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चलो कुछ लिखा जाए

5 अप्रैल 2017

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हालांकि मैं कोई प्रोफेशनल लेख क या कवि तो नहीं, पर आपकी तरह लिखने का शौक स्कूल के समय से रखता हूँ। और आज भी कभी कभी बस यूं ही लिख लिया करता हूँ। करीब 10 - 12 साल पहले मैंने लिखना शुरू किया था, शुरुआत में कविता यें, शायरी, छोटे मोटे लेख इत्यादि लिखा करता था, पर मेरा दायरा सीमित था। मैं लिखता, और मेरे कुछ दोस्त उसे पढ़ते, झूठी - सच्ची तारीफ़ें भी करते। और मैं उसी में खुश रहता। वैसे तो दोस्तों ने कई बार कहा कि महेश , तू यार अपनी किताब पब्लिश करवा ले, पर स्कूल - कॉलेज में तंगहाल में किताब पब्लिश करवाना थोड़ा मुश्किल था, मैंने सोचा थोड़ा खुद को परिपक्व करना जरूरी है, अभी थोड़ा और समय जरूरी है। फिर क्या था, कॉलेज खत्म और मैं लग गया सरकारी नौकरी पाने की भाग दौड़ में। जैसा की सभी करते हैं। सोचा, कि नौकरी पा के पैसे कमा के किताब प्रकाशित करवाना ही सही होगा। तो भाई ! नौकरी पाने के बाद, ज़िन्दगी की दौड़ धुप में मैं अपने इस हुनर को जैसे भुलाता चला गया. पर एक कसक सी थी दिल में कहीं के लेखन की दुनिया में अपना नाम करना है तो भाई करना ही है. मैं ब्लॉग्गिंग करता था. वो मुझे बेहद पसंद थी, क्योंकि जब कोई आपको पढता है, तो आपको अंदर से ख़ुशी मिलती है. और उसी ख़ुशी की तलाश में एक बार फिर, मैंने ब्लॉगिंग करने का फैसला किया है. इंटरनेट पर कुछ सर्च कर रहा था कि शब्दनगरी दिखाई दी. सोचा इसमें कुछ लिखा जाए. पर मुझे याद ही न था कि शब्दनगरी में मेरा पहले से ही अकॉउंट बना हुआ था. तो बस लिखना शुरू कर दिया. और लो जी, इतना सारा लिख डाला. वैसे आज बहुत कुछ किया मैंने, अपने फेसबुक पेज को रिडिजाइन किया, एक पोस्ट अपने ब्लॉग कुछ दिल से में लिखा। और मेरा पहला लेख शब्दनागरी में भी लिखा।


वैसे यदि आप मुझे पढ़ना चाहते हैं तो कृपया कर मेरे ब्लॉग - माही पर मुझे पढ़ सकते हैं, और मेरे फेसबुक पेज को जरूर लाइक करें.

अपने बारे में... मैं अगली बार बताऊंगा,..


तब तक के लिए मेरा सलाम स्वीकार करें.


आपका


महेश बारमाटे "माही"

महेश बारमाटे की अन्य किताबें

रेणु

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5 अप्रैल 2017
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पत्थर की हवेली..

14 अप्रैल 2017
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पत्थरों पे बनी कारीगरीदेख बीता जमाना याद आयावो लकड़ी की चौखटेंऔर भारी दरवाजों पे लटकीलोहे की मोटी सांकरेऔरमोटे मोटे स्तंभों पे जमी इमारतेंजैसे आवाज दे रही होंपत्थरों से बनी चिलमनेंके सुन ले ए मुसाफिर!मेरे दर पे गुजरी आहटें।कभी गूंजा करती थीचंहु ओर किलकारी सीआंगन में सजती थीनित नए फूलों की फुलवारी सीख

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उम्मीद की किरण

18 अप्रैल 2017
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उम्मीद की एक किरणहर बारदिल के दरवाजे परजाने किस झरोखे सेकुछ यूँ झांकती हैके कुछ पल के लिए ही सहीचेहरे पे ख़ुशी की झलकसाफ दिखाई देती है,मन खुश होता है,दिल खुश होता है,फिर जाने कैसेचिंताओं की परछाईउस किरण के सामनेआ जाती हैसब दूर अँधेरा छा जाता हैदिल डूब जाता है।धीरे धीरे लड़खड़ाती सीफिर गुम हो जाती हैवो

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