1917 की रुसी बोलशैविक क्रांति की सफलता के
उपरांत प्रजातांत्रिक केंद्रवाद की
कम्युनिस्ट विचारधारा समाज के सामने आई। रशियन सोशल-डेमोक्रेटिक लेबर पार्टी
की दिनाँक 26 जुलाई से 03 अगस्त 2017 तक आयोजित छठी कांग्रेस में प्रजातांत्रिक
केंद्रवाद की व्याख्या करते हुए कहा गया है कि पार्टी की नीचे से ऊपर तक निर्देश
देने वाली संस्थाएं चुनी हुई होंगीं, सभी संस्थाएं पार्टी के अपने अपने संगठनो को
समय समय पर अपनी गतिविधियों की जानकारी देती रहेंगी, पार्टी में सख्त अनुशासन होगा
और अल्पसंख्क बहुसंख्यक का अधीनस्थ होगा, सर्वोच्च संस्थाओं के निर्णय निचली
संस्थाओं व पार्टी सदस्यों पर पूर्ण रुपेण बाद्यकारी होंगे। प्रजातांत्रिक
केंद्रवादिओं का मानना है कि ग्रुपईजम को पनपने नहीं देना चाहिए। साम्यवाद के जन्मदाता
कार्ल मार्क्स जर्मन के थे मगर साम्यवाद की शुरुआत सोवियत रुस से हुई। बाद में
चाहे कितने भी देशों में साम्यवाद आया हो मगर सत्ता की चाबी एक ही पार्टी के हाथ
में रही तथा उसकी ही तानाशाही चलती रही। जितना बड़ा पार्टी पद उतना ही बड़ा तानाशाह।
80 का दशक खत्म होते-होते अमेरीका के नेतृत्व में नाटो ने यूएसएसआर को विघटित कर
दिया। शीतयुद्ध के उसके साथी एक के बाद उसका साथ छोड़ते चले गए। क्योंकि तब तक चीन
एक अलग राह ले चुका था इसलिए नाटो देश वहां सफल नहीं हो पाए। मगर चीनी सेना की ओर
से तिमानमिन चौंक में की गईं अपने नागरिकों की हत्याएं एक ही पार्टी के तानाशाही
शासन के कारण चीन को अधिक देर तक प्रभावित नहीं कर पाईं। एक ओर तो कंम्युनिस्ट
देशों में एक ही पार्टी की तानाशाही सरकारें चलती है वहीं दूसरी ओर विश्व के अनेक देशों
में राष्ट्रपति पद्धति की प्रजातांत्रिक सरकारें चलती हैं। संयुक्त राज्य
अमेरीका(यूएसए) एवं फ्राँस इस प्रजातांत्रिक पद्धति के प्रमुख उदाहरण हैं। संयुक्त
राष्ट्रसंघ के पाँच स्थाई सदस्य देशों में इनका नाम आता है। मगर फ्रांस में यह प्रजातांत्रिक
पद्धति आरंभ से नहीं थी। किसी समय भारत की ही तरह वहां भी बहुदलीय प्रजातंत्र था।
अनेक दल होने के परिणामस्वरुप सरकारें अस्थिर रहती थीं जिससे देश का विकास बाधित
होता था। क्योंकि देश के विकास के लिए मजबूत केंद्र का होना आवश्यक है इसलिए
फ्रांस में समय रहते अर्धराष्ट्रपति पद्धति वाली प्रजातांत्रिक सरकार को अपनाया
गया और बहुदलीय पद्धति से होने वाले नुकसान काबू में आ गए। अब बारी आती है यूएसए
की। वहां राष्ट्रपति अगर ताकतवर है तो कांग्रेस के ऊपरी सदन सेनेट व वहां की
सुप्रीम कोर्ट के माध्यम से उस पर विभिन्न प्रकार के चैकस रखकर चेकस एवं बेलेंस
पद्धति को अपनाया गया है जिससे संतुलन बना रहता है।
भारत को 1947 में अंग्रेजों के चंगुल से आजादी
मिली थी। क्योंकि कांग्रेस के नेतृत्व में स्वतंत्रता आंदोलन लड़ा गया था इसलिए
1977 तक भारत में कांग्रेस का एकछत्र राज रहा। 1977 के लोकसभा चुनाव में प्रथम बार
संयुक्त विपक्ष ने भाग लिया और कांग्रेस हार गई। मगर खंड खंड विपक्षी एकता ज्यादा
दिनो तक न चलकर जल्द ही बिखर गई। विपक्षी एकता ऐसी बिखरी कि उसी का शिकार होकर आज
कांग्रेस भी केंद्र की सत्ता से बाहर है। वर्तमान में केंद्र सरकार चला रहे
राजनैतिक दल भाजपा की खुली नीति है कि भारत के प्रत्येक विपक्षी दल को समाप्त कर
भाजपा की तानाशाह सरकार कायम रखी जाए। भाजपा का दावा है कि वह चीनी कम्युनिस्ट
पार्टी को पछाड़कर सदस्यता के लिहाज से विश्व की सबसे बड़ी पार्टी बन चुकी है।
कुकरमुत्ते की तरह उबर रहे राजनैतिक दलों के नेताओं की आंखें प्रधानमंत्री के पद से
नीचे किसी पद पर टिकने को तैयार नहीं हैं। अधिकतर दलों में तो एक ही नेता की
तानाशाही चलती है। सत्ता का संघर्ष जारी है मगर आम नागरिक बेहाल है। देश के
वर्तमान प्रधानमंत्री भी यह जानते हैं कि विपक्ष बिखरा हुआ है इसलिए वे ग्राम
पंचायत से लेकर देश के राष्ट्रपति तक के चुनाव को मोदी बनाम अन्य प्रचारित कर देते
हैं। विपक्ष चिल्लाता रहता है और सरकार लोकलुभावन व अहितकारी भ्रमजाल के सहारे
सत्ता पर अपना तानाशाही नजरिया थोप रही है। इस काम में अनेक संस्थाएं (प्रमुखत: बिकाऊ मीडिया) सरकार की मदद करने में लगी हैं व
देश में बेरोजगारी व भूखमरी बढ़ाने में सहयोग कर रही हैं। देश में जब तक कांग्रेस
का एकछत्र राज था लगभग उसी समान अवधि में विश्व के भारत विरोधियों की संख्या में दिन
दोगुनी रात चौगुनी बढ़ौतरी होती रही। वर्तमान में लगभग पूरा का पूरा पश्चिम जगत
दिवालिया होने की कगार पर है तथा वह इस स्थिति में नहीं कि वह पाकिस्तान जैसे भारत
के पारंपरिक दुश्मनो को पोषित कर सके। मगर भारत के तथाकथित ईमानदार नीतिनिर्धारक
इस स्थिति का लाभ उठाने की बजाए उसे भारतीय संपदा से पोषित कर रहे हैं और निजी लाभ
के लिए इसे देशभक्ति का नाम दे रहे हैं। आम भाषा में इसे सांप को दूध पिलाना कहते
हैं। भारत की आम जनता जाने अनजाने इस नीति का समर्थन करके पाप की भागीदार बन रही
है तथा अपने पाँव पर कुलहाड़ी मारने का काम कर रही है। इसी का लाभ उठाकर सरकार
चलाने वाली पार्टी प्रजातांत्रिक केंद्रवाद की ओर बढ़ रही है जोकि निश्चित तौर पर
भारतीय जनता के लिए अहितकारी है। इसलिए भारतीय जनता के लिए वर्तमान समय में एक
निर्णय लेना आवश्यक है कि वह या तो क्षेत्रीय क्षत्रपों का सफाया करके इंग्लैंड
अमेरीका(यूएसए) की तर्ज पर दो दलीय राजनैतिक प्रणाली को चरित्रार्थ करे। ऐसा नहीं
हो पाने की स्थिति में राजनैतिक दलों को इतना मजबूर करदे कि वे स्वयं ही भारत में
राष्ट्रपति प्रजातांत्रिक सरकार पद्धति को अपनाने को विवश हो जाएं।