- नेह भरी
पाती
अब नहीं आती.
गुप्तवास में
माँ की लोरी
गूंगी बहरी
चैती होरी
सुखिया दादी
पराती
अब नहीं गाती
अंगनाई की
फट गई छाती
चूल्हे चौकों की
बँट गई माटी
पूर्वजों की
थाती
अब नहीं भाती.
-- डॉ. हरेश्वर राय
पाती
अब नहीं आती.
गुप्तवास में
माँ की लोरी
गूंगी बहरी
चैती होरी
सुखिया दादी
पराती
अब नहीं गाती
अंगनाई की
फट गई छाती
चूल्हे चौकों की
बँट गई माटी
पूर्वजों की
थाती
अब नहीं भाती.
-- डॉ. हरेश्वर राय
डॉ. हरेश्वर रॉय, प्रोफेसर ऑफ़ इंग्लिश, शासकीय पी. जी. महाविद्यालय सतना, मध्य प्रदेश.
रेणु
21 मई 2017मन भिगोने वाली -- भावपूर्ण रचना -- हरेश्वर जी आपकी रचना बहुत अच्छी लगी --