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मैं हूँ रज़िया बेग़म

18 मई 2017

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मैं हूँ रज़िया बेग़म

मैं एक वैश्या हूँ

पता है,अब आप थोड़े संकोच में होंगे

पर इसमें कोई नई बात नहीं

उजाले में सब कुछ अच्छा लगना चाहिए

और मैं इस उजाले का नहीं

उस अँधेरे का हिस्सा हूँ

जिसे ये पाक़ समाज अछूत समझता है

पर जिस तरह प्यार के आगे धर्म नहीं आता

शायद जिस्म के आगे भी धर्म नहीं आता

अँधेरे में तो मुखौटे की भी जरूरत नहीं

जो लोग ओढ़ते हैं दिन के उजाले में

पता नहीं क्या उम्र है मेरी

मेरे माँ बाप कौन हैं

पर वो दिन जरूर याद है

जब मेरी रूह पहली बार रोयी थी

उसके बाद मैं हिस्सा थी इस दुनिया का

जिसे मैं चाह कर भी छोड़ न सकी

क्योंकि मेरी अब अलग पहचान थी

हवस लोगों की जायज़ थी

आखिर मेरी पहचान यही थी

मेरी मदद को लोग हाँथ जरूर बढ़ाते

पर वो हाँथ हर बार अपनी हद पार करते

मैं बिखर चुकी थी

पर फिर मैंने संजोया था खुद को

"टुम्पा" मेरी बेटी एक गाँठ थी

जिसके सहारे मैंने बिखरी हुई रजिया को बाँधा था

जब भी रात को खुद को तोड़ कर

अपने गुजारे को चंद पैसे जोड़ने जाती

मेरी बेटी मुझसे पूछती

जवाब मेरे पास होता नहीं

बस कहती मैं,मुझे भी ऐसे जाना पसंद नहीं

और लिपट जाती वो मुझसे

एक यही स्पर्श था जिसमें सच्चाई थी

पर वो दिन अजीब था

बादलों की गड़गड़ाहट,तेज़ हवा

मौसम खराब हो चला था

मानो अपने आगे सबको बिखेर दे

पर मुझे इसका भय कहाँ

मुझमें और कुछ बिखेरने को अब रह कहाँ गया था

पर डर था मुझे अपनी बच्ची का

मैं चीख रही थी

पीछे कुछ आहट थी

किसी के जोर से खाँसने की आवाज़ आयी

वो एक भिखारी था

मैंने कहा मेरे पास देने को पैसे नहीं

उसने आगे बढ़ कर मुझे 50 टका दिया

और फिर वापस हो गया

अपनी व्हील चेयर घिसकाते हुए

हाँ,

वो लाचार था पैरों से

पर विचारों से नहीं

उसके पास जो भी था जरा सा

उसने मुझे दिया बिना किसी उम्मीद के

और जल्दी निकल जाने का मशवरा

उस दिन मैं खूब रोई

आज किसी ने पहली बार

उस छिछले रूह पर मरहम लगाया था

मुझे पहली बार प्यार का एहसास हुआ

मैंने हिम्मत बटोरी

क्योंकि इतना आसान नहीं होता

एक वैश्या को प्यार होना

और समाज का उसे समझ पाना

मुझे पता चला उस पर भी जिंदगी की मार पड़ी थी

कमज़ोरी किसी को पसन्द नहीं

उसकी पत्नी को भी नहीं थी

पर वो उसके मज़बूत दिल को न देख पाई

जिसे मैंने देखा था

उस घनघोर अँधेरे में

मैंने उस से कहा

कि मैं इतनी बिखर चुकी थी

की शायद उसे प्यार न कर सकूँ

पर हाँ जिंदगी भर उसकी बैसाखी जरूर बन सकती हूँ

उसने मेरी ओर देख कर कहा

बैसाखी बनने को प्यार होना चाइए

आज 4 साल होने को आये उस दिन को

खुशी है मुझे मैंने हिम्मत की

आज मैं एक औरत हूँ

हाँ,पेट कई बार खाली रह जरूर जाता है

पर अब्बास मियाँ ने अपना वादा नहीं तोड़ा

अरसा हुआ मैं रोयी नहीं

न ही अब कोई घुटन सी होती है/


browsing facebook,going through usual newsfeed I stumbled upon this unusual story shared by a renowned photographer GMB Akash of this lady of bangladesh who was forced into prostitution but eventually she found love in a disabled begger.I was touched by the story and wrote this.This is her story :

Note:The link to the story shared by GMB Akash is
https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=1428832907181459&substory_index=0&id=260876280643800

बातें कुछ अनकही सी...........: मैं हूँ रज़िया बेग़म

http://yugeshkumar05.blogspot.com/2017/05/blog-post.html

युगेश कुमार की अन्य किताबें

रेणु

रेणु

संवेदनशील विषय पर बहुत ही मर्मस्पर्शी रचना - जो मन को झझकोर चली -- बहुत सार्थक -- युगेश जी -- बहुत प्रसंशनीय है आपकी रचनात्मकता -- बहुत बधाई और शुभकामना

20 मई 2017

इंजी. बैरवा

इंजी. बैरवा

बहुत ही अर्धमय अर्थघटन. ... सभी के साथ शेयर करने के लिए धन्यवाद. ..

19 मई 2017

प्रियंका शर्मा

प्रियंका शर्मा

बहुत ही भावपूर्ण रचना !!! आपने इसे हम सबके साथ शेयर किया धन्यवाद

19 मई 2017

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वीरांगना

20 जून 2016
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लाल बहादुर शास्त्री ने कहा था"आज़ादी की रक्षा करना केवल सैनिकों का काम नहीं है,पुरे देश को मज़बूत होना होगा/"कितनी तथ्यता है इस विचार में/पर सोचने की बात है सैनिकों को इतनी मज़बूती कहाँ से मिलती है/देश प्रेम तो है और वो आत्मबल जो वो वीरांगनाएं प्रदान करती हैं जो उन्हें और भी मज़बूत करता है/उनका जीवन भी

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सोच दुरुस्त रखो

20 जून 2016
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"भारत की एक खासियत रही है/जो है अनेकता में एकता/"unity in diversity" एक सोच जो हमें औरों से अलग करती है/ये बात हमे खुश रखती है/पर ये बात कुछ लोगों को खटकती भी है/अगर लोग एक रहे तो उनका जीवन यापन चले कैसे/ऐसे में जरुरत है अपनी अक्ल को इस्तेमाल करने की/आखिर कौन अपना है और कौन मतलब साधने को अपना बन हमा

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मैं कविता हूँ

26 जून 2016
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मैं एक कवी हूँ,जाहिर है कविता मुझे पसंद है/पर एक बार अनायास ही ख्याल आया की इतनी सारी कवितायेँ पढ़ी और लिखी पर कभी ऐसी कोई कविता नहीं पढ़ी या लिखी जो कविता क्या है बतलाती हो/तो क्या है कविता इसे बतलाने की मेरी एक कोशिश..........मैं विचार हूँ,मैं उद्गार हूँकभी प्यार तो कभी आभार हूँकभी किसी का क्रोध हूँ

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कुछ बात.....

2 अगस्त 2016
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कुछ बात होंठ पर टीके रहेकुछ घबराहट थी सो सिले रहेहोंठो पे रखे ये धीर-अधीरबस स्वर-सुधा को तरस रहे/                             भ्रमजाल-जाल ये यौवन का                             ये कू-कू कोयल सी बोली                             अगर यही मुहूर्त है मिलने का                             तो क्यूँ ना हर दि

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शिक़ायत नहीं होती

23 अगस्त 2016
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गुस्ताख़ रही मेरी नज़रेंतो शिकायत आपको रही / भला आपके हुस्न के फिदरत कि शिकायत हमने की है कभी/ कि बड़ी तल्क है आपकी नज़रें गिरती हैं शोले बनकर और दिल कहता है शिकायत नहीं हो

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ब्रह्माजी की दुविदा

4 नवम्बर 2016
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"हम लोग भी अजीब हैं,पैदा हुए तो इंसान थे,फिर कुछ हिन्दू हो गए कुछ मुसलमान/इस पर भी मन न माना तो कुछ क्षत्रिय,ब्राह्मण,वैश्य,शूद्र,शिया,शुन्नी हो गए/पर हम मानव है धरती पर सबसे चालक सबसे समझदार/हाँ,कभी कभी दिखावे में,बहकावे में आ जाते हैं पर इतना तो चलता है/ खैर इतने समझदा

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अलगाव

4 जनवरी 2017
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शाखों से पत्ते टूट गएआँखों से दो मोती छूट गए तुम हमसे हम तुमसे क्या रूठे उधर तुम टूट गए इधर हम टूट गए / दिलों में जज़्बात अब भी वही थेरवानगी मोहब्बत की अब भी वही थीवहम का झोंका फ़िज़ा में क्या फैलाझूठ को सच तुम मान गएइधर भरोसा हम हार गए / दिल की कहानी को बयां करते करतेहम टूट

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बातें कुछ अनकही सी...........: लेहरें

28 जनवरी 2017
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"कोलकाता में हुगली नदी में दोस्तों के साथ नाव की सवारी करते हुए नदी में हिचखोले खाते लहरों को देखा ,लेहरें जो आज़ाद थी मानो हमारे बचपन की नुमाईंदगी कर रही थी और अनायास ही चल उठी ये कलम कहने को ये बातें "लेहरें कुछ कह रहीं थीठहरने की कोई गुंजाईश न थीबस बढ़ते जाना थासाहिल की

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बातें कुछ अनकही सी...........: दोस्ती या मतलब

1 फरवरी 2017
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कह उठा कबीर कि परख दोस्ती की दुख की घडी बतलाती है/ जो परछाई है तो साथ चलेगा वरना ओझल सी हो जाती है/ जीवन के इस पथ पर कुछ ऐसा भी हो जाता है/ जिसके साथ हम आगे बढ़ते वो मोड़ नया बन जाता है/ बड़ी मुश्किल से बिखरा मन धीरे-धीरे खुद को समेटता है/ प्रश्न पूछ कर केवल खुद से हर बार बिखर वो जाता है/ पर बिखर क

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बातें कुछ अनकही सी...........: रेलवे टिकट

5 फरवरी 2017
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बीते दिन थे कईजब से होकर आया मैं घर छुट्टी हुई थी कॉलेज मेंमैं भागे-भागे पहुँचा रेलवे टिकट-घर भीड़ बरी थी टिकेट-घर में आठ में से खिड़कियाँ खुली थी केवल छह पीछे मुड़ा था मैं क्यूँकि वहाँ लिखा था भारत माता की जय ट्रेन एक घंटे में थी लाइनें लम

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बातें कुछ अनकही सी...........: माँ

15 फरवरी 2017
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विरह होकर इसजग से भोग-विलास के साधन पास है मेरेपर माँ क्यूँ मैं तेरे आँचल को रोता हूँ/ गिरता,संभलता,बुदबुदाता मैं आगे कोबढ़ता जाता था माँ तेरे साए मे आकर

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दो-चार पैसों की व्यथा

15 फरवरी 2017
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उस बासी रोटी का पहला ग्रास ज्यों ही मैने मुँह मे डाला था चिल्लाकर मलिक ने मेरे तत्क्षण मुझको बुलवाया था/ कहा टोकरी भरी पड़ी है और गाड़ी आने वाली है लगता है ये भीड़ देखकर आज अच्छी बिक्री होने वाली है/ करता है मन मेरा भी खेलूँ मैं यारों के संग पर है ये ए

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बातें कुछ अनकही सी...........: युवा और गाँधी

25 फरवरी 2017
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मैं खोया था बैठा उदास निज आ बैठे गाँधी सुभाष इस मन कौतुहल और आँधी को कैसे समझाऊं गाँधी कोशायद समझे वो महापुरुषचेहरे पर थी मुस्कान दुरुस्तसुभाष समझाओ युवा साथी को हमने देखा भांति भांति को याद है प्यारा खुदीराम और अमर माँ को उसका प्रणाम जो जल

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बातें कुछ अनकही सी...........: बिटिया

27 फरवरी 2017
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कभी बचपन में बोला था तूने कब शादी करोगी मेरी हंसकर बोला मैंने बड़े शौक सेबड़े धूमधाम से जब करनी होगी तब होगी बचपना था तुम्हारा हंसी थी मेरी आज खुशी है तेरी और मजबूरी मेरी तू अब बच्ची न थी और न ही जिद्दी पर शायद जिद्दी मैं हो गयी थी एक और नवजीवन था एक और माँ का अपनापन था प्य

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बातें कुछ अनकही सी...........: महँगाई और होली

18 मार्च 2017
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बातें कुछ अनकही सी...........: महँगाई और होलीघर पर यूँ बैठे-बैठे मैने ज्यों ही मेज़ पर हाथ फिराया था मुझे मिली वो निमंत्रण पत्रि जो पिछले वर्ष मैने होली मे छपवाया था/ उस डेढ़ हज़ार के बोनस पर ही मैने खुद को ए. राजा सा पाया था घर मे थी होली-मिलन

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बातें कुछ अनकही सी...........: माँ का प्रेम

21 मार्च 2017
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प्रेम की परिभाषा इतनी आसान कहाँ उपमाएं कम पर जाएं जो माँ की बात हो अकूत,विस्तृत,अपरिसीम ये शब्द कम पड़ जाएँ जो ममता की बात हो प्रेम कभी महसूस कर आता है प्रेम कभी साथ जीकर आता है उस प्रेम की क्या बात करूँ जो जीवन देकर आता है एक प्रतिबिम्ब सा

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बातें कुछ अनकही सी...........: अंतर्द्वन्द

17 अप्रैल 2017
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अंतर्द्वन्द जो सीने में बसा औचित्य जीवन का मैं सोचता यहाँ हर कोई मुझे पहचानता है मैं पर खुद में खुद को ढूंढतासाँस चलती हर घड़ीप्रश्न उतने ही फूटतेजो सपने बनते हैं फलक परधरा पर आकर टूटतेकुंठित होकर मन मेरामुझसे है आकर पूछता जिसने देखे सपने वो कौन था और कौन तू है ये बतारो-रो

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मैं हूँ रज़िया बेग़म

18 मई 2017
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मैं हूँ रज़िया बेग़ममैं एक वैश्या हूँपता है,अब आप थोड़े संकोच में होंगे पर इसमें कोई नई बात नहीं उजाले में सब कुछ अच्छा लगना चाहिए और मैं इस उजाले का नहींउस अँधेरे का हिस्सा हूँ जिसे ये पाक़ समाज अछूत समझता है पर जिस तरह प्यार के आगे धर्म नहीं आता शायद जिस्म के आगे भी धर्म नहीं आता अँधेरे में तो मुखौटे

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कम्बख्त,इश्क़ में लग गए

25 मई 2017
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"मोहल्ले के लौंडों का प्यार अक्सर इंजीनियर डॉक्टर उठा कर ले जाते हैं।"रांझना फिल्म का ये डॉयलोग तो आपके जेहन में होगा ही।practical life में यानी की असल जिन्दगी में प्यार काफी हद तक ऐसा ही होता है।अब हर लव स्टोरी तो srk की फिल्मों की तरह होती नहीं कि पलट बोला और लड़की पलट ग

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बातें कुछ अनकही सी...........: धीमे-धीमे जो उजले-काले बादलों में

10 जून 2017
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धीमे-धीमे जो उजले-काले बादलों में पड़ती हैसूरज की लालिमा वैसे धीरे-धीरे मेरे दिल मे उतरता है रंग तेरा जिसके बहुतेरे रूप हैं हर एक खास और हर एक बाकियों से जुदा और बरस पड़ते हैं उस साल की पहली बारिश की तरह फर्क बस ये है वो बारिश धरती को भिंगोती है तो दूसरी मेरे रूह को जो झर-झ

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बातें कुछ अनकही सी...........: और केश सफेद हैं,कुछ तेरे कुछ मेरे

20 जून 2017
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क्योंकि,हर प्यार का अंत बुरा नहीं होता/क्योंकि,कई प्यार का कोई अंत भी नहीं होता।कई प्यार की कहानियाँ शाहरुख खान की फिल्मों की तरह भी होती हैं।हालाँकि, उसमे स्विट्ज़रलैंड के मनोरम दृश्य नहीं होते पर होते हैं बहुत से मनोरम पल,जिसमे होती हैं कुछ खट्टी-मीठी यादें,और जी लेते है

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बातें कुछ अनकही सी...........: ठहर जाने दो पानी की इन छींटों को

7 जुलाई 2017
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ठहर जाने दो पानी की इन छींटों को चेहरे पर कि ये मुझे ऐसे ही अच्छे लगते हैं इनका गिरना,फिसलना,भटकना मेरी तेरी आँख मिचौली से लगते हैं ये बूँदें जो तुम्हारे लाली को समेटते हुए उसके भार से गिरने को आमद हों बता देना मुझे,मैं हथेली पर रख लूँगा उन्हें क्योंकि एहसास होगा उनमें तु

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बातें कुछ अनकही सी...........: शादी या कैरियर

14 जुलाई 2017
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जीवन के पड़ाव का जब २५वाँ वसंत आता है तो आपकी आक़ांक्षाएँ बदलने लगती हैं/ नौकरी और शादी दो ऐसे ज्वलंत विषय बन जाते हैं जो की ना केवल आपको बल्कि आपके माता-पिता,रिश्तेदारों सभी को बहुत परेशान करते हैं/ ऐसे में Donald Trump के राष्ट्रपति बनने पर जितना Mexico परेशान ना हुआ हो

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बातें कुछ अनकही सी...........: अब कहने को रह ही क्या गया था दरमियाँ

22 अगस्त 2017
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PK फिल्म का एक dialogue आपसे साझा करता हूँ;जब PK अपने ग्रह वापस जा रहा होता है और Jaggu को एहसास होता है की PK के दिल में क्या चल रहा है..............."उसने एक बार भी पलट कर नहीं देखा/शायद अपने आँशु छुपा रहा था/कुछ सिख के गया बहुत कुछ सिखा

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बातें कुछ अनकही सी...........: खर्राटे

24 अगस्त 2017
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सुनने में जितना भी अजीब लगे पर हाँ ये कविता खर्राटों पर है/खर्राटे जो आप भी लेते हैं हम भी लेते हैं/हाँ पर जब खर्राटों की ध्वनि जब चाहकर अनसुनी न रह जाये यानि की शोर प्रचंड हो तो वो व्यक्ति रोगी कहलाता है और उसके बगल वाला भुक्तभोगी /ऐसी स्तिथि में आप भी कभी न कभी जरूर रहे

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मैं जोड़ लूंगा,छोड़ दे।

24 अगस्त 2017
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ये तिलिस्म अपना तोड़ देक्या कर सकेगा छोड़ देये रूह टूटी ही सहीमैं जोड़ लूंगा,छोड़ दे।मैं कर्ण सा बलवान हूँबिखरा हुआ पर अभिमान हूँचित्र-गूगल आभार जिसने दे दिए कवच और कुंडलबिखरा सही पर दयावान हूँ।हुंकार की आधार परतेरे खोकले अहँकार परजा ढूँढ़ ले डरते हैं जोमैं जीता अपने अभिमान पर।ये लोक नीति ही नहींये शोक न

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बातें कुछ अनकही सी...........: चर्चे तेरे ही होंगे,ये कोई और नहीं

19 सितम्बर 2017
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इश्क़ ऐसा हुआ कि मैं खो गया लोगों ने ढूँढा पर मिला नहीं इश्क़ की चाशनी को तेरे लबों से उठाया मिठास ऐसी की अब तक घुला नहीं तूने नाक पर नथुनी को सजा ऐसे दिया चाँद को खुले आसमान में जैसे देखा नहीं ये जो आँखों के तले जो काजल तूने लगाया अँधेरे में ऐसा डूबा की उठा नहीं तेरी चूड़िय

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मेरी आँखें पढ़ माँ बोल देती है

19 सितम्बर 2017
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लाख गुजर जाए उस पर,पर वो छोड़ देती हैमैं कितना भी छुपाऊँ,मेरी आँखें पढ़ माँ बोल देती है।उसकी सिसकियों को लोग उसकी कमज़ोरी समझते हैंवो तोड़ती है खुदको,पर मुझे जोड़ देती है।तुमने तिनके उठाते तो देखा होगा चिड़ियाँ कोमाँ वो है जो तिनकों से घर को जोड़ देती है।मेरे जरा सी मेहनत पर मुझे गुरुर सा आ गयावो तो रोज़ कर

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बच्चे खुला आसमान चाहते हैं

8 अक्टूबर 2017
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जो उनके खेलने की उम्र में उनसे खेल जाते हैंबताइये इतनी दरिंदगी कहाँ से लाते हैंनासमझ ने गुड्डे को गिर जाने पर बड़े प्यार से सहलाया थावो गुड्डे-गुड़ियों को गिराते हैं फिर नोच जाते हैं।वो जो सबकी नाक में दम कर देता थाउसके चेहरे की शरारत को गुम क्यूँ पाते हैंव्यस्त ज़िन्दगी

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सिपाही साहिबा

30 दिसम्बर 2017
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#slapfestआज न्यूज़ देखते समय नज़र टिकी एक न्यूज पर।बहुत ही खास थी।पढ़ा तो पता चला धौंस दिखाने के चक्कर में एक नेत्री को एक सिपाही साहिबा ने दिन में तारों की सैर करवा दी।अच्छा लगा पढ़कर और सिपाही साहिबा की भी तारीफ करने को जी चाहा -नेत्री जी अड़ गईंएक तमाचा तपाक जड़ गईंसोचा सिया

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कर्ण

17 फरवरी 2018
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रोष मस्तक पर जब रंजीत होता विश्वास जो छल से खंडित होता अनल सा तपता जब ये मन धिक्कारा जाए जब कुन्दन। जब सूरज का कोप प्रखर होता जब तोड़ तुझे कोई तर होता न प्यास बुझाये उस पानी को कानों को चुभती हर एक वाणी को। शूरवीरों से वो भरी सभा मछली की आँख न कोई भेद सका चढ़ा प्रत्यंचा गाण

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भगत सिंह

26 मार्च 2018
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आँखों में खून मेरे चढ़ आया था शैलाब हृदय में आया था जब लाशों के चीथड़ों में जलियावाला बाग़ उजड़ा पाया था। जब चीख उठी बेबस धरती सौ कूख लिए हर एक अर्थी बचपन में बचपना छोड़ आया मैं इंक़लाब घर ले आया। बाप-चाचा थे गजब अनूठे निज घर देशभक्ति अंकुर फूटे बचपन में ही छोड़ क्रीड़ा मैं निकला

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Black buck और भाई

7 अप्रैल 2018
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Black buck को धराशायी कर फिल्हाल भाईजान धराशायी हो गए कुछ खुश हो गए तो भाई के fans रूष्ट हो गए आखिर भाई ने इतनों का भला किया हिरण की आत्मा ने पुकार लगाई तो साले मैंने किसका बुरा किया सुना 20 साल हो गए अब तो उसके पुनर्जन्म की बात होगी अरे!आपने फिल्में नहीं देखी उसे इंसाफ म

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बातें कुछ अनकही सी...........: सिसकी

19 अप्रैल 2018
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सिसकी जो निकली तो जान निकल गयीहैरत तो तब हुई जब बच्ची बच्ची नहींहिन्दू और मुसलमान निकल गयीकठुआ हो या उन्नावया कोई और जगहमाँ को तकलीफ तब हुईजब बच्ची घर से परेशान निकल गयीकहीं दुबक के बैठी थी वेदनावेदना का चोला ओढ़े जबराजनीति बेशुमार निकल गयीनिर्भया के आँसू अभी सूखे नहीं थेइ

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बातें कुछ अनकही सी...........: अहं

8 मई 2018
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धृतराष्ट्र आँखों से अंधा पुत्र दुर्योधन अहं से अंधा थाउसकी नज़रों से देखा केशव ने चारों ओर मैं ही मैं था|1| जब भीम बड़े बलशाली सेबूढ़े वानर की पूँछ न उठ पाईबड़ी सरलता से प्रभु नेअहं को राह तब दिखलाई|2| जैसे सुख और माया मेंधूमिल होती एक रेखा हैवैसे मनुज और मंज़िल के बीचमैंन

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बातें कुछ अनकही सी...........: सवाल कुछ यूँ भी हैं जिंदगानी में

29 मई 2018
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सवाल कुछ यूँ भी हैं जिंदगानी में कि अश्क हैं भी और गिरते भी नहीं। शरीर टूटता है उन कामगार बच्चों का एक आत्मा थी जो टूटी है पर टूटती भी नहीं। उस बच्ची का पुराना खिलौना आज मैंने कचरा चुनने वाली बच्ची के पास देखा पता है खिलौना टूटा है,पर इतना टूटा भी नहीं। ठगे जाते हैं लोग अ

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इच्छाएँ मन मझधार रहीं

21 जून 2018
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इच्छाएँ मन मझधार रहीं न इस पार रहीं न उस पार रहीं उम्र बढ़ी जो ज़हमत में नादानी हमसे लाचार रहीं कुछ पाया और कुछ खोया गिनती सारी बेकार रही जेब टटोला तो भरे पाए बस घड़ियाँ भागम-भाग रहीं कदम बढ़े जो आगे तो नज़रें पीछे क्यूँ ताक रहीं एक गुल्लक यादों का छोड़ा था स्मृतियाँ हाहाकार रह

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बातें कुछ अनकही सी...........: दिल के किराएदार

23 जुलाई 2018
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बकौल मोहब्बत वो मुझसे पूछता है दिल के मकान के उस कमरे में क्या?अब भी कोई रहता है। थोड़ा समय लगेगा,ध्यान से सुनना बड़ी शिद्दत से बना था वो कमराकच्चा था पर उतना ही सच्चा था उसे भी मालूम था कि उसकीएक एक ईंट जोड़ने में मेरीएक एक धड़कन निकली थी इकरारनामा तो थापर उस पर उसके दस्तख़त

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बातें कुछ अनकही सी...........: एक कविता मेरे नाम

23 दिसम्बर 2018
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बात तब की है जब मैं धरती पर अवतरित हुआ चौकिए मत हमारा नाम ही ऐसा रखा गया युगेश अर्थात युग का ईश्वर अब family ने रख दी हमने seriously ले ली खुद को बाल कृष्ण समझ बैठे खूब मस्ती की पर गोवर्धन उठा नहीं पाए पर पिताजी ने बेंत बराबर उठा ली और कृष्ण को कंस समझ गज़ब धोया मतलब सीधा-

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बातें कुछ अनकही सी...........: शनाख़्त मोहब्बत की

23 दिसम्बर 2018
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शनाख़्त नहीं हुई मोहब्बत की हमारी जज़्बात थे,सीने में सैलाब था पर गवाह एक भी नहीं लोगों ने जाना भी,बातें भी की पर समझ कोई न सका समझता भी कैसे अनजान तो हम भी थे एक हलचल सी होती थी जब भी वो गुज़रती थी आहिस्ता आहिस्ता साँसें चलती थी एक अलग सी दुनिया थी जो मैं महसूस करता था मेरी

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बातें कुछ अनकही सी...........: अवसाद

30 अप्रैल 2019
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"अवसाद" एक ऐसा शब्द जिससे हम सब वाकिफ़ हैं।बस वाकिफ़ नहीं है तो उसके होने से।एक बच्चा जब अपनी माँ-बाप की इच्छाओं के तले दबता है तो न ही इच्छाएँ रह जाती हैं ना ही बचपना।क्योंकि बचपना दुबक जाता है इन बड़ी मंज़िलों के भार तले जो उसे कुछ खास रास नहीं आते।मंज़िल उसे भी पसंद है पर र

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