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जाँबाज़ सैनिकों के लिए सोचना होगा।

26 अप्रैल 2017

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परिवार से दूर। बच्चों से दूर । पत्नी से दूर । मां से दूर । हर वक्त मौत के साए में जिंदगी गुजारते हमारे सैनिक ।

शहीद हो गए। शहीदी के बाद। फूल , माला , निंदा , वायदे । संवेदना के कुछ शब्द। बहूत कुछ। फिर वही बात। सब

बक्से में बंद। उनको भूला देना।


हम आजादी का आनंद लेते हैं। हम क्या करते हैं उनके लिए ? कुछ नहीं। समाज , सियासत क्या देता है? सम्मान

भी नहीं देता। अच्छा खाना भी नहीं देता। खाना मांगने पर बर्खास्तगी मिलती है। क्या यह शर्मनाक नहीं है ?

आश्चर्यजनक नहीं है ? बिल्कुल है। फिर हम चुप क्यों हैं?



शहादत के बाद भी सियासत। तुष्टिकरण का रंग। स्वार्थ। आज हमारे सैनिक शांत हैं। उनके सम्मान को चोट

पहूंचायी गयी। बार – बार , लगातार। अब गुस्सा पनप रहा है। अंदर ही अंदर। सैनिक की शहादत समर्पण है। मुल्क

के प्रति। राजनीति उसकी किमत लगाती है। सुन लो नेताओं। तुम्हारी औकात नहीं। शहादत की किमत लगाने

की।


आखिर सैनिकों की कुर्बानी कब तक ? जो पत्नी विधवा बनी उसका जिम्मेवार कौन ? अनाथ हुए बच्चों का

जिम्मेदार कौन ? क्या आपकी संवेदना सजा देगी। उन घरों को फिर से ? क्या आपके अनुदान से बच्चे के चेहरे पर

हंसी आ जाएगी ?क्या बुजुर्ग माँ बाप का सहारा आप ला सकते हैं ? नहीं।


बहूत तकलीफ हो रही है। खून ख़ौल रहा है। रोकिए इस हालात को। कभी सेना के कैम्प पर हमला। उग्रवादियों का

हमला। दुश्मन मुल्क का हमला। हर जगह जवान मारे गए। तेरी ये राजनीति किस दिन के लिए है? तेरी नीति

किस दिन के लिए है? तेरी योजना किस दिन के लिए है? अब तो हद हो गयी। विधवा बनने का सिलसिला रुक ही

नहीं रहा । बर्दाश्त नहीं हो रहा। अब बस।


अब हमें सोचना होगा। आपको सोचना होगा। सबको सोचना होगा। शहादत का कर्ज उतारना होगा। हम नागरिक

सैनिकों को सम्मान दें। इस सियासत को सबक सिखाएं । शहादत पर राजनीति न होने दें। सैनिकों को गुमनामी

में न खोने दें। आइये संकल्पित हो। अपने देश के लिए। अपने तिरंगे के लिए। अपने जाँबाज़ सैनिकों के लिए।


जय हिन्द।

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बहुत हृदयविदारक है जांबाज सैनिकों का छद्म युद्ध में शहीद हो जाना | एक युवा के साथ उसका परिवार भी आधा मर जाता है | सरकार दावे तो बहुत करती है पर सुरक्षा की सारी जिम्मेवारी इन सैनिकों के सर लाड कर कोई भी ठोस कदम उठा पाने में समर्थ नहीं दिख रही शायद इस लिए की इतिहास गवाह है किसी छोटे -- बड़े नेता का कोई बेटा ऐसे हमलों में शहीद नहीं हुआ | दूसरे की पीड़ा कोई कहाँ जान सकता है | आम निम्न वर्ग के युवा सैनिक बन कर फुले नहीं समाते -- पर आधी अधूरी सुरक्षा के बीच उन्हें हर दिन मौत से दो -चार होना पड़ता है जहाँ ऐसे छद्म युद्ध में अप्रत्यासित मौत उनके अनमोल जीवन की समस्त संभावनाएं तो समाप्त करती ही है -- उनके परिवार के सपनों को भी ग्रहण लगा देती है | इनके लिए सपचे सरकार वो भी अति शीघ्र -- अन्यथा ना जाने कितने और अनमोल जीवन इस कतार में होंगे ! निशब्द हूँ ! शहीद सैनिकों को मेरा शत शत नमन --- ! !

26 अप्रैल 2017

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शब्द हो गए दफन , आपकी शहादत को क्या लिखूं ?

25 अप्रैल 2017
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आक्रोश से फाड़ दूँ पन्नो को,या गुस्सा उतारूँ सड़कों पर ?अपने खौलते खून को देखूँ ,या निंदा देखूँ टीवी पर ?मैं माँ - बहन का दर्द लिखूँ ,या पत्नी की आँखें सर्द लिखूँ ?मुल्क के हालात लिखूँ ,या अपने जज्बात लिखूँ ?हर किसी का जोश लिखूँ ,या नेताओ

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जाँबाज़ सैनिकों के लिए सोचना होगा।

26 अप्रैल 2017
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परिवार से दूर। बच्चों से दूर । पत्नी से दूर । मां से दूर । हर वक्त मौत के साए में जिंदगी गुजारते हमारे सैनिक ।शहीद हो गए। शहीदी के बाद। फूल , माला , निंदा , वायदे । संवेदना के कुछ शब्द। बहूत कुछ। फिर वही बात। सबबक्से में बंद। उनको भूला देना।हम आजादी का आनंद लेते हैं।

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