकल पर ही घूमते रहना। बाईजी व पापा दोनों ही एक एक पैसा देख कर ख़र्च करते थे लेकिन बच्चों के लिये व मेहमान के लिये कभी भी खान पान में कटौती नहीं की। जितना था उसमें चलाया।

– Purposeful – संकल्पित: पापा में हमेशा कुछ करगुजरने कि इच्छा प्रज्वलित रही। Last stage of cancer में भी दो पुस्तकें प्रकाशित की। हमारे लोढ़ा जाति का व कई ओसवाल जातियों का उद्गम ढूँढ निकाला। लोढ़ा परिवार का ५८ पीढ़ी को ढूँढ निकाला व पिछले ८ पीढ़ी की फ़ोटो के साथ वंश वृक्ष का निर्माण किया। पापा के पास हमेशा कुछ न कुछ करने को रहता था।

– Hospitality – अतिथि सत्कार: अतिथि देवों भव: पापा मम्मी ने हमेशा अतिथि का मन से सम्मान किया। साधनों का अभाव होते हुए भी उनके सत्कार व मान में कोई कमी नहीं आने देते। पापा व मम्मी दोनो side का परिवार बड़ा होने के कारण व उनके आत्मीय स्वभाव के कारण कोई न कोई आता ही रहता था।

– Non-possessiveness – अपरिग्रह: १२ व्रत में से एक महत्वपूर्ण व्रत है अपरिग्रह। सीमित साधनों से जीवनयापन करना। हर वस्तु का सीमित उपभोग। Limited खान। Limited पहनना। Limited travel. सिर्फ़ आवश्यकताओं पर ध्यान व विलासिताओ का त्याग। २००३-४ में बाईजी पापा जोधपुर रहते थे व हम लोग नागपुर। बाईजी अपना घर ५००० रुपये में चलाते थे और हमें ५०००० महीना लगता था।

– Family oriented – पारिवारिक प्रेम: बाईजी कि हमेशा ख़्वाहिश व सीख यही रही कि हम चारों भाई बहन कुछ भी हो जाय लेकिन आपस में झगड़ा न करे। प्रेम से रहे। पूरे परिवार में सब मानते है कि उन्होंने हर रिश्तेदार से प्रेम रखा व हर जीव के साथ अपनेपन का व्यवहार किया।

अलविदा २०१६। अलविदा बाईजी।
काश हम आप जैसे बन पाये!!!

http://www.hemantlodha.com/bye2016/

रेणु

रेणु

हेमंत जी ! अपने दिवंगत माता - पिता के लिए ना तो कोई इससे बेहतर पंक्तियाँ हो सकती हैं ना श्रद्धांजलि -- सबसे बड़ी बात अपने संस्कारों की बदौलत वे आप में जीवित है -- महसूस कीजिये आप बिलकुल उन्ही जैसे है - आपकी भाव भीनी श्रद्धांजलि बहुत भावुक कर देने वाली है | मुझे भी अपने स्वर्गीय पिता जी की याद आ गई -- सच है -- वह नैतिकता का स्वर्ण - काल था | आपको बहुत शुभकामना --

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काश हम उन जैसे बन पाये!!!

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काश हम उन जैसे बन पाये!!!३१ दिसम्बर २०१६२००८ में पापा नहीं रहे व २०१६ दिसम्बर में मम्मी भी मोक्ष की यात्रा के लिये चल पड़ी। दोनों का जीवन संघर्ष पूर्ण रहा। पापा मेहनती व धूनी थे लेकिन लक्ष्मी की कृपा से वंचित रहे। बाईजी (मम्मी) समझदार व धार्मिक थी लेकिन पढ़ न पाने का अफ़सोस सदैव रहा। उम्र भर उनका प्

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गीता दोहे

26 फरवरी 2017
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1. प्रथमोऽध्याय: अर्जुनविषादयोगः[सम्पाद्यताम्] ॐधृतराष्ट्र उवाचधर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः ।मामकाः पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत संजय ॥१-१॥धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र का, बोलो संजय हाल।कौन कैसे और कहाँ, पांडव-मेरे लाल HG1-1सञ्जय उवाचदृष्ट्वा तु पाण्डवानीकं व्यूढं दुर्योधनस्तदा ।आचार्यमुपसंगम्य र

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