कभी बनारस की सुबह बन जाती हो।
तो भोपाल की शाम हो जाती हो।
तुम रास्तें के दृश्य हो या,
दोनों पर एक आसमां।
तुम चेतन की किताब का किरदार
तो नहीं हो, तुम जो हो
हमेशा हो। चार कोनो में नहीं
होती तुम, तुमने ही तुम्हें रचा हैं।
अब प्रेम का क्या वर्णन करूँ,
मेरा प्रेम तो तुम्हारा हँसना हैं।
और तुम्हारी भीगी कोर
मेरा मर जाना हैं।
शुरू हुआ प्रेम और अमरता का
प्रेम, दोनों के बीच का
तुम प्रश्न हो। उत्तर भी तुम।