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विश्व रचनादिवस त्मनवचार कता

21 अप्रैल 2017

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#विश्वरचनात्मकएवंनवाचारदिवस आज पूरा विश्व 21 अप्रेल को विश्व रचनात्मक एवम नवाचार दिवस के रूप में मनाता है । आज दुनिया नई सोच नई खोज की ओर अग्रसर है तक हम मैकाले की मानशिक गुलामी को सीने से लगा कर ढो रहे है । आजादी 7 दशक बाद भी मैकाले की मानशिक गुलामी से आजादी नहीं मिली है भारत को। मैकाले की उपपनिवेशिक शिक्षा पद्धति के बल पर भारत 21वी सदी की चुनौतियों का सामना नहीं कर सकता है । प्रमाण तथ्य सहित शोध (इनोवेशन) के मामले में विश्व के 128 देशों में भारत का स्थान 66वा है । 2015 में दाखिल पेटेंट चीन - मातृभाषा चायनीज राष्ट्रभाषा चायनीज पेटेंट - 1101864 जापान मातृभाषा जापानी , राष्ट्रभाषा जापानी , पेटेंट - 318721 दैक्षिण कोरिया मातृ भाषा कोरियन राष्ट्रभाषा कोरियन - 213694 जर्मनी मातृभाषा - जर्मन राष्ट्रभाषा - जर्मन - 66893 भारत मातृ भाषा हिंदी शिक्षा की भाषा अंग्रेजी - 45858 स्त्रोत अंतर्राष्ट्रीय शोध सूचकांक 2016 वर्तमान में भारत में 700 से ज्यादा विश्वविधालय है लेकिन शीर्ष 100 में आज एक भी नहीं है आई आई एस सी बंगलौर विश्व में स्थान - 152 भारतीय प्रौधौगिकी संस्थान नई दिल्ली - 185 भारतीय प्रौधौगिकी संस्थान मुम्बई - 219 भारतीय प्रौधौगिकी संस्थान - 249 स्त्रोत विश्व विधालय सूचकांक अपनी मातृ भाषा को राष्ट्र भाषा बनाने वाले ये देश आज शीर्ष पर है ये वि ज्ञान एवं तकनीकी या आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर है अब आप लोग स्वंय आकलन कीजिये क्या विज्ञान और तकनिकी के लिए मातृ भाषा जरूरी है या गुलामी की भाषा अंग्रेजी.? हर एक समस्या का समाधान होता है बशर्ते समस्या के मूलकारण तक पहुचना आवश्यक होता है हमारे ऋषियो ने की थी जो खोज आज हम उसे क्यों मानने लगे बोझ अंग्रेजो ने सपना देखा था भारत को अंग्रेजियत में रंगने का उनका वह सपना 7 लाख से ज्यादा शहीदों के सपनो को तोड़कर साकार हो रहा है । आज हर गाँव नगर गली चौक चौराहो पर अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा देने वाले शिक्षा के नाम पर व्यापार िक केंद्र खुल गए है ।जिसमे न्यूटन के बारे में तो जरूर बताया जाता है परंतु आर्यभट्ट कणाद और सुश्रुत को भुलाया जाता है। अंग्रेजो से पहले भारत की शिक्षा व्यवस्था पर महात्मा गांधी जी को चुनौती देने वाले जान फिलिप को ये आभास भी नहीं था की धर्मपाल जी जैसा इतिहासकार जन्होंने फिलिप की चुनौती को स्वीकार कर भारत ही नहीं विश्व को भारतीय गुरुकुलीय शिक्षा से अवगत करवाया । विलियम एडम के द्वारा किया गया सर्वेक्षण यह स्पष्ठ करता है की सन् 1830 -1840 के वर्षो में बंगाल बिहार के गाँवो में लगभग एक लाख गुरुकुल थे । मद्रास प्रेसिडेंसी के लिए टोमस मुनरो ने बताया की यहाँ प्रत्येक गावँ में एक गुरुकुल था ।इसी प्रकार बॉम्बे प्रेसीडेन्सी के जी एल . एनटरगाट नामक वरिष्ठ अधिकारी ने लिखा है छोटे बड़े सभी गाँवो में कम से कम एक गुरुकुल था बड़े गावँ में तो एक से अधिक गुरुकुल थे । श्री धर्मपाल जी ने 18 वी शताब्दी में इस भारतीय शिक्षा को रमणीय वृक्ष कहा था । इसीको गांधी जी ने इंग्लैंड में जाकर अंग्रेजो को चुनौती दी थी की आप ने हमारे इस रमणीय वृक्ष की जड़े काट दी और हमारे शिक्षा के स्वरुप को बिगाड़ दिया । मैकाले ने 1835 में जो लिखा था हमे एक ऐसा वर्ग तैयार करना है जिसका रक्त रूप रंग देखने में भारतीय हो परंतु उनकी अक्ल आचरण व्यवहार और शैली अंग्रेजियत में रंगी हो । आज मैकाले का सपना वर्तमान बन कर हमारे आँखों के सामने घटित हो रहा है परंतु आधुनिकता अंग्रेजियत की काली पट्टी जो हमारे आँखों पर ऐसी बंधी है जिससे दूर दूर तक भारतीयता नजर ही नहीं आती । मैकाले ने ऐसा हीनता का भाव भरा जिसमे हम अपने महापुरुषो ,ज्ञानवेक्ताओ और ऋषियो वैज्ञानिकों की खोज को भूल गए । हम न्यूटन को तो जानते है परंतु आर्यभट्ट को भूल गए । हम नहीं जानना चाहते की कोपरनिकस से बहुत पहले हमारे देश में सूर्य के केंद्र की व्यवस्था को हमने जान लिया था । बौधायन को कॉपी पेस्ट करने वाले पाइथागोरस को हम पूजने लगे । शल्य चिकित्सा के जनक महर्षि शुश्रुत अणु के अविष्कारक महर्षि कणाद के गौरवशाली इतिहास हमको नहीं पढ़ाया गया कारण मात्र केवल एक भारतीय युवा मानशिक गुलामी में डूबे रहे और जो प्राचीन है उसको हीन माने और जो अंग्रेजियत है उसे आधुनिक समझे । जाना था हमको पूरब को और राह पकड़ी पश्चिम की ये जानते हुए की सूरज भी पश्चिम में जाकर अस्त हो जाता है । अब ये तय करना ही होगा हमे कैसा भारत बनाना एक वोर इण्डिया है जहा भय भूख गरीबी भ्रष्टाचार है और दूसरी ओर स्वर्णिम भारत है जिसका सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे संतु निरामया का इतिहास है । अंग्रेजो के विदा होने के बाद भी अंग्रेजियत को जिस शर्मनाक तरीके से पोसा जा रहा है उसने हमारी नई पीढ़ी को अपनी चिर युवा संस्कृति से सदा दूर करने का प्रयास किया है । अतः जिस प्रकार किसान के खेत में खर पतवार उग जाते है और नई फसल लेने के लिए किसान खेत की जुताई करता है उसी प्रकार अब विदेशी भाषा भूषा और शिक्षा व्यवस्था को उतार फेकने का संकल्प लेना ही होगा । प्रतिभा पलायन से धन कमाने की बजाय देश मे आज पुनः नालन्दा तक्षिला जैसी स्वदेशी शिक्षा व्यवस्था स्थापित करने की आवश्यकता है जिसके आधार पर अपनी रचनात्मकता और नवचार से हम भारतीय पूरे विश्व को जीवन जरूरी प्रकति प्रेमी नवाचार से धरती को खुशहाल बनाने में सफल हो । *विश्व रचनात्मक एवं नवाचार दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं


स्वदेशी रक्षक

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