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श्याम रंग

5 मार्च 2015

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खग वृंद करें छंद, पवन है मंद मंद आज मेरी वाटिका तरंग में नहाई है पुष्प संग झूम रही, लिए मन मकरंद भ्रमर का नाद सुन कली मुसकाई है मन की उमंग देख, परवश अंग देख आज मेरी कविता प्रथम लजाई है| टेसुओं में पड़े रंग, नयी रश्मियों के संग सप्तरंग फागुन ने ली अंगडाई है कोयल है कूक रही, पत्र-पत्र उन्मत्त बड़, आम, नीम शाख, शाख बौराई है चढ़ा ज्यों ही श्याम रंग, राधिका के अंग-अंग कान्हा बन बंसी के संग इठलाई है| राधा देखे चंहु ओर, कौन है ये चित-चोर कान्हा ने प्रथम आज बंसी बजायी है उर को टटोल रही, मधुरस घोल रही प्रेम की ये कैसी आज अगन लगाई है सूर - रसखान भले प्रथक हैं पंथ किन्तु दोनों की ही बंसी ने प्रेम-धुन गाई है प्रेम-हार, रस-रंग, कोमल स्पर्श संग आज कोई रूपसी मन में समाई है ह्रदय हुआ विहंग, अंग अंग चढी भंग मचल-मचल उठे कैसी तरुणाई है रंग, रूप यौवन हैं छिपे अंग अंग जैसे आज मेरी कविता श्रृंगार कर आयी है आज मेरी कविता श्रृंगार कर आयी है|

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