जहाँगीर आलम (आसनसोल) :- गोवा में 2017 के विधानसभा चुनाव के बाद रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर को दुबारा मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी संभालने का मौका मिला है. जबकि चुनाव में सबसे अधिक सीटें जीतने वाली कांग्रेस पार्टी को यहां विपक्ष में बैठना पड़ रहा है. वही पूर्वोत्तर के राज्य मणिपुर में पहली बार बीजेपी की सरकार बनी है और पूर्व फुटबॉल खिलाड़ी एन बीरेन सिंह को मुख्यमंत्री का पदभार सौपा गया है. वह राज्य के 12वें मुख्यमंत्री हैं. इस राज्य में भी कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद सरकार बनाने में असफल रही. उल् लेख नीय है कि नोटबंदी के साये में हुए मौजूदा विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी का प्रदर्शन बेहद प्रभावशाली रहा. पार्टी ने देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में ऐतिहासिक जीत दर्ज की. साथ ही उत्तराखंड में भी भाजपा भारी बहुमत से विजय हुई. लेकिन पंजाब और गोवा ने भाजपा को निराश किया. पंजाब में तो पार्टी को कहीं न कहीं हार का अंदेशा था पर गोवा में उसे उम्मीद थी कि वह सत्ता में फिर लौट आएगी. वहां कांग्रेस ने सीटों के मामले में उससे बाजी मार ली. लेकिन भाजपा गोवा और मणिपुर में जोड़-तोड़ कर सरकार बनाने में सफल रही. जिसपर कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने भारतीय जनता पार्टी पर पैसे के बल पर सरकार बनाने का आरोप लगाया. उन्होंने बीजेपी पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि उसने पैसे के दम पर देश के तटीय राज्य गोवा तथा पूर्वोत्तर के राज्य मणिपुर में सरकारें बनाईं और कांग्रेस से यह मौका छीन लिया. भाजपा ने लोगों का बहुमत चुराया है, पाया नहीं. गोवा के ताजा चुनाव परिणाम देखें तो विधानसभा में किसी भी दल या गठबंधन को स्पष्ट बहुमत नहीं मिल सका है. त्रिशंकु विधानसभा में कांग्रेस को सबसे अधिक 17 सीटें मिली हैं और वह सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है. वहीं अब तक सत्ता में रही भाजपा ने 13 सीटें हासिल की हैं. चुनावों से थोड़ा पहले तक भाजपा की सहयोगी रही महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी (एमजीपी) ने तीन सीटें जीती हैं तो गोवा फॉरवर्ड पार्टी (जीएफपी) को भी तीन सीटें मिली हैं. एक सीट राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी यानी एनसीपी के खाते में गई है. बाकी की तीन सीटों में से एक-एक भाजपा और कांग्रेस समर्थित निर्दलीय उम्मीदवारों ने जीती हैं. एक निर्दलीय प्रत्याशी का किसी भी पार्टी से कोई जुड़ाव नहीं है. वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 22 सीटे जीती थी जो इसबार से 9 सीटे अधिक थी. जबकि लोकसभा चुनाव के दौरान तो उसने कुल 33 सीटों पर बढ़त बनाई थी. लेकिन इस बार पार्टी का प्रदर्शन खास नहीं रहा. वह मात्र 13 सीटें ही हासिल कर पाई. जानकारों की माने तो मनोहर पर्रिकर के रक्षामंत्री बनकर केंद्र में जाने से राज्य में पार्टी की पकड़ कमजोर हो गई. उनके मुताबिक पर्रिकर के जाने से नेतृत्व के स्तर पर जो खालीपन पैदा हुआ उसे मुख्यमंत्री लक्ष्मीकांत पारसेकर भर पाने में नाकाम रहे. उन पर इस चुनाव में पार्टी की नैया पार लगाने का जिम्मा था लेकिन वे अपनी सीट भी नहीं बचा सके. उनके मंत्रिमंडल के सहयोगी दयानंद मांडरेकर और दिलीप पारुलेकर को भी हार का सामना करना पड़ा. आरएसएस के करीबी माने जाने वाले पारसेकर करीब दो सालों तक राज्य के मुख्यमंत्री रहे. लेकिन इतने ही समय में उनके नेतृत्व पर कई बार सवाल उठाए गए. चुनाव के ठीक दो माह पहले ही सरकार की सहयोगी एमजीपी ने मुख्यमंत्री से मनमुटाव के बाद सरकार का साथ छोड़कर अलग राह पर चल पड़े. जानकारों की नजर में उनके अक्सर दिए गए नासमझी भरे बयानों को भी भाजपा के हार का कारण माना जा रहा है. वही देश के अन्य राज्यों में खराब प्रदर्शन के बावजूद गोवा में कांग्रेस का प्रदर्शन 2012 के विधानसभा चुनावों से बेहतर रहा है. पिछले विधानसभा चुनाव में वह अपने सहयोगियों के साथ मिलकर मात्र नौ सीटें जीत सकी थी. 2014 के लोकसभा चुनाव में पार्टी को मात्र छह सीटों पर बढ़त मिली थी. लेकिन उसके प्रदर्शन में काफी सुधार आया और 17 सीटों के आंकड़े के साथ अब वह सबसे आगे खड़ी है. गोवा चुनाव में इस बार सबसे ज्यादा चर्चा किसी एक दल को मिली तो वह थी अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी. दिल्ली की सत्ता पर काबिज होने वाली पार्टी ‘आप’ से राजनीति क पंडितों को काफी उम्मीदें थीं. गोवा में उसके तेजी से फैलते दायरे की भी चर्चा हो रही थी. लेकिन पार्टी एक भी सीट जीत पाने में नाकाम रही. जानकारों के मुताबिक इससे साबित हो गया कि दिल्ली में उसके शानदार प्रदर्शन के पीछे अरविंद केजरीवाल जैसे दमदार चेहरे का निर्णायक योगदान था. पार्टी से मुख्यमंत्री पद का चेहरा बताए जा रहे एल्विस गोम्स भी चुनाव हार गए. पूरे राज्य में आप मात्र 6.3 फीसदी मत पाने में सफल रही. गोवा और मणिपुर में सरकार बनाने में पिछड़ने के बाद आनन्-फानन में कांग्रेस सुप्रीम कोर्ट तक जा पहुंची. हालांकि लोकतंत्र की दुहाई देने वाली कांग्रेस खुद भी इससे पहले कई बार ऐसा कर चुकी है. शनिवार को आए पांच राज्यों के फैसले में कांग्रेस को जहां पंजाब में पूर्ण बहुमत हासिल हुआ, वहीं गोवा और मणिपुर में सबसे ज्यादा सीट हासिल करने वाली पार्टी बनी. लेकिन कांग्रेस दोनों राज्यों में सरकार बनाने का दावा पेश करती, उससे पहले ही भाजपा अन्य दलों के साथ मिलकर सरकार बना चुकी. बहुमत न होने के बावजूद कांग्रेस को आपत्ति है कि दावा पेश करने का मौका उसे मिलना चाहिए था. इसी मुद्दे पर कांग्रेस याचिका लेकर सुप्रीम कोर्ट जा पहुंची, जहां उसे निराशा ही हाथ लगी. लेकिन जिसका विरोध खुद कांग्रेस कर रही है, कैसे पूर्व में इसी तरह उसने कई राज्यों में अपनी सरकार बनाई है.
जोड़तोड़ कर सरकार बनाने में कांग्रेस हमेशा अग्रणी रही है :- कर्नाटक में अप्रैल 2004 में विधानसभा चुनाव सम्पन्न हुआ था. 13 मई को मतगणना हुई और जो फैसला आया उसमें किसी पार्टी को बहुमत हासिल नहीं हुआ था. मतगणना के बाद भारतीय जनता पार्टी 79 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी जबकि कांग्रेस को 65 सीटें ही हासिल हुई. एचडी देवेगौड़ा की जनता दल (सेक्यूलर) ने 58 सीटों पर जीत हासिल की, तो वहीं जनता दल (यूनाइटेड) को 5 और अन्य को 17 सीटें हासिल हुईं. सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद भाजपा की जगह कांग्रेस और जनता दल (सेक्यूलर) ने गठबंधन कर अपना दावा पेश किया और सरकार बनाई. इस गठबंधन के मुख्यमंत्री कांग्रेस के धर्म सिंह को बनाया गया. ये सरकार राज्य की पहली गठबंधन सरकार थी. जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव सितंबर से अक्टूबर 2002 के बीच चार चरणों में सम्पन्न हुए. मतगणना के बाद जो फैसला आया, उसमें नेशनल कॉन्फ्रेंस को 28 सीटें, कांग्रेस को 20 और पीडीपी को 16 सीटें मिली थीं. सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद कांग्रेस और पीडीपी में गठबंधन हुआ. इसके बाद मुफ्ती मोहम्मद सईद पहले और फिर गठबंधन की शर्तों के मुताबिक गुलाम नबी आजाद प्रदेश के मुख्यमंत्री बने. दिल्ली विधानसभा चुनाव 2013 सबसे ताजा उदाहरण है. जहां भाजपा ने सबसे ज्यादा सीटें 31, आम आदमी पार्टी ने 28 और कांग्रेस ने 8 सीटें जीती थीं. लंबे राजनीतिक ड्रामे के बाद कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी को बाहर से समर्थन दिया. इस गठबंधन की सरकार 49 दिनों तक चली और केजरीवाल पहली बार दिल्ली के मुख्यमंत्री बने. झारखंड विधानसभा 2005 के चुनाव में 32 सीटों के साथ भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी, झारखंड मुक्ति मोर्चा को 12, कांग्रेस को 11, आरजेडी को 9 और जेडीयू को 8 सीटें मिलीं. जबकि अन्य को 9 सीटें. पहले शिबू सोरेन ने दूसरे नंबर पर होने के बावजूद सरकार बनाने का दावा पेश किया. लेकिन 10 दिन में ही उन्हें पद छोड़ना पड़ा. इसके बाद डेढ़ साल तक अर्जुन मुंडा मुख्यमंत्री बने रहे. अर्जुन मुंडा मुख्यमंत्री पद से हटे तो निर्दलीय मधु कोड़ा, जेएमएम के समर्थन से करीब पौने दो साल मुख्यमंत्री रहे. उसके बाद शिबू सोरेन ने कोड़ा से समर्थन वापस ले लिया और फिर मुख्यमंत्री बन गए. सोरेन 144 दिनों तक मुख्यमंत्री रहे.
हंगामा होते रहेंगे, इल्जाम लगते रहेंगे .....
गोवा और मणिपुर में कम बहुमत के बावजूद भाजपा ने दोनों राज्यों में अपनी सरकार गठन करने में सफल रही. इस तरह से जोड़-तोड़ कर बनाई गई सरकारों पर विपक्ष द्वारा हमेशा से ही सवाल उठाया जाता रहा है. ठीक वैसे ही जैसे कांग्रेस के ऐसे आचरण पर भाजपा उठाती रही थी. गोवा और मणिपुर में भाजपा और राज्यपालों के कदम कांग्रेस और दूसरे दलों को लोकतंत्र की हत्या नजर आ रही थी. जबकि सरकार बनाने को भाजपा संवैधानिक दायित्व का जामा ओढ़ाने में सफल रही. पहले की तरह ही सुप्रीम कोर्ट से संसद तक लड़ाई लड़ी गई. सत्ता की लड़ाई में कौन जीता, इससे अहम सवाल ये है कि हारा कौन है? विपक्ष, गोवा व मणिपुर के मतदाता या फिर हमारे कानून और परम्पराएं, जिनकी हम कसमे खाते है. इस तथ्य से कोई इनकार नहीं कर सकता कि गोवा में सत्तारूढ़ दल यानी भाजपा को मतदाताओं ने नकार दिया था. चालीस सदस्यीय विधानसभा में 21 सीटों वाली पार्टी 13 पर सिमट गई थी. लेकिन भाजपा फिर भी सरकार बना पाई, क्योंकि राज्य में राज्यपाल और केंद्र में सरकार भाजपा की है. देश में आजादी के बाद से कितने राज्यों में सरकारें भंग हुईं, अल्पमत वाले दलों ने सरकारें भी बनाईं लेकिन इस व्यवस्था में सुधार के लिए कोई ठोस तरीका आज भी दिखाई नहीं देता है. सरकारें बनाने का काम राज्यपाल के विवेक पर, तो विधानसभा के भीतर का मामला विधानसभाओं पर छोड़ दिया गया है. ऐसे में राज्यपाल तथा विधानसभा अध्यक्ष कई मौकों पर परम्पराओं को दरकिनार करते दिखते हैं और शायद लोकतंत्र में ये होता रहेगा, क्योंकि इस तरफ कोई सरकार ध्यान नहीं देती. कल कांग्रेस केंद्र में सत्तारूढ़ होगी तो वो भी फिर ये सब करेगी. सुप्रीम कोर्ट से लेकर संसद तक हंगामा होता रहेगा और खरीद-फरोक्त के इल्जाम लगते रहेगे.