यादों का जो मौसम आया लगता बड़ा सुहाना है
सांझ- सवेरे मेरे घर में उनका आना जाना है
पहली बार मिले क्या उनसे,हम उनके ही हो बैठे-
जैसे लगता मेरा उनका रिश्ता बड़ा पुराना है
कवि:- पं दिनेश्वर नाथ मिश्र
यादों का जो मौसम आया लगता बड़ा सुहाना है
सांझ- सवेरे मेरे घर में उनका आना जाना है
पहली बार मिले क्या उनसे,हम उनके ही हो बैठे-
जैसे लगता मेरा उनका रिश्ता बड़ा पुराना है
कवि:- पं दिनेश्वर नाथ मिश्र
हाँजी, मैं ही हूँ वो जिसके दिमाग की उपज है ये शब्दनगरी| बाकी आप खुद समझदार हैं, ज़्यादा तारीफ नहीं करूँगा अपनी :)