लखनऊ : लघु एवं सीमांत किसानों के पेट का निवाला कैसे चाट गए यूपी सरकार के नौकरशाह जिसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि सूबे के जिले कानपुर देहात में किसानों को ऐसे हाईब्रिड बीज मुहैया कराये गए जिनका सीजन ही नहीं था. जिसके चलते कागजों पर मुहैया कराये गए इस बीज वितरण के नाम पर सूबे के अफसर करोड़ों रुपये डकार गए. इस घपले का खुलासा करते हुए जांच अधिकारी ने अपनी तकनीकी रिपोर्ट भी केंद्र और यूपी सरकार को दी. लेकिन सत्ता के गलियारों में ऊँची पहुँच रखने वाले नौकरशाह को निलंबित करना तो दूर उनके खिलाफ कार्यवाही तक करने का साहस न तो प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और न ही मायावती पायीं . इसी के चलते वो निडर होकर घपले करने में माहिर हो गए.
बिना निविदा के आवंटित कर दिया कार्य
और तो और सरकार की तरफ से कोई कार्यवाही न होने के चलते नौकरशाह इस कदर हावी हो गयी कि बिना निविदा के कानपुर देहात में तैनात सीडीओ ने अपनी चहेती संस्था आदिवासी महिला बालोत्थान समिति को प्रचार प्रसार का कार्य सारे नियम कानून ताक पर रखते हुए आवंटित कर दिया. गौरतलब है कि यह कार्य उक्त संस्था को उस समय आवंटित किया गया, जिस समय सीडीओ के पास डीएम कानपुर का भी चार्ज था. हालाँकि मिर्जापुर के सीडीओ रहते हुए जिले की इस संस्था को उन्होंने जिले में ये कार्य आवंटित किया था. लेकिन जब उनके पास कानपुर डीएम का भी अतिरिक्त चार्ज हाथ में आया तो उन्होंने अपनी इस चहेती संस्था को वहां भी बुलाकर उक्त कार्य आवंटित कर दिया. राष्ट्रीय रोजगार गारंटी परिषद् के अध्यक्ष डॉ सीपी जोशी और ग्राम्य विकास मंत्रालय भारत सरकार के सयुंक्त सचिव अमित शर्मा को जांच अधिकारी विनोद शंकर चौबे और परिषद् के सदस्य संजय दीक्षित द्वारा भेजी गयी अपनी इस रिपोर्ट में इस रिपोर्ट में इस बात का खुलासा किया गया है.
जांच अधिकारी ने किया रिपोर्ट में खुलासा
भारत सरकार को भेजी गयी इस रिपोर्ट में जांच कर रहे अधिकारी ने ये भी कहा है कि आदर्श तालाब योजना के तहत जलाशय के किनारे-किनारे जो बेंचे सीमेंट कि ढाल के बनायीं जानी थीं, उनके स्थान पर लोहे कि बेंचे लगा दी गयीं. जो इस योजना के मानकों कि खुलेआम धज्जियाँ उड़ाती हुई नजर आ रही हैं.आपको बता दें कि तालाब के किनारे सीमेंट कि बेंचें इसलिए ढाली जानी थीं ताकि उसके एवज में दिहाड़ी मजदूरों को उनका मानदेय दिया जाता है. इसके साथ ही तालाब के किनारे बाउंड्रीवाल का निर्माण भी कराया जाना था. मजेदार बात है कि जिन बेंचों कि खरीद की गयी, उनकी भी निविदा तक प्रकाशित नहीं की गयी. यही नहीं खण्ड विकास अधिकारियों ने दस ब्लाकों में से आठ ब्लाकों की तकरीबन 125 ग्राम पंचायतों में इस तरह के सामानों की खरीद फरोख्त की. इन जिलों में ललितपुर, औरैया और कानपुर देहात के ठेकेदारों द्वारा सप्लाई किया गया था.
लुट गए लघु सीमांत किसान
इसी तरह 12 , 500 इंदिरा आवास के लाभार्थियों, पट्टाधारकों, एससी/ एसटी और बीपीएल लाभार्थियों की निजी भूमि पर खेती कराये जाने के लिए हाइब्रिड बीज मुहिया कराये जाने थे. लेकिन अधिकारियों ने अपनी जेबें गरम करने के लिए उन लघु और सीमांत किसानों को बीज मुहैया करा दिए, जिनके पास खेती करने के लिए अपनी जमीन तक नहीं थी.ध्यान देने की बात तो ये है कि जिन किसानों को सरकार की इस योजन के तहत बीज दिए गए. उन साग सब्जियों का मौसम ही नहीं चल रहा था. नतीजतन खेत में टमाटर, बैगन, भिन्डी, धनिया और मिर्च उगाने वाले किसान किराये पर जमीन लेकर और कर्जदार हो गए. बताया जाता है कि हाइब्रिड बीज देने के नाम दुगने पैसे वसूल किये गए. यही नहीं कानपुर देहात जनपद में एमआईएस फीडिंग के लिए नामित संस्था को बदलकर अधिक दामों पर मेसर्स जेपी इंटरप्राइजेज ( झारखण्ड ) को कार्य दिया गया है. वह भी नियमों के विरुद्ध कराया गया है. इसके अलावा कन्वर्जन्स के नाम पर नरेगा की धनराशि अन्य विभागों के लिए उत्तर प्रदेश में चारागाह साबित हो रही है. ----जारी