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जुलमी फागुन! पिया न आयो.

11 मार्च 2017

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जुलमी फागुन! पिया न आयो.


बाउर बयार, बहक बौराकर

तन मन मोर लपटायो.

शिथिल शबद, भये भाव मवन

सजन नयन घन छायो.


मदन बदन में अगन लगाये

सनन सनन सिहरायो

कंचुकी सुखत नहीं सजनी

उर, मकरंद बरसायो .


बैरन सखियन, फगुआ गाये

बिरहन मन झुलसायो.

धधक धधक, जर जियरा धनके

अंग रंग सनकायो.


जुलमी फागुन! पिया न आयो.


टीस परेम-पीर, चिर चीर कर

रोम रोम सहरायो

झनक झनक पायल की खनक

सौतन, सुर ताल सजायो


चाँद गगन मगन यौवन में

पीव धवल बरसायो

चतुर चकोरी चंदा चाके

मोर प्रीत अमावस, छायो


कसक-कसक मसक गयी अंगिया

बे हया, हिया हकलायो

अंग अनंग, मारे पिचकारी

पोर पोर भीग जायो


जुलमी फागुन! पिया न आयो.


बलम नादान, परदेस नोकरिया

तन संग, सौ-तन, रंगायो

भरम सरम,नैनन, भये नम

मन मोर, पिया जगायो.


कोयली कुहके,पपीहा पिहुके

पल पल अँखियाँ फरके

चिहुँक-चिहुँक मन दुअरा ताके

पिया, न पाती कछु पायो


बरसाने मुरझाई राधा

कान्हा, गोपी-कुटिल फंसायो

मोर पिया निरदोस हयो जी

फगुआ मन भरमायो


जुलमी फागुन! पिया न आयो.

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