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बुझ गई लाल बत्ती

25 अप्रैल 2017

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आम से खास बनने की पहचान थी लाल बत्ती विवेक रंजन श्रीवास्तव ए १ , विद्युत मण्डल कालोनी , शिला कुन्ज जबलपुर मो ९४२५८०६२५२ , vivek1959@yahoo.co.in बाअदब बा मुलाहिजा होशियार , बादशाह सलामत पधार रहे हैं ... कुछ ऐसा ही उद्घोष करती थीं मंत्रियो , अफसरो की गाड़ियों की लाल बत्तियां . दूर से लाल बत्तियों के काफिले को देखते ही चौराहे पर खड़ा सिपाही बाकी ट्रेफिक को रोककर लालबत्ती वाली गाड़ियो को सैल्यूट करता हुआ धड़धड़ाते जाने देता था . लाल बत्तियां आम से खास बनने की पहचान थीं . चुनाव के पहले और चुनाव के बाद लाल बत्ती ही जीतने वाले और हारने वाले के बीच अंतर बताती थीं . पर जाने क्या सूझी उनको कि लाल बत्ती ही बुझा दी यकायक . मुझे लगता है कि यूं लाल बत्ती का विरोध हमारी संस्कृति पर कुठाराघात है . हम सब ठहरे देवी भक्त . मंदिर में दूर से ही उंचाई पर फहराती लाल ध्वजा देखकर भक्तो को जिस तरह माँ का आशीष मिल जाता है कुछ उसी तरह लाल बत्ती की सायरन बजाती गाड़ियो के काफिले को देखकर हमारी बेदम जनता में भी जान आ जाती थी और भीड़ , भरी दोपहर तक में लाल बत्ती वाली गाड़ी से उतरते श्वेत वस्त्रावृत नेता से अपनी पीड़ा कहकर या ज्ञापन सौंपकर , आम जनता राहत महसूस कर पाती थी . अब जब लाल बत्ती का ही रसूख न रहा तो भला बिना लाल बत्ती का नेता जनता के हित में शोषण करने वालो को क्या बत्ती दे सकेगा ? लाल बत्ती से सजी चमचमाती कार पर सवार नेता , मंत्री जब किसी मंदिर भी जाते , तो उनके लिये आम लोगों की भीड़ से अलग वी आई पी प्रवेश दिया जाता है , पंडित जी उनसे विशिष्ट पूजा करवाते हैं , खास प्रसाद देते हैं . जब ये लाल बत्ती वाले खास लोग कही किसी शाप में पहुंचते हैं या किसी आयोजन में जाते हैं तो इन्हें घेरे हुये सुरक्षा कर्मी और प्रोटोकाल आफीसर्स देखकर ही सब समझ जाते हैं कि कुछ विशिष्ट है . दुनिया भर में विवाह में मांग में लाल सिोंदूर भरने का रिवाज केवल हमारी ही संस्कृति में है , शायद इसलिये कि लाल सिंदूर से भरी मांग वाली लड़की में किसी की कुलवधू होने की गरिमा आ जाती है . अब जब मंत्री जी की गाड़ी से लाल बत्ती ही उतर गई तो उनसे किसी गरिमा की अपेक्षा किस मुंह से करेंगे हम ? वी आई पी गाड़ियो से लाल बत्ती क्या उतरी मेरी पत्नी का तो सपना ही टूट गया .गाड़ियो से लालबत्ती का उतर जाना मेरी पत्नी के गले नही उतर पा रहा है .शादी होते ही मेरी पत्नी ने मुझे आई ए एस बनाने की मुहिम चलाई थी , और इसके लिये वह टाटा मैग्राहिल्स से प्रकाशित एक प्राईमर बुक भी खरीद लाई थी , उसका कहना था कि अपने पिता और भाई की लाल बत्ती वाली गाड़ियो में घूमने के कारण उसे उनका महत्व मालूम है ,जब किसी के पोर्च में तेज गति से पहुंचती गाड़ी को ब्रेक मारकर रोका जाता है और फिर जब कार का दरवाजा कोई संतरी खोल कर आपको उतारता है तो जो सुख मिलता है वह मंहगी मर्सडीज में भी स्वयं ड्राइव कर पार्किंग में खुद गाड़ी लगाकर उतरकर आने में नहीं आता . मूढ़मति मैं अपनी पत्नी को समझाता ही रह गया कि जो मजा आम बने रहने में है वह खास बनने में नहीं ? हमारा संविधान हम सब को बराबरी का अधिकार देता हैं . खैर ! जब वह मेरी ओर से हताश हो गई तो उसने अपने सपने सच करने के लिये अपने बच्चो को लाल बत्ती वाले अधिकारी बनाने की पुरजोर कोशिश की . प्राइमरी स्कूल से ही हर महीने कम्पटीशन सक्सेज रिव्यू खरीद कर बच्चो पर लाल बत्ती का भूत चढ़ाने की पत्नी की सारी कोशिश नाकाम हो गई क्योकि बच्चे इंफ्रा रेड वी आई पी बन गये हैं . उन्हें देश ही छोटा लगने लगा है . वे वर्ल्ड सिटिजन बन चुके हैं .उन्हें आई ए एस बड़े बौने लगते हैं . एक ही समय में हमारा परिवार कई टाइम जोन में बना रहता है . बच्चे उस कल्चर को एप्रीसियेट करते हैं जहां उनका टैक्सी ड्राइवर भी बराबरी से बैठकर ब्रेकफास्ट करता है . बच्चो को जब कारो से लालबत्ती उतरने की घटना पता चली तो उन्होने कुछ सवाल किये . क्या लाल बत्ती उतरने से जनता और मंत्री जी के बीच का घेरा टूट जायेगा ? क्या मंत्री जी का वी वी आई पी दर्जा समाप्त हो जायेगा ? बच्चो के सवाल मेरे लिये यक्ष प्रश्न हैं . मेरे लिये ही क्या , ये सवाल तो स्वयं उनके लिये भी अनुत्तरित सवाल ही हैं जिन्होने लालबत्ती हटवाने की घोषणायें की हैं ! आपको इन सवालो के जबाब मिल जाये तो जरूर बताईयेगा . जो भी हो कभी समाचारो की सुर्खियो में जनता के सामने बने रहने में लाल बत्ती मददगार होती थी तो अब जाते जाते भी लालबत्तियो ने अपना फर्ज पूरी ईमानदारी से निभाया है ,सबकी लाल बत्तियां बंद , बुझ हो रही हैं . लाल बत्ती हटने के समाचारो के कारण भी इन दिनो सारे वी आई पी सुर्खियो में हैं . vivek ranjan shrivastava

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