काश, मेरी भी माँ होती! मैं उसे अपनी माँ बुलाता।
प्रेम जताता, प्यार लुटाता,
चरण दबाता, हृदय लगाता,
जब कहती मुझे बेटा अपना, जीवन शायद सफल हो जाता,
काश, मेरी भी माँ होती! मैं उसे अपनी माँ बुलाता।
मैं अनाथ बिन माँ के भटका, किसको अपनी मात् बताता,
जब डर लगता इस दुनियाँ का, किसका दामन मुझे छुपाता।
नींद कभी जो मुझे न आती, लोरी फिर मुझे कौन सुनाता,
मैं भी समझूँ माँ की ममता, गर कोई आँचल मुझे सुलाता।।
पीड़ा या जर ज्वर जब जकड़े, किसको समीप मैं अपने पाता,
बरबस फेरे, माथे मेरे, अब वह हाथ मैं कहाँ से लाता।
माँ के जैसी वह कोमलता, मरहम ज़ख्मों की अग्नि पर,
गर स्पर्श जो माँ का मिलता, दुःख-दरिद्र सबहिं मिट जाता।।
रिश्तों के सब रंग भी देखे, कोई रंग न मुझे है भाता,
तू है भ्रात, तू ही भगिनी माते, तू ही तात, तू भाग्य-विधाता।।
चरण-धूलि जो तेरी पाता, तो मंदिर मैं कभी न जाता,
छू लेता जो पैर तेरे मैं, सकल देवता तुझमें पाता।।
हे ईश्वर! क्या पाप किए थे? जो न मुझे मिली मेरी माता,
मेरी भी गर दुनियाँ होती, तो रब तेरा क्या था जाता,
हूँ देखता जब दुनियाँ में, कितनी ही मैया दिखती हैं,
सब हैं बेबस, सब हैं चाकर, कितनी ही पीड़ा सहती हैं।
दुनियाँ में जितनी जननी हैं, उनको तू ख़ुशहाल बना दे,
पर माँगता तुझसे आखिर, अगले जन्म मुझे माँ से मिला दे।
मिलती जो मुझे माँ एक पल, गीत मेरा अमर हो जाता,
काश, मेरी भी माँ होती! मैं उसे अपनी माँ बुलाता।